Hoon Parmatma-Gujarati (Devanagari transliteration). Pravachan: 9-11.

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प०] [हुं
[प्रवचन नं. ९]
वीतराग सर्वज्ञदेवनी दिव्यध्वनिनो सारः-
तुं परमात्मा ज छो एम अनुभव कर
[श्री योगसार उपर परम पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन, ता. १प-६-६६]
आ योगसार चाले छे. तेनी र१ मी गाथामां कहे छे के आत्मा ज जिनवर छे-
ए सिद्धांतनो सार छे. चार अनुयोगनो सार, सर्वे सिद्धांतनो सार, दिव्यध्वनिनो सार
शुं छे? ते आ गाथामां कहेवामां आवे छे.
जो जिणु सो अप्पा मुणहु इहु सिद्धंतहं सारु ।
इउ जाणेविणु जोइयहो छंडहु मायाचारु ।। २१।।
जिनवर ते आतम लखो, ए सिद्धांतिक सार;
एम जाणी योगीजनो, त्यागो मायाचार.
र१.
भगवाननी वाणीमां-चारे अनुयोगमां एम आव्युं के जे जिनेन्द्र छे ते ज
आत्मा छे एम मनन करो. पोते सर्वज्ञ ने वीतराग थया पछी जे वाणीमां आव्युं ते
एम आव्युं के अमे जे छीए तेटलो ज तुं छो ने तुं छो ते अमे छीए-स्वरूपे
परमेश्वरना स्वरूपमां ने आत्माना स्वरूपमां कांई फेर नथी. वस्तु तरीके बे भिन्न छे
पण भाव तरीके फेर नथी.
जे आत्माओए पोताना स्वरूपने वीतराग ज्ञाताद्रष्टा तरीके जाणीने भेदनुं लक्ष
छोडी दईने अभेद चैतन्यनुं साधन कर्युं ते आत्माओनी कथाने पुराण कहे छे. तीर्थंकर,
चक्रवर्ती, वासुदेव, बळदेवनुं एमां वर्णन छे. ए बधां वर्णनमां शुं आव्युं? के ए बधा
सलाका पुरुषोए वीतराग जेवो ज हुं आत्मा छुं, एमने मोक्ष प्रगट थई गयो ने मारे
मोक्ष स्वभावमां पडेलो ज छे एम आत्मतत्त्वने वीतराग परमात्मा जेवो ते सलाका
पुरुषोए जाण्यो हतो ए ज प्रथमानुयोगमां कहेवानुं तात्पर्य-सार छे.
करणानुयोगनो सार शुं छे?-के करणानुयोगमां जे कह्युं के कर्म निमित्त छे, तेना
निमित्ते विकार थाय, अनेक प्रकारनी अवस्थाओ थाय पण एनाथी रहित आत्मा छे
ए कहेवानो आशय छे. करणानुयोगमां कहेवानो आशय ए छे के कर्म एक चीज छे,
तेना लक्षे जीवनी अनेक अवस्थाओ थाय छे अने एना लक्षे केवा परिणाम होय छे ते
बतावीने ए बधां विकारी परिणाम ने कर्मथी रहित तुं छो एम बताव्युं छे. परंतु
कर्मना लईने तुं दुःखी थयो छो के तेनाथी सहित तुं छो एम त्यां नथी बताववुं.
वर्तमान पर्यायमां

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परमात्मा] [प१
कर्म ने विकारनुं सहितपणुं-संबंध छे पण वस्तुमां एनो संबंध नथी एम बतावीने
आत्मा वीतराग परमात्मा समान छे-ए करणानुयोगना कहेवानो सार छे.
सर्वज्ञदेवनुं जे कथन आव्युं ते सर्वज्ञ ने वीतराग थया पछी आव्युं छे ने! तेथी
तेमां शुं आवे?-के तुं सर्वज्ञ ने वीतराग था ते माटे चारे अनुयोग कह्यां छे. भगवान
आत्मा परमात्मा समान छे. भाई! विकार सहित कह्यो ते रहितपणे बताववा माटे कह्युं
छे, एनुं सहितपणुं वस्तुमां नथी ए बताववा माटे सहितपणुं बताव्युं छे. केम के चारे
अनुयोगनुं तात्पर्य तो वीतरागता छे, ए वीतरागता क्यारे आवे? ज्ञानावरणीए
ज्ञानने रोकयुं-एम बताव्युं एटले शुं?-के तुं ज्यारे ज्ञाननी अवस्था हीणी कर त्यारे
तेमां ज्ञानावरणी निमित्त छे; परंतु ए बताववानो हेतु शुं छे?-के हीनदशा ने
निमित्तनो आश्रय छोड, त्यां रोकवा माटे ए कह्युं नथी पण तेनो आश्रय छोडावीने
वीतरागता बताववा माटे कह्युं छे, परमात्मा थवा माटे कह्युं छे. अल्पज्ञपरिणामना
आदर माटे ए वात नथी करी. अल्पदर्शन थाय, अल्पवीर्य थाय, तारी अल्पदशा
ताराथी थाय ए बतावीने तुं पूर्णानंद अखंड आत्मा छो ने हुं परमात्मा थयो तेवो
परमात्मा तुं थई शके तेवो छो-एम बताववा माटेनुं ए कथन छे.
