Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Parmatma Swarupani Praptino Upay Samykatvna 67 Prakar.

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परमात्मस्वरुपनी प्राप्तिनो उपाय
हवे शिष्य प्रश्न करे छे केहे प्रभो! एवा परमात्मानुं स्वरूप
कई रीते पामीए? ते कहो. त्यारे ते शिष्यने परमात्माने पामवाना
निमित्ते हवे कथन करीए छीए. (जीव) अंतरात्मा थईने परमात्माने
ध्यावे छे.
ते अंतरात्मा(पणुं) चोथा गुणस्थानथी शरू करीने बारमा
गुणस्थान सुधी छे. तेनुं कथन संक्षेपथी लखीए छीए.
चोथा गुणस्थानवाळो जीव श्री सर्वज्ञे कहेला वस्तुस्वरूपने चिंतवे
छे, तेने सम्यक्त्व थयुं छे ते सम्यक्त्वना ६७ भेद छे. ते कहीए छीए.
सम्यक्त्वना ६७ प्रकार
(१४) प्रथम, श्रद्धानना चार भेद छे तेना प्रथम,
परमार्थसंस्तवन, १; बीजो मुनित परमार्थ २. त्रीजो यतिजनसेवा ३;
अने चोथो, कुद्रष्टिपरित्याग ४. ए चार भेदमांथी पहेलो भेद कहीए
छीए.
१. (परमार्थसंस्तव) सात तत्त्वो छे. तेमनुं स्वरूप ज्ञाता चिंतवे
छे. चेतना लक्षण, दर्शनज्ञानरूप उपयोगआदि अनंत शक्ति सहित
अनंत गुणोथी शोभित मारुं स्वरूप छे; अनादिथी परसंयोग साथे मळ्यो
छे, तो पण (मारो) ज्ञान उपयोग मारा स्वरूपमां ज्ञेयाकार थाय छे, पर
ज्ञेयरूप थतो नथी; (मारी) ज्ञानशक्ति अविकाररूप अखंडित रहे छे.
ज्ञेयोनुं अवलंबन करे छे, (पण) निश्चयथी पर ज्ञेयोने स्पर्शतुं नथी;
(उपयोग) परने देखतो (होवा) छतां अणदेखतो छे, पराचरण करवा
छतां अकर्ता छे
एवा उपयोगना प्रतीतिभावने श्रद्धे छे. अजीवादि
१. मोक्ष प्रभृत ७.