(इनको) इन मिथ्यात्वादिको (तजिये) छोड़ देना चाहिये (जीव-
प्रदेश) आत्माके प्रदेशोंका (विधि सों) कर्मोंसे (बन्धै) बँधना वह
(बंधन) बन्ध [कहलाता है ] (सो) वह [बन्ध ] (कबहुँ) कभी भी
(न सजिये) नहीं करना चाहिये । (शम) कषायोंका अभाव [और ]
(दम तैं) इन्द्रियों तथा मनको जीतनेसे (कर्म) कर्म (न आवैं)
नहीं आयें वह (संवर) संवरतत्त्व है; (ताहि) उस संवरको
(आदरिये) ग्रहण करना चाहिये । (तपबल तैं) तपकी शक्तिसे