भगवानने उस अधर्मद्रव्यको (बिन-मूर्ति) अमूर्तिक, (निरूपी)
अरूपी कहा है ।
पाँच भेद हैं– पुद्गल, धर्म,
हैं । जो स्वयं गति करते हैं ऐसे जीव और पुद्गलको चलनेमें जो
निमित्तकारण होता है, वह धर्मद्रव्य है तथा जो स्वयं अपने आप
गतिपूर्वक स्थिर रहे हुए जीव और पुद्गलको स्थिर रहनेमें
निमित्तकारण है, वह अधर्मद्रव्य है । जिनेन्द्र भगवानने इन धर्म,
अधर्म द्रव्योंको तथा जो आगे कहे जायेंगे उन आकाश और काल
आनेवाले धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय नामक दो अजीव
द्रव्य समझना चाहिये