वीर्यशकित[ ६९
तप एटले तेज; तेज एटले पोतानी तेजस्वी अनंतगुण
चेतनानी प्रभानो प्रकाश तेने निष्पन्न राखवाना सामर्थ्यनुं नाम
निश्चयतपवीर्यशक्ति कहीए. ज्ञानचेतनानो प्रकाश स्वसंवेदन (रूप)
तथा स्वपरप्रकाशक (रूप) १निजप्रभाभारना विकासथी शोभित तेज
(छे). ए ज प्रकारे दर्शन निराकार – उपयोग (रूप) सर्वदर्शित्व(रूप),
सामान्य चेतनाना प्रभाभारना प्रकाश (रूप) तेज (छे) ए ज
प्रमाणे अनंत गुणना तेजपुंजना प्रभाभारनो प्रकाश (ते) द्रव्यनुं तेज
(छे), पर्याय स्वरूपना प्रभाभारनो प्रकाश (ते पर्यायनुं) तेज छे. ए
प्रमाणे द्रव्य-गुण-पर्यायना प्रभाभारनो प्रकाश ते (निश्चय) तप
कहीए, तेने निष्पन्न राखवानुं (जे) सामर्थ्य, तेनुं नाम निश्चय
तपवीर्यशक्ति कहीए.
भाववीर्य
हवे भाववीर्यशक्ति कहीए छीएः — जेना प्रभावथी वस्तु
प्रगटे तेने भाव कहीए. वस्तुनो सर्व स्वरस भाव छे. भाव ते
वस्तुनो स्वभाव छे. वस्तुनुं वस्तुपणुं भावद्वारा जाणीए छीए. जेम
अक्षरार्थ भावार्थ वडे सफळ छे तेम भाववडे वस्तु छे. वस्तुनुं
उपादान अक्रम-क्रम स्वभावभाव छे; तेना त्रण भेद छे – द्रव्यभाव,
गुणभाव (अने) पर्यायभाव. (हवे) द्रव्यभाव कहीए छीए – गुण –
पर्यायना भावना समुदायरूप द्रव्यभाव कहीए. गुणना भावना
अनंत भेद छे. ज्ञान द्रव्य छे, ज्ञान – जाणवारूप शक्तिनो भाव – गुण
छे (अने) ज्ञेयाकार पर्याय द्वारा ज्ञान थाय छे ते पर्याय छे. (ए
रीते) त्रणे (द्रव्य-गुण-पर्याय) ज्ञानना भाववडे सधाय छे. भाव –
गुणवडे गुणी सधाय छे; ते (आ रीते के – ) द्रव्यथी भाव छे, पण
गुणथी गुणी एम कहेतां भावथी ज द्रव्यनी सिद्धि (थाय छे);
१. निजप्रभाभार – निजप्रभानो समूह