जिनेन्द्र छे ते ज आत्मा छे एटले के एवो ज आत्मा छे एवुं मनन करो. चारे
अनुयोगमां आ ज कह्युं छे. चरणानुयोगमां पण जेणे शुद्धात्मा जिन समान जाण्यो छे,
एना आश्रये शुद्धता प्रगट थई छे ते भूमिकाना प्रमाणमां ते जीवने-मुनिने ने
श्रावकने रागना आचरणनो भाव-व्रतादिनो केवो होय ए त्यां बताव्युं छे. परंतु
एकला रागना आचरण खातर त्यां ए आचरण बताव्युं नथी.
रागनो ने विकल्पनो आश्रय छोडी, निमित्तनो ने अल्पज्ञतानो आश्रय छोडी,
सर्वज्ञ परमात्मा सर्वज्ञ थया. तारे पण सर्वज्ञ परमात्मा थवुं होय तो अमारा जेवुं तुं
कर एटले के अमारा जेवो तुं छो एम नक्की कर. हुं पूरण परमात्मा वीतराग
परमेश्वर छुं-वस्तुस्वरूपे; अल्पज्ञता ने राग पर्यायमां छे ए आदरवा लायक नथी-एम
चरणानुयोगमां पण कह्युं छे.
श्रावकनुं ने मुनिनुं आचरण-व्यवहार केवो होय ते चरणानुयोगमां कह्युं छे.
एवो व्यवहार कोने होय?-के निश्चय शुद्धता ज्यां प्रगटी होय त्यां तेवो व्यवहार होय.
एवी निश्चय शुद्धता क्यां होय?-के हुं वीतराग समान परमात्मा छुं, एकलो ज्ञाताद्रष्टा
परिपूर्ण परमात्मा छुं एवुं भान होय त्यां निश्चय शुद्धता होय अने एवा भाननी
भूमिकामां बाकी रहेलां आचरणनो राग केवो होय ए चरणानुयोगमां कह्युं छे, तेथी
चरणानुयोगनो सार तो आत्मा ज छे, रागनी क्रिया कांई सार नथी. भेदथी बताव्यो
छे तो अभेद, भेद कांई सार नथी. व्यवहारथी बताव्यो छे तो निश्चय, व्यवहार कांई
सार नथी. व्यवहारनुं आचरण बतावीने त्यां निश्चय केवो होय ते बताव्युं छे.

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पर] [हुं
अहीं चोकखी वात करी छे के वीतराग ते आत्मा. वीतराग सर्वज्ञ अने आत्मा
एक छे एम नहि पण जे शुद्ध चिदानंद सर्वज्ञ परमात्मा छे एवो ज तुं ज्ञाताद्रष्टानो
कंद आत्मा छो. आत्मा तद्न वीतरागनो पिंड ज छे. परमात्मा पर्याये वीतराग पिंड
थई गया ने तुं वस्तुए वीतराग पिंड ज छो. जाणवा-देखवानी क्रिया सिवाय कोई
एनी क्रिया छे ज नहि.-एम तुं आत्माने जिन सरखो जाण.-एम चरणानुयोगनुं
कहेवुं छे.
द्रव्यानुयोगमां तो आ ज कह्युं छे. आत्माने अभेद बताववो छे. भेदथी बतावे
तोपण कांई भेद बताववो नथी, व्यवहारथी बतावे तोपण कांई व्यवहार बताववो
नथी, बताव्यो छे तो एक अभेद. आ वस्तु पूरण परमात्मा छे, महा सत् स्वरूप
भगवान चिदानंद परमात्मा तुं छो. अनंता परमात्मा जेना गर्भमां पडया छे ने तेनो
प्रसव करवानी ताकात जेमां छे एवो तुं आत्मा छे रागने प्रगट करे ते आत्मा नहि,
ते आत्मामां छे नहि, अल्पज्ञता रहे ए आत्मामां छे नहि एम कहे छे आहाहा!
दीवाळी आवे ने वाणिया चोपडा मेळवे ने?-एम आ केवळज्ञान पामवाना
टाणा छे. आहाहा! संसारनो संकेल ने मोक्षनो विस्तार! चार अनुयोगना सिद्धांतनो
सार आ छे के संसारनो अभाव ने मोक्षनी उत्पत्ति. आत्मा परमात्मा समान छे एम
जाण्या विना एने स्वभावनो आश्रय नहि थाय ने अल्पज्ञ ने रागनो आश्रय नहि
टळे ने सर्वज्ञ वीतराग नहि थाय. आहाहा! आ कांई वातो नथी पण वस्तुनुं स्वरूप
ज आवुं छे.
सिद्धनगरमां अनंता सिद्धो बिराजे छे. तेओए पहेलां बहारथी नजर संकेलीने
अंदरनो विस्तार कर्यो हतो, तुं पण बहारथी संकेलो करी नाख. हुं तो पूरण अभेद
परमात्मा ज छुं, मारे ने परमात्माने कांई फेर नथी एम फेर काढी नाखनारने फेर छूटी
जशे. आहाहा! दिगंबर संतोनी कोई पण गाथा ल्यो पण संतोनी कथन शैली
अलौकिक छे! परमात्मा परमेश्वरे जे धर्म कह्यो तेने दिगंबर संतोए धारीने ढंढेरो
पीटयो छे!
