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चिद्दविलास
पर्यायार्थिक नयना प्रकारो
ॠजुसूत्र नय कहीए छीएः – समये समये जे परिणति थाय
ते सूक्ष्म ॠजुसूत्र (एवो) भेद छे (अने) लांबा काळनी मर्यादावाळो
जे स्थूळ पर्याय थाय तेने स्थूळ ॠजुसूत्र कहीए.
दोष रहित शुद्ध शब्द कहेवा तेने शब्दनय कहे छे.
जेटला शब्द तेटला नय.
एक शब्दना अनेक अर्थोमांथी एक अर्थ मुख्य आरूढ थाय तेने
समभिरूढ कहीए, जेम के गो शब्दना अनेक अर्थो छे, परंतु गाय
अर्थने विषे ते समभिरूढ छे. ते समभिरूढना अनेक भेद छे. – सादिरूढ,
अनादिरूढ, सार्थकरूढ, असार्थकरूढ, भेदरूढ, अभेदरूढ, विधिरूढ,
प्रतिषेध रूढ – इत्यादि भेदो छे.
जेवो पदार्थ होय तेवुं ज तेनुं निरूपण करवुं ते एवंभूतनय छे.
जेम के इन्द्रतीति इन्द्रः न शक्रः (अर्थात् जे शासन करे छे ते इन्द्र
छे, शक्र नथी एम कहेवुं) ते एवंभूत छे.
(हवे) पर्यायार्थिक नयना छ भेद छे; (ते कहे छे-✽)
(१) अनादि नित्य पर्याय, जेम के नित्य मेरु आदि.
(२) सादिनित्य पर्याय, जेम के सिद्ध पर्याय.
(३) सत्ताने गौण करीने उत्पाद-व्ययग्राहकस्वभाव
अनित्यशुद्धपर्यायार्थिक; जेम के पर्यायो समये समये विनाशी छे.
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जुओ, आलापपद्धति पृ. ५९ थी ६३; नयचक्र पृ. ६ – ७.