द्रव्यनो सत्उत्पाद अने असत्उत्पाद[ ३७
तेथी सत् उत्पादथी असत् उत्पाद थयो! ( – तो पछी) पर्याय वडे
असत्उत्पाद द्रव्य वडे सत् – उत्पाद — एम शा माटे कहो छो?
तेनुं समाधाान : — पर्याय द्रव्यनुं कारण छे; द्रव्य पर्यायनुं
कारण छे – ए तो (एक बीजाने) कारणरूप छे. परंतु पर्यायनुं कार्य
पर्यायथी ज थाय छे. द्रव्यनुं कार्य द्रव्यथी ज थाय छे; तेथी पर्यायथी
असत्उत्पाद(रूप) कार्य थाय छे (अने) द्रव्यथी सत्उत्पाद (रूप) – थाय
छे. आ कारणकार्य (नो) भेद छे ते विवेकी पामे छे. द्रव्य – समुद्रमांथी
पर्याय – तरंग ऊठे छे त्यारे आनंदनी केलिमां मग्न थईने वर्ते छे.
परिणामप्रवृत्तिथी द्रव्य-गुणनी प्रवृत्ति छे अने वस्तुनी स्थिरता छे,
विश्राम छे; आचरण छे, वेदकता छे, सुखनो आस्वाद छे, उत्पाद –
व्यय छे, षट्गुण वृद्धि-हानि छे; परिणाम ज वस्तुना गुणनो प्रकाश
प्रगट करे छे. गुण-गुणीना विलासनो रस निर्विकल्पदशामां आव्यो छे.
एक वस्तु अनंत गुणनो पुंज छे, वस्तुमां गुण आव्या; वस्तु परिणाम
वेदे त्यारे अनंतगुण पण वेदे, तेथी गुण-गुणी बंने वेदे. सामान्यमां
विशेष छे, विशेषमां सामान्य छे. कह्युं१ छे के —
निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत् खरविषाणवत् ।
सामान्यरहितत्वाच्च विशेषस्तद्वदेव हि ।।९।।
अर्थः – खरेखर विशेष वगरनुं सामान्य गधेडाना शिंगडा समान
छे, अने सामान्य विनानुं होवाथी विशेष पण गधेडाना शिंगडा समान
ज छे.
१. जुओ, आलापपद्धति एकान्तपक्ष दोष अधिकार.