Chha Dhala (Hindi).

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आकुलता रहित (कहिये) कहा जाता है । (आकुलता) आकुलता
(शिवमांहि) मोक्षमें (न) नहीं है, (तातैं) इसलिये (शिवमग)
मोक्षमार्गमें (लाग्यो) लगना (चहिये) चाहिये । (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-
चरन) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र इन तीनोंकी एकता वह (शिवमग)
मोक्षका मार्ग है । (सो) उस मोक्षमार्गका (द्विविध) दो प्रकारसे
(विचारो) विचार करना चाहिये कि (जो) जो (सत्यारथरूप)
वास्तविक स्वरूप है (सो) वह (निश्चय) निश्चय-मोक्षमार्ग है और
(कारण) जो निश्चय-मोक्षमार्गका निमित्तकारण है (सो) उसे
(व्यवहारो) व्यवहार-मोक्षमार्ग कहते हैं ।
भावार्थ :(१) सम्यक्चारित्र निश्चयसम्यग्दर्शन-
ज्ञानपूर्वक ही होता है । जीवको निश्चयसम्यग्दर्शनके साथ ही
सम्यक् भावश्रुतज्ञान होता है और निश्चयनय तथा व्यवहारनय
–यह दोनों सम्यक् श्रुतज्ञानके अवयव (अंश) हैं; इसलिये
मिथ्यादृष्टिको निश्चय या व्यवहारनय हो ही नहीं सकते; इसलिये
‘‘व्यवहार प्रथम होता है और निश्चयनय बादमें प्रगट होता
है’’–ऐसा माननेवालेको नयोंके स्वरूपका यथार्थ ज्ञान नहीं है ।
(२) तथा नय निरपेक्ष नहीं होते । निश्चयसम्यग्दर्शन प्रगट
होनेसे पूर्व यदि व्यवहारनय हो तो निश्चयनयकी अपेक्षारहित
निरपेक्षनय हुआ और यदि पहले अकेला व्यवहारनय हो तो
अज्ञानदशामें सम्यग्नय मानना पड़ेगा; किन्तु ‘‘निरपेक्षानयाः मिथ्या
सापेक्षावस्तु तेऽर्थकृत’’ (आप्तमीमांसा श्लोक–१०८) ऐसा
आगमका वचन है; इसलिये अज्ञानदशामें किसी जीवको
व्यवहारनय नहीं हो सकता; किन्तु व्यवहाराभास अथवा
निश्चयाभासरूप मिथ्यानय हो सकता है ।
५४ ][ छहढाला