एक समयना कारण-कार्यमां त्रण भेद[ ८३
नय’नी विवक्षाथी अन्य गुणना कारणथी अन्य गुणनुं कार्य थाय छे;
‘अन्यगुणग्राहक-निरपेक्ष, केवळ ‘निजगुणग्राहकनय’नी विवक्षाथी निज
गुण पोते ज निजनां कारणकार्यने करे छे.
द्रव्य विना गुण होय नहि, माटे गुणकार्यनुं द्रव्य कारण छे;
पर्याय न होय तो गुणरूप कोण परिणमे? माटे पर्याय कारण छे,
गुण कार्य छे. ए प्रमाणे गुणकारणकार्यना अनेक भेद छे.
हवे पर्यायना कारणकार्य कहीए छीएः —
पर्यायनां कारणकार्य
(१) द्रव्य (तथा) गुण ते पर्यायनुं कारण छे अने पर्याय कार्य
छे; केम के द्रव्य विना पर्याय होय नहि, — जेम समुद्र विना तरंग होतां
नथी तेम आ प्रमाणे पर्यायनो आधार द्रव्य छे, द्रव्यमांथी ज परिणति
उठे छे. (आलापपद्धत्तिमांना पर्याय अधिकारमां) कह्युं छे के –
अनाद्यनिधने द्रव्ये स्वपर्यायाः प्रतिक्षणं ।
उन्मज्जंति निमज्जंति जलकल्लोलवज्जले ।। पृ. २६.
(अर्थः — जळमां जळना कल्लोलोनी समान अनादिनिधन
द्रव्यमां द्रव्यना निज पर्यायो प्रत्येक समयमां उत्पन्न थाय छे तथा
नष्ट थाय छे.) आ प्रमाणे पर्यायनुं कारण द्रव्य छे.
(२) हवे गुण ते पर्यायनुं कारण छे ए कहीए छीएः —
गुणोनो समुदाय द्रव्य छे; गुण विना द्रव्य न होय, अने द्रव्य विना
पर्याय न होय, – ए रीते गुण ते पर्यायनुं कारण छे. – एक तो आ
विशेषण ( – प्रकार) छे. अने बीजुं गुण विना गुणपरिणति न होय
माटे गुण, पर्यायनुं कारण छे. गुण पर्याय (रूपे) परिणमे छे त्यारे
गुणपरिणति (एवुं) नाम पामे छे, माटे गुण कारण छे अने पर्याय
कार्य छे.