सामान्य – विशेषनुं स्वरूप[ ३९
व्यतिरेक पर्याय जुदा जुदा (नवा नवा) रूप थाय छे तेथी विशेष
छे. आ वस्तुनी लक्षण-शक्तिनां सामान्य – विशेष कह्यां; सकळ
सामान्य-विशेष जे छे ते आमां आवी गया. (आ सामान्य – विशेष)
वस्तुनुं सर्वस्व छे. (वस्तुमां) संज्ञा आदि भेद वडे घणा भेद छे.
आ अर्थ – विचारमां – अन्वय – व्यतिरेकमां सर्वे आवी गया. अनंत
गुणो अने द्रव्य अन्वयमां आव्या, पर्याय व्यतिरेकमां आव्या; (आ
रीते) द्रव्य-गुण-पर्याय आवी जतां (तेमां) सर्व आवी गयुं. तेथी
स्याद्वादनी सिद्धि सामान्य विशेष विना थती नथी. (जो वस्तुने)
अभेदरूप मानो तो, भेद विना गुणने न पामे ( – गुण सिद्ध न
थाय) अने गुण विना गुणीने न पामे तेथी भेद-अभेद बंनेने
मानवाथी वस्तुनी सिद्धि छे. अवक्तव्यतामां कांई कही शकातुं नथी,
वचनथी अगोचर छे, ज्ञानगम्यमां प्रगटे छे. आज सामान्य-
विशेषरूप वस्तु उपर अनंत नयो साधी शकाय छे. तेनुं थोडुंक
विशेषण ( – विवेचन) लखीए छीए.