कारण – कार्यभाव[ ३५
नाश थाय; उत्पाद-व्यय वगर (वस्तु) अर्थक्रियाकारक न होय अने
अर्थक्रिया वगर वस्तुनी सिद्धि न थाय (वस्तुमां) षट् गुणी वृद्धि-हानि
न थाय; एम थतां (वस्तु) अगुरुलघु न रहे ने वस्तु हलकी – भारे
थईने जड थई जाय, तेथी चिद्ध्रुवता न रहे. बीजो ए दोष – क्षणवर्ती
पर्याय पण नित्य थई जाय, एम थतां अध्रुव पण ध्रुव थई जाय.
वळी केवळ उत्पाद ज मानीए तो बे दोष लागे – एक तो
उत्पादना कारण-व्ययनो अभाव थाय, व्ययनो अभाव थतां उत्पादनो
अभाव थाय. बीजो दोष ए – जो असत्नो उत्पाद थाय तो आकाशना
फूलनी पण उत्पत्ति देखाय पण ए कल्पना जूठी छे.
केवळ व्यय ज मानवामां आवे तो बे दोष लागे – एक तो
विनाशनुं ( – व्ययनुं) कारण जे उत्पाद तेनो अभाव थाय, एम थतां
विनाश पण होय नहि; कारण वगर कार्य होय नहि, बीजो ए दोष –
सत्नो उच्छेद थई जाय; अने सत्नो उच्छेद थतां ज्ञानादि चेतनानो
नाश थई जाय.
माटे (उत्पाद-व्यय-ध्रुव ए) त्रिलक्षणारूप वस्तु छे.१
१. जुओ, प्रवचनसार गा. १०० टीका.