Chha Dhala (Hindi). Gatha: 9: Ashrav tattvakA upadesh aur bandh, sanvar, nirjarAkA lakShan (Dhal 3).

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आस्रवत्यागका उपदेश और बन्ध, संवर, निर्जराका लक्षण
ये ही आतमको दुःख-कारण, तातैं इनको तजिये
जीव प्रदेश बंधै विधिसों सो, बंधन कबहुँ न सजिये ।।
शम-दमतैं जो कर्म न आवैं, सो संवर आदरिये
तप-बल तैं विधि-झरन निरजरा, ताहि सदा आचरिये ।।।।
अन्वयार्थ :(ये ही) यह मिथ्यात्वादि ही (आतमको)
आत्माको (दुःख-करण) दुःखके कारण हैं, (तातैं) इसलिये
(इनको) इन मिथ्यात्वादिको (तजिये) छोड़ देना चाहिये (जीव-
प्रदेश) आत्माके प्रदेशोंका (विधि सों) कर्मोंसे (बन्धै) बँधना वह
(बंधन) बन्ध [कहलाता है ] (सो) वह [बन्ध ] (कबहुँ) कभी भी
(न सजिये) नहीं करना चाहिये । (शम) कषायोंका अभाव [और ]
(दम तैं) इन्द्रियों तथा मनको जीतनेसे (कर्म) कर्म (न आवैं)
नहीं आयें वह (संवर) संवरतत्त्व है; (ताहि) उस संवरको
(आदरिये) ग्रहण करना चाहिये । (तपबल तैं) तपकी शक्तिसे
तीसरी ढाल ][ ६७