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चिद्दविलास
(अपेक्षा)मां ज्ञानरूप द्रव्य, (जाणपणा) लक्षण गुण अने तेनी
परिणति ते पर्याय (एम) भेदवडे (त्रणे) सधाय छे. उपचारथी
समस्त ज्ञेयना द्रव्य-गुण-पर्याय ज्ञानमां आवे छे. उपचारना अनेक
भेद छे ते कहीए छीएः —
[१] स्वजाति उपचार, [२] विजाति उपचार अने [३]
स्वजाति – विजाति उपचार. द्रव्यमां त्रणे उपचार, गुणमां त्रणे उपचार,
पर्यायमां त्रणे उपचार (एम) नव भेद थया. नव स्वजाति, नव
विजाति, नव स्वजाति – विजाति, नव सामान्य ( – ए प्रमाणे) छत्रीश
भेद ज्ञानमां आवे त्यारे ज्ञानमां सधाय छे, ज्ञान अने दर्शन (ए
बंने) गुणो चेतनानी अपेक्षाए स्वजाति छे, लक्षण अपेक्षाए
उपचारथी विजाति छे (अने) बंने अपेक्षा (साथे लेतां) स्वजाति –
विजाति छे एक गुण द्रव्य-गुण-पर्यायने साधे; (तथा) स्वजाति,
विजाति अने मिश्र – ए साधे त्यारे अनंत गुणोमां छत्रीस-छत्रीस भेद
उपचारथी सधाय छे.
[ जैन सिद्धांत दर्पणमां आ संबंधी नीचे प्रमाणे वर्णन छे – ]
एक प्रसिद्ध धर्मनो बीजामां आरोप करवो ते असद्भूत व्यवहारनो
विषय छे; तेना त्रण भेद छेः —
१ – सजाति उपचार, २ – विजाति उपचार,
३ – सजाति विजाति उपचार.
ए त्रणेमांथी दरेकना नव नव भेद थाय छे; ते आ प्रमाणेः —
१. द्रव्यमां द्रव्यनो आरोप, २. द्रव्यमां गुणनो आरोप, ३.
द्रव्यमां पर्यायनो आरोप, ४. गुणमां गुणनो आरोप, ५. गुणमां
द्रव्यनो आरोप, ६. गुणमां पर्यायनो आरोप, ७. पर्यायमां पर्यायनो
आरोप, ८. पर्यायमां गुणनो आरोप, ९. पर्यायमां द्रव्यनो आरोप.
तेमां सजाति द्रव्य-गुण-पर्यायनो एक बीजामां आरोप करवो ते