Gurudevshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 284-285.

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गुरुदेवश्रीनां वचनामृत

अप्रमत्तध्यान थई जाय छे, सहजपणे स्वरूपमां लीन थई जाय छे.एम वारंवार मुनिराज प्रमत्त-अप्रमत्त दशामां झूलता होय छे. आवी मुनिराजनी निद्रा छे; तेओ सामान्य माणसनी जेम कलाकोना कलाको सुधी निद्रामां घोर्या न करे. अंतर्मुहूर्त सिवाय वधारे काळ छठ्ठे गुणस्थाने मुनिराज रहेता ज नथी. मुनिराजने पाछली राते क्षणवार झोलुं आवे, ते सिवाय तेमने झाझी निद्रा ज न आवे एवी तेमनी सहज अंतरदशा छे. २८३.

सवारमां जेने राजसिंहासन उपर देख्यो होय ते ज सांजे स्मशानमां राख थतो देखाय छे. आवा प्रसंगो तो संसारमां अनेक देखाय छे, छतां मोहमूढ जीवोने वैराग्य आवतो नथी. बापु! संसारने अनित्य जाणीने तुं आत्मा तरफ वळ. एक वार तारा आत्मा तरफ जो. बहारना भावो अनंत काळ कर्या छतां शान्ति न मळी, माटे हवे तो अंतर्मुख था. आ संसार के संसारना संयोगो स्वप्ने पण इच्छवा जेवा नथी. अंतरनुं एक चिदानंद तत्त्व ज भावना करवा जेवुं छे. २८४.

स्वभावने रस्ते सत्य आवे अने अज्ञानने रस्ते