धर्मधूरंधर योगीन्द्रदेव पोकार करे छे के अरे! आत्मा! तुं परमात्मा जेवो ने तुं
जिनमां ने तारामां फेर पाडे छो? फेर पाडीश तो फेर के दी छूटशे? तेथी कहे छे के हुं
रागवाळो, अल्पज्ञतावाळो एम मनन नहि करो पण जे जिनेन्द्र छे ते ज हुं छुं एवुं
मनन करो! अरेरे, हुं अल्पज्ञ छुं, मारामां आवी कांई ताकात होती हशे? -ए वात
रहेवा दे भाई! हुं तो पूरण परमात्मा थवाने लायक छुं-एम नहि पण पूरण
परमात्मा अत्यारे हुं छुं-एम मनन कर! आहाहा!
हुं पोते ज द्रव्यस्वभावे परमात्मा छुं मारामां ने परमात्मामां फेर नथी.-एम
मनन कर, आ सिद्धांतनो सार छे. चार अनुयोगना लाखो कथननो आ सार छे.
वीतरागनी बधी वाणीना शास्त्रोनो, दिव्यध्वनिनो सार तो आ छे के परमात्मा समान
आत्मा जाणवो. सर्वज्ञ ने वीतरागस्वरूप हुं आत्मा छुं एम अंर्तद्रष्टि कर तो तुं
पर्यायमां परमात्मा थया विना रहीश नहि, तुं परमात्मा थया विना रही शकीश नहि.

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परमात्मा] [प३
मार धडाक पहेलेथी! तुं पामर छो के प्रभु छे! तारे शुं स्वीकारवुं छे?
पामरपणुं स्वीकारे पामरपणुं कदी नहि जाय! प्रभुपणे स्वीकार्येथी पामरपणुं ऊभुं नहि
रहे! भगवान आत्मा-हुं पोते द्रव्ये परमेश्वरस्वरूपे ज छुं-एम ज्यां परमेश्वरस्वरूपनो
विश्वास आव्यो तो तुं वीतराग थया विना रहीश ज नहि. द्रष्टिमां वीतराग थयो ते
स्थिरताए वीतराग थईने अल्पकाळमां केवळज्ञान लेशे.-एम अहीं वात करे छे. अरे!
अमे क्यारे वीतराग थईशुं? शुं थशे?-ए बधी लप मूक ने! तुं वीतराग परमात्मा
छो ज! आखो भगवान आत्मा जिनेश्वर जेवो पूर्णानंद परमात्मा छे ज, बधा एवा
भगवान छे हो!-एने तुं जो ने भाई! अल्पज्ञता ने राग ए कांई आत्मा छे? ए
तो व्यवहार-आत्मा छे. जे आत्मा छे ए तो अल्पज्ञता, राग ने निमित्त विनानो छे,
एनी सामुं जो ने!
आम जाणीने हे धर्मी जीव! मायाचार छोडी दे! एटले! आ अल्पराग छे....
राग करतां करतां थशे.....एवी माया छोडी दे! राग करीशुं तो आम थशे ने पुण्यनी
क्रिया लोकोने बतावुं-ए बधी मायाचारी छोडी दे! रागनी क्रिया करीने हुं साधु छुं एम
लोकोने तारे बताववुं छे?
जिन सोही है आतमा ने अन्य सोही है करम,
येही वचनसे समज ले जिन-वचनका मरम.
--एम बनारसीदासे कह्युं छे.
आहाहा! भगवान एने मोटो कहेवा जाय त्यां आ भाई सा’ब कहे ना...
ना...ना...एवो मोटो हुं न होउं! पण एला बहु मोटो कहीने, जेम पैसावाळाने बहु
मोटो कहीने पैसा लूंटी ले-फाळो उघरावी ले, तेम भगवाने तने मोटो ठरावीने शुं करवुं
हशे?-के तारी पामरता लूंटवी छे! कंई तारा पैसा लूंटवा नथी हो! !
आहाहा! परमात्मा ने मारामां कांई फेर नथी-एम पोतानी द्रष्टिमां भगवान
आत्माने समभावी वीतराग पूर्णानंद तरीके देखतो, वीतरागमां ने आत्मामां क्यांय
फेर न देखतो, सिद्धांतना सारने मायाचार रहित थईने पामी जाय छे.
जेनाथी अंदर भगवान मोटो थाय छे, एनी मोटपथी एने तुं देखने! एनी
शोभाथी तुं शोभने! राग द्वारा, विकल्प द्वारा मोटप मानवी छोडी दे! बहु वाणी
मळवाथी के वाणीना उपदेश द्वारा मोटप मानवी छोडी दे! ए तो मायाचार छे, एने
मूकने पडती! तारी मोटप तो अंदर प्रभु प्रभुताथी बिराजे छे तेमां छे, तेना शरणमां
जतां शांति ने वीतरागता प्रगट थशे.
