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चिद्दविलास
ज जोवामां आवे छे, अचेतन द्रव्यना परिणाम विषे ते कदी जोवामां
आवतो नथी. – ए वात निःसंदेह छे. ए प्रमाणे जे विकारभाव (छे,
ते) पोतपोताना द्रव्यना परिणाम विषे ज थाय छे, अने ते ते द्रव्यना
परिणाम आश्रित (ज ते विकार) होय छे, – ते पण निश्चय संज्ञा नाम
पामे इति निश्चयः
वळी, ‘च’ कारथी बीजा पण निश्चयभाव जाणवा. (ते प्रकारोनुं
वर्णन करे छे)ः –
(५) निज वस्तुनी जेटली परिमिति ( – क्षेत्र) छे तेटली परिमिति
विषे ज द्रव्य-गुण-पर्यायनां ज व्याप्य-व्यापक, थईने वर्ते छे, पोतपोतानी
सत्ता विषे ज व्याप्य व्यापक थईने अनादि अनंत रहे छे. – एने पण
निश्चय कहीए.
(६) वळी, जे भाव जे भावनो प्रतिपक्षी-वैरी होय ते तेनी साथे
ज वैर करे, बीजा साथे न करे – एने पण निश्चय कहीए.
(७) जे काळ विषे जे कांई जेम थवानुं छे तेम ज थाय – एने
पण निश्चय कहीए छीए.१
(८) वळी, जे जे भावनी जेवी जेवी रीत वMे प्रवर्तना छे
(ते ते भाव) तेवी तेवी रीत पामीने परिणमे – एने पण निश्चय
कहे छे.
(९) एक पोताना स्वद्रव्यनुं पण निश्चय नाम छे.
(१०) वळी, एक प्रकार आ छे के एक गुणना रूपने मुख्य
लईए त्यारे बीजा सर्वे अनंत निज गुणोनुं जे रूप छे ते, ते (एक)
गुणरूपना भाव थाय छे.
भावार्थ : – कहेवामां तो एक जुदुं रूप लईने कहीए छीए;
१. जुओ स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. ३२१-२-३. समयसार गा. ३०८ थी
३११नी टीका, प्रवचनसार. गाथा ९९ नी टीका.