Gurudevshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 278.

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गुरुदेवश्रीनां वचनामृत

अपूर्ण दशा वखते पण परिपूर्ण रहे छे, सदाशुद्ध छे, कृतकृत्य भगवान छे. जेम रंगित दशा वखते स्फटिक- मणिना विद्यमान निर्मळ स्वभावनुं भान थई शके छे, तेम विकारी, अधूरी दशा वखते पण जीवना विद्यमान निर्विकारी, परिपूर्ण स्वभावनुं भान थई शके छे. आवा शुद्धस्वभावना अनुभव विना मोक्षमार्गनो प्रारंभ पण थतो नथी, मुनिपणुं पण नरकादिनां दुःखोना डरथी के बीजा कोई हेतुए पळाय छे. ‘हुं कृतकृत्य छुं’ परिपूर्ण छुं, सहजानंद छुं, मारे कांई जोईतुं नथी’ एवी परम उपेक्षारूप, सहज उदासीनतारूप, स्वाभाविक तटस्थतारूप मुनिपणुं द्रव्यस्वभावना अनुभव विना कदी आवतुं नथी. आवा शुद्धद्रव्यस्वभावना ज्ञायकस्वभावना निर्णयना पुरुषार्थ प्रत्ये, तेनी लगनी प्रत्ये वळवानो प्रयास आत्मार्थीओएभवभ्रमणथी मूंझायेला मुमुक्षुओएकरवा जेवो छे. २७७.

जेने आत्मानी खरेखरी रुचि जागे तेने चोवीशे कलाक एनुं ज चिंतन, घोलन ने खटक रह्या करे, ऊंघमां पण एनुं ए रटण चाल्या करे. अरे! नरकमां पडेलो नारकी भीषण वेदनामां पड्यो होय ते वखते पण, पूर्वे सत् सांभळ्युं होय तेनुं स्मरण करी, फडाक