Chha Dhala (Hindi). Gatha: 15: mithyAcharitrake tyAg tathA Atmahitme laganeka updesh (Dhal 2).

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भावार्थ :शरीर और आत्माका भेद-विज्ञान न होनेसे जो
यश, धन-सम्पत्ति, आदर-सत्कार आदिकी इच्छासे मानादि
कषायके वशीभूत होकर शरीरको क्षीण करनेवाली अनेक प्रकारकी
क्रियाएँ करता है, उसे ‘‘गृहीत मिथ्याचारित्र’’ कहते हैं
।।१४।।
मिथ्याचारित्रके त्यागका तथा आत्महितमें लगनेका उपदेश
ते सब मिथ्याचारित्र त्याग, अब आतमके हितपंथ लाग
जगजाल-भ्रमणको देहु त्याग, अब दौलत ! निज आतम सुपाग ।।१५।।
अन्वयार्थ :(ते) उस (सब) समस्त (मिथ्याचारित्र)
मिथ्याचारित्रको (त्याग) छोड़कर (अब) अब (आतमके) आत्माके
(हित) कल्याणके (पंथ) मार्गमें (लाग) लग जाओ, (जगजाल)
संसाररूपी जालमें (भ्रमणको) भटकना (देहु त्याग) छोड़ दो,
४६ ][ छहढाला