Chha Dhala (Hindi). Gatha: 8: Akash, kAl aur Ashravke lakShan AthavA bhed (Dhal 3).

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द्रव्योंको अमूर्तिक (इन्द्रिय-अगोचर) कहा है ।।।।
आकाश, काल और आस्रवके लक्षण अथवा भेद
सकल द्रव्यको वास जासमें, सो आकाश पिछानो
नियत वर्तना निशि-दिन सो, व्यवहारकाल परिमानो ।।
यों अजीव, अब आस्रव सुनिये, मन-वच-काय त्रियोगा
मिथ्या अविरत अरु कषाय, परमाद सहित उपयोगा ।।।।
अन्वयार्थ :(जासमें) जिसमें (सकल) समस्त
(द्रव्यको) द्रव्योंका (वास) निवास है (सो) वह (आकाश) आकाश
द्रव्य (पिछानो) जानना; (वर्तना) स्वयं प्रवर्तित हो और दूसरोंको
प्रवर्तित होनेमें निमित्त हो वह (नियत) निश्चय कालद्रव्य है; तथा
(निशिदिन) रात्रि, दिवस आदि (व्यवहारकाल) व्यवहारकाल
(परिमानो) जानो । (यों) इस प्रकार (अजीव) अजीवतत्त्वका वर्णन
हुआ । (अब) अब (आस्रव) आस्रवतत्त्व (सुनिये) सुनो । (मन-वच-
काय) मन, वचन और कायाके आलम्बनसे आत्माके प्रदेश चंचल
होनेरूप (त्रियोगा) तीन प्रकारके योग तथा मिथ्यात्व, अविरत,
कषाय (अरु) और (परमाद) प्रमाद (सहित) सहित (उपयोगा)
उपयोग आत्माकी प्रवृत्ति वह (आस्रव) आस्रवतत्त्व कहलाता है ।
तीसरी ढाल ][ ६५