Chha Dhala (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 55 of 192
PDF/HTML Page 79 of 216

 

background image
(३) जीव निज ज्ञायकस्वभावके आश्रय द्वारा निश्चयरत्नत्रय
(मोक्षमार्ग) प्रगट करे, तब सर्वज्ञकथित नव तत्त्व, सच्चे देव-
शास्त्र-गुरुकी श्रद्धा सम्बन्धी रागमिश्रित विचार तथा
मन्दकषायरूप शुभभाव–जो कि उस जीवको पूर्वकालमें था, उसे
भूतनैगमनयसे व्यवहारकारण कहा जाता है । (परमात्मप्रकाश,
अध्याय २ गाथा १४ की टीका) । तथा उसी जीवको
निश्चयसम्यग्दर्शनकी भूमिकामें शुभराग और निमित्त किस प्रकारके
होते हैं, उनका सहचरपना बतलानेके लिये वर्तमान शुभरागको
व्यवहारमोक्षमार्ग कहा है, ऐसा कहनेका कारण यह है कि उससे
भिन्न प्रकारके (विरुद्ध) निमित्त उस दशामें किसीको हो नहीं
सकते । –इस प्रकार निमित्त-व्यवहार होता है; तथापि वह यथार्थ
कारण नहीं है ।
(४) आत्मा स्वयं ही सुखस्वरूप है; इसलिये आत्माके
आश्रयसे ही सुख प्रगट हो सकता है; किन्तु किसी निमित्त या
व्यवहारके आश्रयसे सुख प्रगट नहीं हो सकता ।
(५) मोक्षमार्ग तो एक ही है, वह निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-
चारित्रकी एकतारूप है । (प्रवचनसार गाथा ८२-१९९ तथा
मोक्षमार्ग प्रकाशक देहली, पृष्ठ ४६२)
(६) अब, ‘‘मोक्षमार्ग तो कहीं दो नहीं हैं; किन्तु मोक्षमार्गका
निरूपण दो प्रकारसे है । जहाँ मोक्षमार्गके रूपमें सच्चे मोक्षमार्गकी
प्ररूपणा की है वह निश्चयमोक्षमार्ग है तथा जहाँ जो मोक्षमार्ग तो
नहीं है; किन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है अथवा सहचारी है, वहाँ उसे
उपचारसे मोक्षमार्ग कहें तो वह व्यवहारमोक्षमार्ग है; क्योंकि
निश्चय-व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है अर्थात् यथार्थ निरूपण
तीसरी ढाल ][ ५५