Chha Dhala (Hindi).

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भावार्थ :जिसमें छह द्रव्योंका निवास है उस स्थानको
+आकाश कहते हैं । जो अपने आप बदलता है तथा अपने आप
बदलते हुए अन्य द्रव्योंको बदलनेमें निमित्त है, उसे
‘‘निश्चयकाल’’ कहते हैं । रात, दिन, घड़ी, घण्टा आदिको
‘‘व्यवहारकाल’’ कहा जाता है । –इस प्रकार अजीवतत्त्वका वर्णन
हुआ । अब, आस्रवतत्त्वका वर्णन करते हैं । उसके मिथ्यात्व,
अविरत, प्रमाद, कषाय और योग –ऐसे पाँच भेद हैं
।।।।
[आस्रव और बन्ध दोनोंमें भेद;–जीवके मिथ्यात्व-मोह-
राग-द्वेषरूप परिणाम वह भाव-आस्रव हैं और उन मलिन भावोंमें
स्निग्धता वह भाव-बन्ध है
]
+जिस प्रकार किसी बरतनमें पानी भरकर उसमें भस्म (राख) डाली
जाये तो वह समा जाती है; फि र उसमें शर्करा डाली जाये वह भी
समा जाती है; फि र उसमें सुइयाँ डाली जायें तो वे भी समा जाती
हैं; उसीप्रकार आकाश में भी मुख्य अवगाहन-शक्ति है; इसलिये
उसमें सर्वद्रव्य एक साथ रह सकते हैं
एक द्रव्य दूसरे द्रव्यको
रोकता नहीं है
अपनी-अपनी पर्यायरूपसे स्वयं परिणमित होते हुए जीवादिक
द्रव्योंके परिणमनमें जो निमित्त हो उसे कालद्रव्य कहते हैं
जिस
प्रकार कुम्हारके चाकको घूमनेमें धुरी अर्थात् कीली कालद्रव्य
को निश्चयकाल कहते हैं लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं उतने
ही कालद्रव्य (कालाणु) हैं दिन, घड़ी, घण्टा, मास –उसे
व्यवहारकाल कहते हैं
(जैन सिद्धान्त. प्रवेशिका)
६६ ][ छहढाला