शास्त्र-गुरुकी श्रद्धा सम्बन्धी रागमिश्रित विचार तथा
मन्दकषायरूप शुभभाव–जो कि उस जीवको पूर्वकालमें था, उसे
भूतनैगमनयसे व्यवहारकारण कहा जाता है । (परमात्मप्रकाश,
अध्याय २ गाथा १४ की टीका) । तथा उसी जीवको
निश्चयसम्यग्दर्शनकी भूमिकामें शुभराग और निमित्त किस प्रकारके
होते हैं, उनका सहचरपना बतलानेके लिये वर्तमान शुभरागको
व्यवहारमोक्षमार्ग कहा है, ऐसा कहनेका कारण यह है कि उससे
भिन्न प्रकारके (विरुद्ध) निमित्त उस दशामें किसीको हो नहीं
सकते । –इस प्रकार निमित्त-व्यवहार होता है; तथापि वह यथार्थ
कारण नहीं है ।
व्यवहारके आश्रयसे सुख प्रगट नहीं हो सकता ।
मोक्षमार्ग प्रकाशक देहली, पृष्ठ ४६२)
प्ररूपणा की है वह निश्चयमोक्षमार्ग है तथा जहाँ जो मोक्षमार्ग तो
नहीं है; किन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है अथवा सहचारी है, वहाँ उसे
उपचारसे मोक्षमार्ग कहें तो वह व्यवहारमोक्षमार्ग है; क्योंकि
निश्चय-व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है अर्थात् यथार्थ निरूपण