अमने बहु आवडे छे, हजारो माणसोने समजावीए, लाखो पुस्तको बनावीए-
ए ते कांई तारा आचरण छे के तेनाथी तुं मोटप मनावी रह्यो छो! भगवान पोते
परमात्मा समान छे एवुं अंतरमां जाणीने ठरे तेने मोटपनो लाभ मळे छे, बाकी बधुं
धूळधाणी छे! माटे विकल्पनी जाळ द्वारा ने शरीरनी स्थिति द्वारा मोटप न मानीश,
एनाथी मोटप

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प४] [हुं
न करीश. अमने बहु कहेतां समजावतां आवडे छे, अमे मोटा आचार्य थया छीए,
प००-प०० साधुओना उपरी-मोटा करीने अमने पदवी आपी छे-एवाथी मोटप
मानवी रहेवा दे!-एम आ र१मी गाथामां कह्युं.
हवे रर मी गाथा कहे छे. पहेलां जिन ते आत्मा कह्युं हतुं ने? हवे एटलो भेद
काढी नाखीने हुं ज परमात्मा छुं-एम अनुभव कर एम कहे छे.
वीतराग सर्वज्ञदेव त्रिलोकनाथ परमात्मा सो इन्द्रोनी उपस्थितिमां
समवसरणमां लाखो करोडो देवोनी हाजरीमां एम फरमावता हता के तुं परमात्मा छो
एम नक्की कर. भगवान! तमे परमात्मा छो एटलुं तो अमने नक्की करवा द्यो! -के
ए नक्की क्यारे थशे?-के ज्यारे तुं परमात्मा छो एवो अनुभव थशे त्यारे आ
परमात्मा छे एवो व्यवहार तने नक्की थशे. निश्चयनुं नक्की थया विना व्यवहार नक्की
थशे नहि. ते वात कहे छेः- -
जो परमप्पा सो जि हउं सो परमप्पु ।
इउ जाणेविणु जोइया अण्णु म करहु वियप्पु ।। २२।।
जे परमात्मा ते ज हुं, जे हुं ते परमात्मा;
एम जाणी हे योगीजन! करो न कांई विकल्प. रर.
कहे छे के भाई! हे धर्मीजीव! जे परमात्मा छे ते ज हुं छुं, परमात्माने विकल्प
नथी, परमात्मा बोलता नथी, परमात्मा बोलवामां आवता नथी-एवो ज हुं आत्मा
परमात्मा छुं एम द्रष्टिमां ले.
बीजा जेटला विकल्पो छे-बीजाने समजाववाना, शास्त्र रचवाना, एनाथी तुं
मोटप मानीश तो ए वस्तुमां नथी. तेथी हवे बधी शास्त्रचर्चा छोडीने आ कर एम
कहे छे. क्यां सुधी तारे शास्त्रनी चर्चाओ लखवी छे? शास्त्रमां आ कह्युं छे, आ
शास्त्रमां आ कह्युं छे ने आ शास्त्रमां कह्युं छे-ए तो बधी विकल्पनी जाळ छे.
जे परमात्मा छे ते ज हुं छुं. परमात्मा जेवो जाण एम नहि, परमात्मा ज हुं
छुं. पहेलां परमात्मा साथे मेळवणी करी हती. हवे कहे छे के एक सेकन्डना असंख्यमां
भागमां अनंत गुणनो पिंडलो पूर्णानंद स्वरूप प्रभु परमात्मा भगवान ते ज हुं छुं-
एम अंतरमां अनुभवमां लाव अने एनो अनुभव कर ए ज तारा लाभमां छे,
बाकी बधां विकल्पो, शास्त्रनी चर्चा ने वादविवाद ए कांई तारा लाभमां नथी-एम
अहीं कहे छे.
व्यवहारनी कल्पनाने छोडीने केवळ शुद्ध पोताना आत्माने ओळख. शास्त्रोनुं
ज्ञान संकेतमात्र छे. शास्त्रना ज्ञानमां ज पडयो रहीश तो पोताना आत्मानुं ज्ञान थशे
नहि. भगवान चिदानंद प्रभु बिराजी रह्यो छे ने तुं व्यवहार-रांकाईथी परमेश्वर छो?
भिखारी परमेश्वर बनावे? व्यवहारनो राग भिखारी-रांक छे, नाश थवाने लायक छे,
ए परमेश्वरपदने

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परमात्मा] [पप
प्राप्त करावे? शास्त्रनी चर्चाओ परमेश्वरपदने प्राप्त करावे? ३३-३३ सागर सुधी
सर्वार्थसिद्धना देवो शास्त्रनी चर्चाओ करीने कहे छे के मूक आ चर्चाओ! स्थिर थवाथी
केवळज्ञान थशे!
भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ महा परमात्माना अंतरस्वरूपे भरेलो एवो
परमात्मा ज हुं छुं अने जे हुं छुं ते ज परमात्मा छे. हुं ते परमात्मा ने परमात्मा ते
हुं--आहाहा! ए कबूलात केवा पुरुषार्थमां आवे! भाईसा’ब अमने बीडी विना चाले
नहि, आबरूमां थोडो फेर पडे तो आंचको खाई जईए ने आप कहो के तुं परमात्मा
छो! अरे बापु! ए बधाने छोडने! ए के दी तारा स्वरूपमां हता? आखो परमेश्वर
भगवान पडयो छे अने तें विकल्पनी आडमां गोठवी दीधो छे. भगवान निर्विकल्प
स्वरूप छे ते निर्विकल्प दशाथी प्राप्त थाय तेवो छे.
