Chha Dhala (Hindi). Gatha: 4: jeevke bhed, bahirAtmA aur antarAtmAkA lakShan (Dhal 3).

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(अजीव) अजीव, (आस्रव) आस्रव, (बन्ध) बन्ध, (संवर) संवर,
(निर्जरा) निर्जरा, (अरु) और (मोक्ष) मोक्ष (तत्त्व) यह सात तत्त्व
(कहे) कहे हैं; (तिनको) उन सबकी (ज्योंका त्यों) यथावत्-
यथार्थरूपसे (सरधानो) श्रद्धा करो । (सोई) इस प्रकार श्रद्धा
करना सो (समकित व्यवहारी) व्यवहारसे सम्यग्दर्शन है । अब (इन
रूप) इन सात तत्त्वोंके रूपका (बखानो) वर्णन करते हैं; (तिनको)
उन्हें (सामान्य विशेषैं) संक्षेपसे तथा विस्तारसे (सुन) सुनकर
(उर) मनमें (ि
द्रढ़) अटल (प्रतीत) श्रद्धा (आनो) करो ।
भावार्थ :(१) निश्चयसम्यग्दर्शनके साथ व्यवहार-
सम्यक्दर्शन कैसे होता है, उसका यहाँ वर्णन है । जिसे निश्चय-
सम्यग्दर्शन न हो उसे व्यवहार सम्यग्दर्शन भी नहीं हो सकता ।
निश्चयश्रद्धासहित सात तत्त्वोंकी विकल्प-रागरहित श्रद्धाको
व्यवहारसम्यग्दर्शन कहा जाता है ।
(२) तत्त्वार्थसूत्रमें ‘‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्’’ कहा है,
वह निश्चयसम्यग्दर्शन है । (देखो, मोक्षमार्गप्रकाशक अध्याय ९ पृष्ठ
४७७ तथा पुरुषार्थसिद्धयुपाय गाथा २२)
यहाँ जो सात तत्त्वोंकी श्रद्धा कही है, वह भेदरूप
है–रागसहित है, इसलिये वह व्यवहारसम्यग्दर्शन है ।
निश्चयमोक्षमार्गमें कैसा निमित्त होता है वह बतलानेके लिये यहाँ
तीसरी गाथा कही है; किन्तु उसका ऐसा अर्थ नहीं है
कि–निश्चयसम्यक्त्व बिना व्यवहारसम्यक्त्व हो सकता है
।।।।
जीवके भेद, बहिरात्मा और उत्तम अन्तरात्माका लक्षण
बहिरातम, अन्तरआतम, परमातम जीव त्रिधा है
देह जीवको एक गिने बहिरातम तत्त्वमुधा है ।।
५८ ][ छहढाला