Chha Dhala (Hindi).

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(विधि) कर्मोंका (झरन) एकदेश खिर जाना सो (निरजरा)
निर्जरा है । (ताहि) उस निर्जराको (सदा) सदैव (आचरिये) प्राप्त
करना चाहिये ।
भावार्थ :यह मिथ्यात्वादि ही आत्माको दुःखके कारण
हैं; किन्तु पर पदार्थ दुःखके कारण नहीं हैं; इसलिये अपने
दोषरूप मिथ्याभावोंका अभाव करना चाहिये । स्पर्शोंके साथ
पुद्गलोंका बन्ध, रागादिके साथ जीवका बन्ध और अन्योन्यअवगाह
रूप पुद्गल-जीवात्मक बन्ध कहा है । (प्रवचनसार गाथा १७७)
रागपरिणाम मात्र ऐसा जो भावबन्ध है वह द्रव्यबन्धका हेतु होनेसे
वही निश्चयबन्ध है जो छोड़ने योग्य है ।
(२) मिथ्यात्व और क्रोधादिरूप भाव–इन सबको सामान्य-
रूपसे कषाय कहा जाता है (मोक्षमार्गप्रकाशक, देहली–पृष्ठ ४०)
ऐसे कषायके अभावको शम कहते हैं और दम अर्थात् जो ज्ञेय-
ज्ञायक, संकर दोष टालकर, इन्द्रियोंको जीतकर, ज्ञानस्वभाव द्वारा
अन्य द्रव्यसे अधिक (पृथक् परिपूर्ण) आत्माको जानता है, उसे
निश्चयनयमें स्थित साधु वास्तवमें–जितेन्द्रिय कहते हैं । (समयसार
गाथा–३१)
स्वभाव-परभावके भेदज्ञान द्वारा द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय तथा
उनके विषयोंसे आत्माका स्वरूप भिन्न है–ऐसा जानना उसे
इन्द्रिय-दमन कहते हैं; परन्तु आहारादि तथा पाँच इन्द्रियोंके
विषयरूप बाह्य वस्तुओंके त्यागरूप जो मन्दकषाय है, उससे
वास्तवमें इन्द्रिय-दमन नहीं होता; क्योंकि वह तो शुभराग है, पुण्य
है, इसलिये बन्धका ही कारण है–ऐसा समझना ।
(३) शुद्धात्माश्रित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप शुद्धभाव ही
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