निश्चय सम्यक्चारित्र (सोई) है । (अब) अब (व्यवहार मोक्षमग)
व्यवहार-मोक्षमार्ग (सुनिये) सुनो कि जो व्यवहारमोक्षमार्ग
(नियतको) निश्चय-मोक्षमार्गका (हेतु) निमित्तकारण (होई) है ।
भावार्थ : – पर पदार्थोंसे त्रिकाल भिन्न ऐसे निज-
आत्माका अटल विश्वास करना उसे निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं ।
आत्माको परवस्तुओंसे भिन्न जानना (ज्ञान करना) उसे निश्चय-
सम्यग्ज्ञान कहा जाता है । तथा परद्रव्योंका आलम्बन छोड़कर
आत्म-स्वरूपमें एकाग्रतासे मग्न होना वह निश्चय सम्यक्चारित्र
(यथार्थ आचरण) कहलाता है । अब आगे व्यवहार-मोक्षमार्गका
कथन करते हैं; क्योंकि जब निश्चय-मोक्षमार्ग हो तब व्यवहार-
मोक्षमार्ग निमित्तरूपमें कैसा होता है वह जानना चाहिये ।।२।।
व्यवहार सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन)का स्वरूप
जीव अजीव तत्त्व अरु आस्रव, बन्ध रु संवर जानो ।
निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको, ज्यों का त्यों सरधानो ।।
है सोई समकित व्यवहारी, अब इन रूप बखानो ।
तिनको सुन सामान्य विशेषैं,िद्रढ़ प्रतीत उर आनो ।।३।।
अन्वयार्थ : – (जिन) जिनेन्द्रदेवने (जीव) जीव,
तीसरी ढाल ][ ५७