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जीवन शकित
जीवनशक्ति कहीए छीएः –
आ आत्मा अनादिनिधन छे, अनंत गुणयुक्त छे, एक एक
गुणमां अनंतशक्ति छे. प्रथम जीवनशक्ति छे; आ आत्माने कारणभूत
चैतन्यमात्र भाव छे, ते भावने धारण करनारी जीवनशक्ति छे.१ ते
जीवनशक्ति वडे जे जीव्यो, जीवे छे अने जीवशे तेने जीव कहीए. आ
जीवनशक्ति चित्प्रकाशथी शोभायमान द्रव्य विषे छे, गुण विषे छे,
पर्याय विषे छे. तेथी ते सर्वे जीव थया. (द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणे थईने)
जीव तो एक छे, जो जीव त्रण भेदमां होय तो तेना त्रण प्रकार थई
जाय. पण एम तो नथी. द्रव्य-गुण-पर्याय जीवनी अवस्था छे अने जीव
ए त्रणेरूप एक वस्तु छे. जेम (वस्तुना) अनंत (गुणोमां) गुण भेद
छे तेम जीवमां भेद नथी, जीवनुं स्वरूप अभेद छे.
अहीं कोई प्रश्न करे छे के – जीव अभेदरूप छे, तो भेद विना
अभेद कई रीते थयुं? – जो गुण अनंत न होत तो द्रव्य न होत, पर्याय
न होत, तो जीव वस्तु पण न होत. माटे द्रव्य-गुण-पर्यायना भेद
कहेवाथी अभेद सिद्ध थाय छे.
तेनुं समाधान – हे शिष्य! भेद वगर अभेद तो न होय, पण
भेद वस्तुनुं अंग छे. अनेक अंग वडे एक वस्तु कहीए. तेनुं द्रष्टांत
ः – जेम एक नगर छे तेमां घणा महोल्ला छे अने ते महोल्लामां घणां
घर छे. त्यां ते (महोल्ला, मकान वगेरे) जुदां जुदां अंगमां तो नगर
नथी (परंतु) ते सर्वना एक भावरूप नगर छे. जेम एक नरनां अनेक
अंग छे, (त्यां कोई) एक अंगमां नर नथी; सर्व अंगरूप नर छे.
तेम द्रव्यरूप गुणरूप, पर्यायरूप जीव नथी; जीव वस्तु द्रव्य-गुण-पर्यायनुं
१. गुजराती समयसार पृ. ५०३