एक गुणमां सर्व गुणोनुं रूप संभवे छे[ ७३
सजाति उपचार छे. जेम के चंद्रना प्रतिबिंबने चंद्र कहेवो ते सजाति
पर्यायनो सजाति पर्यायमां आरोप छे.
विजाति द्रव्य-गुण-पर्यायनो एक बीजामां आरोप करवो ते
विजाति उपचार छे. जेमके ज्ञानने मूर्त कहेवुं ते विजाति गुणनो
विजाति गुणमां उपचार छे. सजाति – विजाति द्रव्य-गुण-पर्यायमां
आरोप करवो ते सजाति-विजाति उपचार छे, जेम के जीव – अजीवरूप
ज्ञेयो ज्ञाननो विषय होवाथी तेने ज्ञान कहेवुं ते सजाति – विजाति
द्रव्यमां सजाति – विजाति गुणनो आरोप छे. [जुओ जैनसिद्धांत दर्पण
पृ. ३२-३३]
भेद-अभेदवडे द्रव्य-गुण-पर्याय सधाय छे, एम जाणवुं. एक
ज्ञान पोताना स्वभावनुं कर्ता छे, ज्ञाननो भाव ते कर्म छे, ज्ञान
पोताना भाववडे पोताने साधे छे तेथी पोते करण छे. पोतानो स्वभाव
पोताने सोंपे छे तेथी पोते संप्रदान छे. पोताना भावमांथी पोताने
पोते स्थापे छे तेथी अपादान पोते छे, पोतानो आधार पोते छे तेथी
अधिकरण पोते छे. (ए प्रमाणे) आ ज छ कारको एकेक गुणमां
जुदा जुदा अनंत गुण पर्यंत साधवा.
उत्पाद-व्यय-ध्रुव त्रणे गुणे गुणमां साधीए छीए, सूक्ष्म (त्व)
गुण छे, तेना अनंत पर्यायो छे. ज्ञानसूक्ष्म, दर्शनसूक्ष्म, अनंत गुण
सूक्ष्म, [ते सूक्ष्मत्व गुणना पर्यायो छे]. एक गुणसूक्ष्मनी मुख्यतानो
उत्पाद बीजा गुणनी गौणतारूप सूक्ष्मनो व्यय अने सूक्ष्म (त्व)
सत्तावडे ध्रुव – ए प्रमाणे सूक्ष्म (त्व-गुण)मां उत्पाद-व्यय-ध्रुव उतर्या.
ए रीते सर्वे गुणोमां उत्पाद-व्यय-ध्रुव सधाय छे.