कषायके वशीभूत होकर शरीरको क्षीण करनेवाली अनेक प्रकारकी
क्रियाएँ करता है, उसे ‘‘गृहीत मिथ्याचारित्र’’ कहते हैं
(हित) कल्याणके (पंथ) मार्गमें (लाग) लग जाओ, (जगजाल)
संसाररूपी जालमें (भ्रमणको) भटकना (देहु त्याग) छोड़ दो,
Chha Dhala (Hindi). Gatha: 15: mithyAcharitrake tyAg tathA Atmahitme laganeka updesh (Dhal 2).
Page 46 of 192
PDF/HTML Page 70 of 216