तीसरी ढाल
नरेन्द्र छन्द (जोगीरासा)
आत्महित, सच्चा सुख तथा दो प्रकार से मोक्षमार्गका कथन
आतमको हित है सुख, सो सुख आकुलता बिन कहिये ।
आकुलता शिवमांहि न तातैं, शिवमग लाग्यो चहिये ।।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरन शिव, मग सो द्विविध विचारो ।
जो सत्यारथ-रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो ।।१।।
अन्वयार्थ : – (आतमको) आत्माका (हित) कल्याण
(है) है (सुख) सुखकी प्राप्ति, (सो सुख) वह सुख (आकुलता बिन)
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