Chha Dhala (Hindi). Gatha: 6: nikal paramAtmAkA lakShan tathA paramAtmAke dhyAnkA upadesh (Dhal 3).

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अलोक सहित सर्व पदार्थोंका त्रिकालवर्ती सम्पूर्ण स्वरूप एक
समयमें युगपत् अर्थात् (एकसाथ) जानने-देखनेवाले, सबके ज्ञाता-
द्रष्टा हैं, इससे निश्चित होता है कि–जिस प्रकार सर्वज्ञका ज्ञान
व्यवस्थित है; उसीप्रकार उनके ज्ञानके ज्ञेय–सर्वद्रव्य–छहों द्रव्योंकी
त्रैकालिक क्रमबद्ध पर्यायें भी निश्चित-व्यवस्थित हैं, कोई पर्याय
उल्टी-सीधी अथवा अव्यवस्थित नहीं होती, ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव
मानता है । जिसकी ऐसी मान्यता (–निर्णय) नहीं होती, उसे स्व-
पर पदार्थोंका निश्चय न होनेसे शुभाशुभ विकार और परद्रव्यके साथ
कर्ताबुद्धि-एकताबुद्धि होती ही है; इसलिये वह जीव बहिरात्मा
है
।।।।
निकल परमात्माका लक्षण तथा परमात्माके ध्यानका उपदेश
ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल-वर्जित सिद्ध महन्ता
ते हैं निकल अमल परमातम, भोगैं शर्म अनन्ता ।।
बहिरातमता हेय जानि तजि, अन्तरआतम हूजै
परमातमको ध्याय निरन्तर, जो नित आनन्द पूजै ।।।।
अन्वयार्थ :(ज्ञानशरीरी) ज्ञानमात्र जिनका शरीर है
ऐसे (त्रिविध) ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, रागादि भावकर्म तथा
औदारिक शरीरादि नोकर्म–ऐसे तीन प्रकारके (कर्ममल) कर्मरूपी
मैलसे (वर्जित) रहित, (अमल) निर्मल और (महन्ता) महान
(सिद्ध) सिद्ध परमेष्ठी (निकल) निकल (परमातम) परमात्मा हैं ।
वे (अनन्त) अपरिमित (शर्म) सुख (भोगैं) भोगते हैं । इन तीनोंमें
(बहिरातमता) बहिरात्मपनेको (हेय) छोड़ने योग्य (जानि) जानकर
और (तजि) उसे छोड़कर (अन्तर आतम) अन्तरात्मा (हूजै) होना
६२ ][ छहढाला