निश्चय[ ५१
परंतु ते ज एक गुणनुं रूप छे, (अने) ते ज सर्वनो रस छे. वळी,
जो कोई एम ज माने के ‘अन्य रूप नथी, एक ज छे,’ तो त्यां
अनर्थ ऊपजे छे. जेम के एक ज्ञानगुण छे, ते ज्ञान विषे बीजा
गुणनुं रूप नथी – एम जेणे मान्युं ते पुरुषे ज्ञानने चेतनरहित, तेम
ज अस्तित्व – वस्तुत्व – जीवत्व अमूर्तत्व वगेरे सर्व रहित मान्युं. परंतु
एम मानतां ज्ञानगुण कई रीते रह्यो? शा कारणे रह्यो? ते न ज
रह्यो. तेथी अहीं ए वात सिद्ध थई के जे एक एक गुणनुं रूप
छे ते सर्व स्वरस छे (अर्थात् एक गुणना रूपमां बधा गुणोनुं रूप
अभेदपणे आवी जाय छे), आवा सर्व स्वरसने पण निश्चय कहीए.
(१२) वळी, कोई द्रव्य (बीजा) कोई द्रव्य साथे न मळे, कोई
गुण (बीजा) कोई गुण साथे न मळे (अने) कोई पर्याय-शक्ति (बीजी)
कोई पर्यायशक्ति साथे न मळे, आवो जे अमिलनभाव तेने पण निश्चय
कहीए.
निश्चयनो सामान्य अर्थ तो आटलो कहीए – संक्षेपथी आटलो ज
अर्थ जाणवो. निज वस्तु साथे जे भाव व्याप्यव्यापकरूप एकमेक
संबंधवाळो होय तेने निश्चय जाणवो.
(१३) कर्ता भेद विषे (तेम ज) कर्म भेद विषे पण (अने) क्रिया
भेद-विषे पण – ए त्रणेय भेद विषे एक ज स्वभावने देखवो; एक
भावना ए त्रण भेद नीपजे छे, – एवो (जे) एक भाव (तेने) पण
निश्चय कहीए.
(१४) स्वभाव गुप्त छे के प्रगटरूप परिणमे छे (परंतु) तेनी
नास्ति तो नथी, – आवो जे अस्तित्वभाव तेने निश्चय कहीए.
आवा आवा भावोने निश्चय संज्ञा जाणवी. जिनागम विषे एम
कही छे. ए प्रमाणे निश्चयनुं वर्णन पूरुं थयुं.
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