हुं ते परमात्मा ने परमात्मा ते हुं-एम जाणीने बीजा विकल्पो न करो, पंच
महाव्रतना विकल्पो, शास्त्र भणतरना विकल्पो, नव तत्त्वोना भेदना विकल्पो-ए बधुं
हवे न कर, न कर; करवानुं तो आ कह्युं ते छे; छोडवा जेवुं छे ते छोड ने आदरवा
जेवुं छे त्यां ठर. परम स्वरूपनो पिंड आत्मा छे ए ज हुं एम एनो आश्रय कर ने
विकल्प छोडी दे.
ज्यां तुं छो त्यां विकल्प ने वाणी नथी ने शुभ विकल्पथी मने लाभ थशे! -
एम माननार तो मूढ अज्ञानी छे. एनाथी लाभ मानीश तो हीणो पडतां पडतां हुं
आत्मा छुं के नहि-ए श्रद्धा ऊडी जशे, आत्मा छुं एवी व्यवहार श्रद्धा ऊडी जशे ने
निगोदमां हाल्यो जशे! आहाहा! आळ न दे, आळ न दे, भगवान आत्माने आळ न
दे. आळ दीधा तो तारा उपर आळ चढी जशे. हुं परमात्मा छुं-तेना बदले हुं
रागवाळो, हुं अल्प छुं एम आत्माने आळ आपनारने आत्मामां हुं नहि एम आळ
चढी जशे, जगतमां हुं आत्मा ज नथी, हुं नथी, हुं नथी, हुं क्यां छुं?-एम आंधळो
थई जईश!
हुं परमात्मा ज छुं, अल्पज्ञ ने राग नहि पण हुं परमात्मा ज छुं, ए
सिवायना विकल्पो छोडी दे! तीर्थंकरगोत्र बांधवानो विकल्प छोडी दे! भगवान आत्मा
परमात्मस्वरूप प्रभु छे ने! तारे खजाने खोट क्यां छे के तारे विकल्पादिनुं शरण लेवुं
पडे? हे स्वरूपमां एकाग्रता करनार जीव! एकाग्रता सिवायना जे विकल्पो छे ते-पछी
भले पंच महाव्रतनो होय के व्यवहार समिति-गुप्ति आदिनो हो के शास्त्र वांचवानो
विकल्प हो-छोडी दे. शास्त्रनुं ज्ञान पण परालंबी ज्ञान छे, तेनो महिमा छोड, ते विना
आत्माने पत्तो नहि लागे.
आहाहा...? एकवार तो ऊंचो थई जाय एवी वात छे! भगवान तो एम कहे
छे के अमने सांभळवुं छोडी दे! भगवान फरमावे छे के अमारी सामे जोवुं छोडी दे!
अमारी सामे जोवाथी तारो भगवान हाथ नहि आवे! आहाहा! भगवान त्रिलोकनाथ
समवसरणमां फरमाववा हता के अरे आत्मा! तुं परमात्मा ज छो. जो परमात्मा न हो
तो पर्यायना काळे परमात्मा क्यांथी आवशे? एक सेकन्डमां पूरण आत्मानुं आखुं रूप
ज भगवान आत्मा छे. अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत प्रभुता, आदि
एवा बधा

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प६] [हुं
गुणोथी भरेलो परिपूर्ण आत्मा तुं छो. तने तुं जो ने आत्मा जाण ने मान, मारी
सामे जोवुं रहेवा दे-एम भगवान कहे छे. रर.
हवे ए भगवान आत्मा कया स्थळे बिराजी रह्यो छे? एनुं क्षेत्र क्यां? एनुं
घर कयुं? ए बतावे छेः-
सुद्ध–पएसहं पूरियउं लोयायास–पमाणु ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु पावहु लहु णिव्वाणु ।। २३।।
शुद्ध प्रदेशी पूर्ण छे, लोकाकाश प्रमाण;
ते आतम जाणो सदा, शीघ्र लहो निर्वाण. र३
आ शरीर तो जड माटीनो पिंडलो छे, अंदर राग-द्वेषना परिणाम थाय ए
कांई आत्मा नथी, कर्मना रजकण ए कांई आत्मा नथी, भगवान आत्मा असंख्य
प्रदेशी स्थळमां रहेलो छे, एवा असंख्य प्रदेशमां अनंत गुण पडया छे. क्षेत्र शुं काम
बतावे छे?-के कोई कहे के लोकव्यापक आत्मा छे, तो एम नथी. भगवान आत्मा
देह-प्रमाणे देहथी भिन्न लोकाकाशना प्रदेशनी संख्या जेटला पोताना असंख्य प्रदेशमां
बिराजी रह्यो छे, रागमां के क्यांय बिराजतो नथी.
