ये वचन तुम्हारे सुधाभरे,
जगभरका सब संताप हरे;
अति कूट-कूट कर भरी हुई,
स्वदया तुम्हारी आंखोंमें. ५.
तुम जीवन-मार्ग दिखाते हो,
चहुं गतिसे हमें बचाते हो;
लख तुम्हें हर्ष उभराता है,
हे नाथ! हमारी आखोंमें. ६.
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५४. यह संताxका देश है
यह संतोका देश है, दुखका नहीं प्रवेश है,
स्वर्णपुरी है नाम अहो! यहां नहीं कीटका लेश है;
— यह संतोका०
उमरालाके शुभ प्रांगणमें श्रेष्ठी ‘मोती’ तात हैं,
‘उजमबा’के राजदुलारेका मंगल अवतार है;
तीर्थसमा पावन मन है, खिला हुआ नंदनवन है,
मनमोहक गुरुमुद्रा पर यह न्योछावर सब जगजन हैं;
— यह संतोका० १.
गुरुवरके पावन चरणोंसे फैली हैं हरियालियां,
शांतिपंथका मार्ग दिखाते छाई हैं खुशियालियां;
मुक्तिके दातार हैं, जगके तारणहार हैं,
जगत शिरोमणि ‘कहानगुरुवर’ शासनके शणगार हैं;
— यह संतोका० २.
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