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तीखाशनी — पूर्ण तीखाशनी शक्ति सदा भरपूर छे. ए द्रष्टान्ते आत्मा पण कदे शरीरप्रमाण अने भावे अल्प होवा छतां तेनामां परिपूर्ण सर्वज्ञस्वभाव, आनंदस्वभाव भरेलो छे. लींडीपीपरने चोसठ पहोर घूंटवाथी तेनी पर्यायमां जेम पूर्ण तीखाश प्रगट थाय छे, तेम रुचिने अंतर्मुख वाळीने स्वरूपनुं घूंटण करतां करतां आत्मानी पर्यायमां पूर्ण स्वरूप प्रगट थई जाय छे. २८०.
प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र छे. हुं पण एक स्वतंत्र पदार्थ छुं, मने कर्म रोकी शके नहि.
प्रश्नः — महाराज! बे जीवोने १४८ कर्मप्रकारो संबंधी सर्व भेदप्रभेदोनां प्रकृति-प्रदेश-स्थिति-अनुभाग बधुंय बराबर एक सरखुं होय तो ते जीवो उत्तरवर्ती क्षणे सरखा भाव करे के भिन्नभिन्न प्रकारना?
उत्तरः — भिन्न भिन्न प्रकारना.
प्रश्नः — बंने जीवोनी शक्ति तो पूरी छे अने आवरण बराबर सरखां छे, तो पछी भाव भिन्नभिन्न प्रकारना केम करी शके?
उत्तरः — ‘अकारण पारिणामिक द्रव्य छे’; अर्थात् जीव जेनुं कोई कारण नथी एवा भावे स्वतंत्रपणे