आहाहा! ज्यां होय त्यां ‘शीघ्र लहो निर्वाण’ आवे छे! मोक्ष कर, मोक्ष कर,
मोक्ष तो तारुं घर छे. आहाहा! संसारमां रखडीने मरी गयो! ८४ लाख योनिमां
सोथा नीकळी गया तो य तेने मूकवानो विचार नथी आवतो? घरे तो आव! तारा
घरे तो बापु तुं आव! परघर रखडी रखडीने मरी गयो! तारुं घर क्यां छे?-के जे
असंख्य प्रदेशनुं शुद्ध अरूपी दळ छे, जे असंख्य प्रदेश रत्न समान शुद्ध निर्मळ छे, जे
क्षेत्रमां अनंता अनंता गुणो बिराजे छे, ए तारुं घर छे भाई!
असंख्य प्रदेश ए आत्मानुं स्थळ-क्षेत्र छे. एक एक प्रदेश पूर्णानंद निर्मळानंदथी
भरेलां छे, जेमां अनंत आनंद पाके एवुं एनुं असंख्यप्रदेशी क्षेत्र छे. तारुं असंख्य
प्रदेशनुं क्षेत्र एवुं छे के अनंत केवळज्ञान ने अनंत आनंद पाके! सिद्धनी पर्याय पाके ए
आत्मा छे, संसार पाके ए आत्मा नहि, राग-द्वेष पाके ए आत्मक्षेत्र नहि! भगवान
आत्माना असंख्य प्रदेश शुद्ध छे, जेमां अनंत गुण बिराजमान छे, एवो असंख्य प्रदेशी
भगवान बिराजे छे त्यां नजर कर, ए क्षेत्रमां नजर कर, ध्यान कर, तो अल्पकाळमां
केवळज्ञानरूपी निर्वाणदशा प्राप्त थाय, बीजी रीते प्राप्त थाय एम नथी.

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परमात्मा] [प७
[प्रवचन नं. १०]
जो तने पूर्णानंदनी प्राप्तिरूपी मोक्षनी ईच्छा होय तो,
रात–दिवस एक निज परमात्मानुं ज मनन कर
[श्री योगसार उपर परम पूज्य गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी, ता. १६-६-६६]
श्री योगीन्द्रदेव कृत आ योगसार शास्त्र छे. तेमां आपणे र३ मी गाथा चाली
रही छेः- -
सुद्ध–पएसहं पूरियउं लोयायास–पमाणु ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु पावहु लहु णिव्वाणु ।। २३।।
शुद्ध प्रदेशी पूर्ण छे, लोकाकाश प्रमाण;
ते आतम जाणो सदा, शीघ्र लहो निर्वाण. र३.
भगवान आत्मा आ देहमां पोताना शुद्ध असंख्य प्रदेशमां रहेलो छे. आत्मा
असंख्य प्रदेशी छे; एक परमाणु आकाशना जेटला क्षेत्रने रोके तेटला क्षेत्रने एक प्रदेश
कहे छे, एवा शुद्ध असंख्य प्रदेशी आत्मा छे तेथी ते परिपूर्ण छे. देह-वाणी-मन-कर्म
ने विकारनुं क्षेत्र जुदुं छे. असंख्य प्रदेशी परिपूर्ण प्रभु असंख्य प्रदेशमां रहेलो छे.
असंख्य प्रदेशमां अनंत गुणोथी भरेलो परिपूर्ण छे, एवा आत्माने आत्मा जाण अने
एवा आत्मानुं दिन-रात मनन कर.
असंख्य प्रदेशमां अहीं ज बिराजमान भगवान आत्मानुं दिन-रात मनन करो.
भगवान आत्मा लोकव्यापक नथी परंतु तेनुं क्षेत्र अहीं परिपूर्ण शुद्ध असंख्य प्रदेशमां
ज पूरुं छे, एनाथी वधारे लांबु बीजुं कोई क्षेत्र नथी. कोई लोकव्यापक कहे ने कोई
अनंतमां अनंत भळी जाय के बधा आत्मा एकना अंशरूप छे-एम नथी. भगवान
आत्मा असंख्य प्रदेशोमां परिपूर्ण भरेलो छे. एवा आत्मानुं दिन रात मनन करो
एटले के तेनो अनुभव करो.
आत्मा अनंत गुणनो पिंड, असंख्य प्रदेशी, तेने अनुसरीने रात-दिन अनुभव
करवो, आत्मानी शांतिनुं वेदन करवुं-एनुं नाम धर्म ने मोक्षमार्ग छे. भगवान आत्मा
असंख्य प्रदेशना पूरथी भरेलो पूरो छे, तेनो अनुभव करवाथी शीघ्र निर्वाणने प्राप्त
करो एटले के आ उपाय द्वारा शीघ्र निर्वाणने प्राप्त करो; ए सिवाय मन-वचननी
क्रिया आदि बीजा कोई उपाय वडे निर्वाण प्राप्त थाय तेम नथी.
