[ १३ ]
अंतरहृदयमां करुणानो पिंड छे,
द्रढताने नहि पार. जन्म्या० ३.
दर्शनथी सत् रुचि जागे छे,
वाणीथी अंतर पलटाय; जन्म्या०
सद्गुरुदेवा अमृत पीरसता,
सेवक वारी वारी जाय. जन्म्या० ४.
सिंहकेसरीना सिंहनादेथी,
हलाव्युं छे आखुं हिंद, जन्म्या०
सुवर्णपुरीमां नित्य नित्य गाजता,
आत्म-बंसी केरा सुर. जन्म्या० ५.
ज्ञाता-अकर्तानुं स्वरूप समजावे,
स्वपरनो बतावे भेद, जन्म्या०
कल्पवृक्ष अम आंगणे फळियुं,
मनवांछित दातार. जन्म्या० ६.
श्री गुरुदेवनी चरणसेवाथी,
भवना आवे छे अंत, जन्म्या०
तन-मन-धन प्रभु चरणे अर्पु;
तोये पूरुं नव थाय, जन्म्या० ७.
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१२. तुज पादपंकज ज्यां थयां....
तुज पादपंकज ज्यां थयां ते देशने पण धन्य छे;
ए गाम – पुरने धन्य छे, ए मात कुळ ज वन्द्य छे. १.
तारां कर्यां दर्शन अरे! ते लोक पण कृतपुण्य छे;
तुज पादथी स्पर्शाई एवी धूलिने पण धन्य छे. २.