कारण – कार्यभाव[ ३३
समये थाय छे. माटे हे संतो! एवा कारण – कार्यने परिणाम द्वारा
जाणो कारण अने कार्य परिणामथी ज थाय छे.
वस्तुना उपादानना बे भेद कह्या छे, ते कहीए छीएः –
अष्टसहस्त्रीमां१ कह्युं छे के —
✽
त्यक्तात्यक्तात्मरूपं यत् पूर्वापूर्वेण वर्तते ।
कालत्रयेऽपि तद्द्रव्यमुपादानमिति स्मृतम् ।।१।।
यत्स्वरूपं त्यजत्येव यत्रात्यजति सर्वथा ।
तत्रोपादानमर्थस्य क्षणिकं शाश्वतं यथा ।।२।।
अर्थ : – द्रव्यनो त्यक्त स्वभाव तो परिणाम(रूप) – व्यतिरेक
स्वभाव छे, अने अत्यक्त स्वभाव गुणरूप – अन्वयस्वभाव छे. ते गुण
तो पूर्वे हता ते ज रहे छे, परिणाम अपूर्व – अपूर्व थाय छे. आ द्रव्यनुं
उपादान छे ते परिणामने तो तजे छे पण गुणने सर्वथा तजतुं नथी;
तेथी परिणाम क्षणिक उपादान छे अने गुण शाश्वत उपादान छे.
वस्तु उपादानथी सिद्ध छे.
१. जुओ श्लोक ५८ नी टीका, पृ. २१०.
✽ कार्यसर्जक उपादानकारणनुं स्वरूप बताववा माटे आचार्यदेव श्री
विद्यानंदस्वामीए भगवान श्री समन्तभद्राचार्यदेवकृत देवागमस्तोत्रनी कारिका
५८नी ‘अष्टसहस्त्री’ टीकामां पूर्ववर्ती आचार्यना जे उपरोक्त बे श्लोक
मुक्या छे जेनो एक अन्य अर्थ नीचे मुजब पण छे.
(१) अर्थः – जे, (पर्याय-अपेक्षाए) पोताना रूपने छोडतुं होवाथी अपूर्व अर्थात्
नवुं रूप धारण करे छे, अने जे (द्रव्य-अपेक्षाए) पोताना रूपने नहीं छोडतुं
होवाथी, पूर्व अर्थात् मूळरूपथी वर्ते छे ते (द्रव्य-पर्यायात्मक) द्रव्य अर्थात्
पदार्थ ज त्रणे काळमां उपादानकारण छे – एवुं आगममां कह्युं छे.
(२) अर्थः – जे पोताना (मूळ) स्वरूपने सर्वथा छोडी दे छे अथवा जे पोताना
(पर्याय ) स्वरूपने सर्वथा छोडतो नथी, ते पदार्थनुं (पदार्थना कार्यनुं) उपादान
कारण नथी; जेम के (सांख्य अथवा वेदान्त सम्मत सर्वथा अपरिणामी)
शाश्वत तथा (बौद्धसम्मत सर्वथा परिणामी) क्षणिक पदार्थ कार्यनुं
उपादानकारण थई शके नहीं.