पोताना स्वरूपने भूले तो बंध थाय छे ने पोताना स्वरूपनी सावधानी करे तो
मुक्ति थाय छे, ए सिवायनी बीजी बधी तो वातो छे! पोतानो असंख्य प्रदेशी अनंत
गुणोथी

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प८] [हुं
भरेलो जे स्वभाव छे तेने भूले ने राग-द्वेष ने परमां मारी सत्ता छे एम मान्यता
करे तो ए परिभ्रमण करे; कर्मना लईने कांई परिभ्रमण करतो नथी.
जेम कोठीमां माल भर्यो होय ने! तेम आ असंख्य प्रदेशमां आत्मानो बधो
माल पडयो छे. क्षेत्र असंख्य प्रदेशी छे पण माल तो अनंत गुणनो तेमां भर्यो पडयो
छे, भाव अनंत भर्या छे. क्षेत्र नानुं माटे माल थोडो एवुं कांई नथी. जेम आंखनुं
क्षेत्र नानुं छतां डूंगर उपरथी केटला माईलनुं देखी शके छे? तेम असंख्य प्रदेशी
भगवान आत्मा पोतानी-सत्तामां रहीने अनंत क्षेत्रने जाणे एवी एना स्वभावनी
सामर्थ्यता छे. माटे ए भगवान आत्माने अंतरमां जो, तारुं घर असंख्य प्रदेशी छे,
शरीर-मन-वचन के कर्म ए तारुं घर नथी. अरे! परमात्मा जिनेश्वरदेवथी पण तारुं
घर जुदुं छे.
असंख्य प्रदेशनो पिंड शुद्ध अनंत गुणथी भरेलो प्रभु छे, एवा आत्मानुं ध्यान
करो. आहाहा! आ तो योगसार छे ने? एटले बहुं टूकुं करीने माल बताव्यो छे. र३.
हवे र४मी गाथामां कहे छे के व्यवहारथी आत्मा शरीर प्रमाणे छे अने
निश्चयथी लोकप्रमाण असंख्य प्रदेशी छे तेम कहे छेः- -
णिच्छइं लोय–पमाणु मुणि ववहारें सुसरीरु ।
एहउ अप्प–सहाउ मुणि लहु पावहि भव–तीरु ।। २४।।
निश्चय लोकप्रमाण छे, तनुप्रमाण व्यवहार;
एवो आतम अनुभवो, शीघ्र लहो भवपार. र४.
आहाहा! ज्यां होय त्यां ‘शीघ्र लहो भवपार;’-केम के अहीं तो भवनो
अभाव करवानी एक ज वात छे. भव मळे ए कांई वस्तु नथी, ए तो अनादिथी
चाली आवे छे. आत्मा पोताना स्वभावने प्राप्त करे ने भवनो अभाव करे ए नवी
वात छे, बाकी भव प्राप्त करे ने संसारमां रखडे ए तो अनादिनो संसारभाव छे, तेमां
नवुं शुं कर्युं? तेथी अहीं कहे छे के शीघ्र लहो भवपार.
निश्चयथी आत्मा लोकप्रमाणे छेे एटले के लोकना जेटला असंख्य प्रदेश छे
एटला असंख्य प्रदेश प्रमाण निश्चयथी आत्मा छे, लोकना प्रदेश जेटलो पहोळो आत्मा
छे एम वात नथी, पण लोकना जेटला असंख्य प्रदेश छे एटला असंख्य प्रदेशी
भगवान आत्मा निश्चयथी छे. ए असंख्य प्रदेशी भगवान आत्मा कर्ममां, शरीर-
परमाणुमां के रागमां पण आवतो नथी.
निश्चयथी असंख्य प्रदेशमां रहेलो छे. निमित्तपणे व्यवहारथी गणो तो शरीरना
आकारप्रमाणे त्यां आत्मा रहेलो छे. असंख्य प्रदेशी ए ज एनी पहोळाई-एटलुं ज
एनुं पहोळुं क्षेत्र छे. आ शरीरप्रमाणे असंख्य प्रदेशमां आत्मा छे. जेम पाणीनो कळश
होय तेमां अंदर पाणीनो आकार ने एनुं स्वरूप कळशना आकारे होवा छतां पाणीनुं

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परमात्मा] [प९
क्षेत्र पोताना आकारे पोतामां छे. तेम आ शरीर प्रमाणे अंदर आत्मा होवा छतां पोते
पोताना कारणे ज असंख्य प्रदेशी पोताना आकारे पोतामां रहेली सत्ता छे.
आत्मा एक सत्ता छे, होवावाळी चीज छे, होवावाळी चीज होवाथी तेने आकार
अवगाहन, पहोळाई होय के नहि? तेथी आत्मा असंख्य प्रदेशनी पहोळाईवाळुं सत्त्व
छे. कर्म, राग के शरीर स्त्री-पुत्र के खेतर ए कांई आत्मानुं क्षेत्र नथी. असंख्य
प्रदेशना एना बंगलामां आत्मा बिराजी रह्यो छे. व्यवहारे निमित्तथी कहेवाय के शरीर
प्रमाणे आत्मा छे.
