Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration).

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व्यवहार
[ ४७
विगेरे एकेक गुणमां कोई जघन्यउत्कृष्टपणाथी परिणतिभेद करवा,
एक वस्तुना निश्चयव्यवहार परिणतिथी भेद करवा
(ए प्रमाणे) ते
सर्वे भेदभाव, व्यवहारपरिणति (एवा) भेद करवा. एवी एवी रीते
एकेकना भेद करवा ते सर्वे भेदभाव व्यवहार नाम पामे.
(३)
गुण बंधाया, गुण छूट्या, द्रव्य बंधायुं, द्रव्य छूट्युंएवा सर्वे
भावोने पण व्यवहार कहीए.
(४)
वळी चिरकाळना (वि)भावना वशथी, स्वभाव छोडीने द्रव्य-गुण-
पर्यायने अन्यभाव कहीए. (जेम के) ज्ञानीने अज्ञानी, सम्यक्त्वीने
मिथ्यात्वी, स्वसमयीने परसमयी, सुखीने दुःखी; अनंत ज्ञान-दर्शन-
चारित्र सुख-वीर्यने अल्परूप कहीए; ज्ञानने अज्ञान, सम्यक्त्वने
मिथ्यात्व, स्थिरने चपळ, सुखने दुःख, उपादेयने हेय, अमूर्तिकने
मूर्तिक, परम शुद्धने अशुद्ध, एकप्रदेशी पुद्गलने बहुप्रदेशी, पुद्गलने
कर्मत्व, एक चेतनरूप जीवने मार्गणा-गुणस्थानादि जेटली परिणति, वडे
निरूपवो (ते व्यवहार छे); वळी, एक जीवने पुण्य-पाप, आस्रव-संवर
(
निर्जरा)
बंध अने मोक्षपरिणति वडे निरूपवो (ते), अने जेटलुं
वचनपिंडवडे कथन छे ते सर्व व्यवहार नाम पामे.
वळी एक सामान्यथीसमुच्चयथी व्यवहारनो आटलो अर्थ
जाणवो;आटलो द्रव्य व्यवहार जाणवो के, जे भाव वस्तु साथे
अव्यापकरूप संबंधवाळो होयवस्तु साथे व्याप्यव्यापक (रूप) एकमेक
संबंधवाळो न होय ते व्यवहार नाम पामेआवुं व्यवहार भावनुं कथन
द्वादशांग विषे चाल्युं छे ते जाणवुं.
आ प्रमाणे व्यवहारनुं स्वरूप कह्युं.