आदर्श साधक तुं थयो, वैराग्य वचनातीत छे. ३.
वैराग्यमूर्ति, शांतमुद्रा, ज्ञाननो अवतार तुं;
ओ देवना देवेन्द्र वहाला! गुण तारा शुं कथुं? ४.
अनुभव महीं आनंदतो सापेक्ष द्रष्टि तुं धरे;
दुनिया बिचारी बावरी तुज दिल देखे क्यां अरे. ५.
तारा हृदयना तारमां रणकार प्रभुना नामना;
ए नाम ‘सोहं’ नामनुं, भाषा परा ज्यां काम ना. ६.
अध्यात्मनी वातो करे, अध्यात्मनी द्रष्टि धरे;
निज देह
काया अने वाणी
छाया छवाये शांतिनी, तुं शांतमूर्ते! ज्यां रहे. ९.
अध्यात्ममूर्ति, शान्तमुद्रा, ज्ञाननो अवतार तुं;
जगना तारणहाराने मारुं दिल नमे.
धर्मध्वज फरके छे मोरे मंदिरिये;
स्वाध्यायमंदिर स्थपाया अम आंगणिये.
अद्भुत योगिराज अमारां धाम दीपाव्यां;