Chha Dhala (Hindi).

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उत्तम मध्यम जघन त्रिविधके अन्तर-आतम ज्ञानी
द्विविध संग बिन शुध-उपयोगी मुनि उत्तम निजध्यानी ।।।।
अन्वयार्थ :(बहिरातम) बहिरात्मा, (अन्तरआतम)
अन्तरात्मा [और ] (परमातम) परमात्मा [इस प्रकार ] (जीव)
जीव (त्रिधा) तीन प्रकारके (है) हैं; [उनमें ] (देह जीवको) शरीर
और आत्माको (एक गिने) एक मानते हैं वे (बहिरातम) बहिरात्मा
हैं [और वे बहिरात्मा ] (तत्त्वमुधा) यथार्थ तत्त्वोंसे अजान अर्थात्
तत्त्वमूढ़ मिथ्यादृष्टि हैं । (आतमज्ञानी) आत्माको परवस्तुओंसे भिन्न
जानकर यथार्थ निश्चय करनेवाले (अन्तरआतम) अन्तरात्मा
[कहलाते हैं; वे ] (उत्तम) उत्तम (मध्यम) मध्यम और (जघन)
जघन्य –ऐसे (त्रिविध) तीन प्रकारके हैं; [उनमें ] (द्विविध)
अंतरंग तथा बहिरंग –ऐसे दो प्रकारके (संगबिन) परिग्रह रहित
(शुध उपयोगी) शुद्ध उपयोगी (निजध्यानी) आत्मध्यानी (मुनि)
दिगम्बर मुनि (उत्तम) उत्तम अन्तरात्मा हैं ।
भावार्थ :जीव (आत्मा) तीन प्रकारके हैं–(१) बहिरात्मा,
(२) अन्तरात्मा, (३) परमात्मा । उनमें जो शरीर और आत्माको
एक मानते हैं, उन्हें बहिरात्मा कहते हैं; वे तत्त्वमूढ़ मिथ्यादृष्टि हैं ।
जो शरीर आत्माको अपने भेदविज्ञानसे भिन्न-भिन्न मानते हैं, वे
अन्तरात्मा अर्थात् सम्यग्दृष्टि हैं । अन्तर आत्माके तीन भेद
हैं–उत्तम, मध्यम और जघन्य । उनमें अंतरंग तथा बहिरंग दोनों
प्रकारके परिग्रहसे रहित सातवेंसे लेकर बारहवें गुणस्थान तक
वर्तते हुए शुद्ध-उपयोगी आत्मध्यानी दिगम्बर मुनि उत्तम अन्तरात्मा
हैं
।।।।
तीसरी ढाल ][ ५९