दईने अंदरमां ऊतरी जाय छे; एने प्रतिकूळता नडती ज नथी ने! स्वर्गनो जीव स्वर्गनी अनुकूळतामां पड्यो होय तोपण तेनुं लक्ष छोडी अंदरमां ऊतरी जाय छे. अहीं जराक प्रतिकूळता होय तो ‘अरेरे! मारे आम छे ने तेम छे’ – एम करी करीने अनंत काळ गुमाव्यो. हवे एनुं लक्ष छोडी अंदरमां ऊतरी जा ने! भाई! आ विना बीजो कोई सुखनो मार्ग नथी. २७८.
आत्मचिंतनमां क्यांय गुणभेदनी के रागनी मुख्यता नथी, विकल्पनुं जोर नथी, पण ज्ञानमां परम ज्ञायक- स्वभावना कोई अचिंत्य महिमानुं जोर छे, अने तेना ज जोरे निर्विकल्प थईने मुमुक्षुजीव आत्माने साक्षात् स्वानुभवमां लई ले छे; त्यां कोई विकल्प रहेता नथी. आ रीते भेद-विकल्प वच्चे आवता होवा छतां स्वभावना महिमाना जोरे मुमुक्षुजीव तेने ओळंगी जईने स्वानुभूतिमां पहोंची जाय छे. २७९.
लींडीपीपरनो दाणो कदे नानो अने स्वादे अल्प तीखाशवाळो होवा छतां तेनामां चोसठ पहोरी