व्यवहार
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विगेरे एकेक गुणमां कोई जघन्य – उत्कृष्टपणाथी परिणतिभेद करवा,
एक वस्तुना निश्चय – व्यवहार परिणतिथी भेद करवा
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(ए प्रमाणे) ते
सर्वे भेदभाव, व्यवहारपरिणति (एवा) भेद करवा. एवी एवी रीते
एकेकना भेद करवा ते सर्वे भेदभाव व्यवहार नाम पामे.
(३)
गुण बंधाया, गुण छूट्या, द्रव्य बंधायुं, द्रव्य छूट्युं – एवा सर्वे
भावोने पण व्यवहार कहीए.
(४)
वळी चिरकाळना (वि)भावना वशथी, स्वभाव छोडीने द्रव्य-गुण-
पर्यायने अन्यभाव कहीए. (जेम के – ) ज्ञानीने अज्ञानी, सम्यक्त्वीने
मिथ्यात्वी, स्वसमयीने परसमयी, सुखीने दुःखी; अनंत ज्ञान-दर्शन-
चारित्र सुख-वीर्यने अल्परूप कहीए; ज्ञानने अज्ञान, सम्यक्त्वने
मिथ्यात्व, स्थिरने चपळ, सुखने दुःख, उपादेयने हेय, अमूर्तिकने
मूर्तिक, परम शुद्धने अशुद्ध, एकप्रदेशी पुद्गलने बहुप्रदेशी, पुद्गलने
कर्मत्व, एक चेतनरूप जीवने मार्गणा-गुणस्थानादि जेटली परिणति, वडे
निरूपवो (ते व्यवहार छे); वळी, एक जीवने पुण्य-पाप, आस्रव-संवर
( – निर्जरा)
– बंध अने मोक्षपरिणति वडे निरूपवो (ते), अने जेटलुं
वचनपिंडवडे कथन छे ते सर्व व्यवहार नाम पामे.
वळी एक सामान्यथी – समुच्चयथी व्यवहारनो आटलो अर्थ
जाणवो; – आटलो द्रव्य व्यवहार जाणवो के, जे भाव वस्तु साथे
अव्यापकरूप संबंधवाळो होय – वस्तु साथे व्याप्यव्यापक (रूप) एकमेक
संबंधवाळो न होय ते व्यवहार नाम पामे – आवुं व्यवहार भावनुं कथन
द्वादशांग विषे चाल्युं छे ते जाणवुं.
आ प्रमाणे व्यवहारनुं स्वरूप कह्युं.
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