Chha Dhala (Hindi).

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(होय) होता है वह (अधर्म) अधर्म द्रव्य है । (जिन) जिनेन्द्र
भगवानने उस अधर्मद्रव्यको (बिन-मूर्ति) अमूर्तिक, (निरूपी)
अरूपी कहा है ।
भावार्थ :जिसमें चेतना (ज्ञान-दर्शन अथवा जानने-
देखनेकी शक्ति) नहीं होती, उसे अजीव कहते हैं । उस अजीवके
पाँच भेद हैं– पुद्गल, धर्म,
अधर्म, आकाश और काल । जिसमें
रूप, रस, गंध, वर्ण और स्पर्श होते हैं उसे पुद्गल द्रव्य कहते
हैं । जो स्वयं गति करते हैं ऐसे जीव और पुद्गलको चलनेमें जो
निमित्तकारण होता है, वह धर्मद्रव्य है तथा जो स्वयं अपने आप
गतिपूर्वक स्थिर रहे हुए जीव और पुद्गलको स्थिर रहनेमें
निमित्तकारण है, वह अधर्मद्रव्य है । जिनेन्द्र भगवानने इन धर्म,
अधर्म द्रव्योंको तथा जो आगे कहे जायेंगे उन आकाश और काल
धर्म और अधर्मसे यहाँ पुण्य और पाप नहीं; किन्तु छह द्रव्योंमें
आनेवाले धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय नामक दो अजीव
द्रव्य समझना चाहिये
६४ ][ छहढाला