एवा पोताना आत्माना स्वभावने जाणो. भगवान आत्मा अनंत शांतरसथी
भरेलो महा पूरण आनंद सागरथी सदा भरेलो छे, तेमां तुं डूबकी मार. जेम बाथमां
डूबकी मारे छे ने! तेम आ चैतन्यरत्ननो आनंदथी भरेलो दरियो छे, एमां डूबकी
मार. चैतन्यस्वभावने तुं जाण. जाणवाथी भव तरी जवा पामे छे. भगवान आत्मा
आवो ज्ञानमूर्ति आनंदमूर्ति पूर्णानंदनो नाथ असंख्य प्रदेशमां बिराजमान छे तेने
जाण. रागनुं ने निमित्तनुं जे जाणवुं छे तेने बदले आम-आ तरफ आत्मानी सन्मुख
थईने तेने जाण.
शुं करवुं?-के असंख्य प्रदेशमां भगवान बिराजे छे तेनी सामे जो ने तेने जाण.
तेने जाणवो एनुं नाम मोक्षनो मार्ग छे. तेने जाण कहेतां तेने जाणवो, श्रद्धवो ने तेमां
एकाग्रता करवी ए त्रणे जाण कहेवामां आवी जाय छे. कारण के आ वस्तु छे ए शी
रीते जाण्युं? श्रद्धा विना जाण्युं? आवो भगवान आत्मा जाण, जाणे ए ज भव तरी
जाय छे एम अहीं तो कह्युं छे. परंतु जाणवानो अर्थ के आत्मा पूर्णानंद छे एम एने
जाणवा एना तरफ वळ्‌यो त्यां श्रद्धा पण थई ने स्थिरता पण थई. आखी चीज
असंख्य प्रदेशी अनंत गुणनो पिंड प्रभु तेने जाणतां कया गुणना अंशना अंकुर फूटया
विना रहे? बधा गुणना अंकुरा फूटे.
भगवान आत्मा केवो छे?-के लोकालोकने देखे एवी वस्तु छे. लोकालोकने
देखवानो ज एनो स्वभाव छे, एने आत्मा कहेवाय. भगवान आत्मा अनंत
सौख्यस्वरूपी छे. अनंत आनंद स्वरूप छे. राग-द्वेष ने दुःख भगवानमां नथी. अनंत
अतीन्द्रिय आनंदना चोसला भर्या छे. अनादि स्वरूपे आवो ज भगवान आत्मा छे अने
ते वस्तुए नित्य छे. आवा आत्माना स्वानुभवथी ज दर्शन थाय छे. परंतु कोई मन-
वचननी क्रियाथी के दया-दान-भक्तिना विकल्पो द्वारा आत्मानो अनुभव थतो ज नथी.
अरे, भाई! बापा! तारे करवानुं तो आ छे, एना सिवाय बधुं थोथा छे.
चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा अनंत आनंदना पिंड प्रभुथी विरुद्ध जेटला विकल्पो छे ते
तो वेरी छे, ए वेरी व्यवहारना विकल्पो न रहे तो अमारुं-संप्रदायनुं-शुं थशे? पण
भाई! वेरीने राखीने तारे शुं काम छे? भाई! तुं अनंत आनंदनो पिंड छो ने! ए
अनंत आनंद एमां नित्य छे, एमां नजर कर तो तारी मुक्ति थाय.
आ आत्मा स्वानुभूत्या चकासते–पोताना स्वानुभवनी क्रियाथी प्रगट थाय
एवुं एनुं

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६०] [हुं
स्वरूप छे. व्यवहारना विकल्पोथी-दया-दान-भक्तिना विकल्पोथी प्रगट थाय एवुं एनुं
स्वरूप नथी. त्रण लोकनो नाथ बादशाह पोते, पण अरेरे! आवा विकल्पो होय तो
कांई लाभ थाय! शुभ विकल्प होय तो अंदर जवाय!-आवी तो भ्रमणाओ!! अरे!
जेनो आदर करवो छे तेमां ए विकल्प तो छे नहि अने जेने-विकल्पोने छोडवा छे
एना लईने अंदर प्रवेश केम थई शकशे?! आत्मा तो आनंदरूप छे, ए आनंदस्वरूप
आत्मा दुःखस्वरूप विकल्पोथी शी रीते प्राप्त थाय? ए तो स्वानुभवथी ज जणाय तेवो
छे, रागथी के विकल्पथी जणाय एवो नथी.
त्रण लोकना नाथ परमेश्वर आम फरमावे छे के भाई! तुं तो अनंत
आनंदस्वरूप छो ने! अने ते पण ताराथी तुं तने अनुभवी शके एवी चीज छो, तने
पामर विकल्पोनी कोई जरूर नथी. भीखारी पामर रागनी तने जरूर नथी भाई!
एना टेकानी तने जरूर नथी भाई!
भगवान बोलावे छे के एला! हाल तने अनुभूतिनी परिणति साथे परणावीये!
पण आ अनादिनो भीखारी, मारा विकल्प चाल्या जशे, मारो व्यवहार चाल्यो जशे, एम
एनो प्रेम छोडतो नथी तेथी अंदरमां जई शकतो नथी ने धोयेल मूळानी जेवो राग ने
व्यवहार लईने ८४ लाख योनिना अवतारमां चाल्यो जाय छे. र४.
हवे रपमी गाथामां कहे छे के जीव समकित विना ८४ लाख योनिमां भ्रमण करे
छे. एम आत्मानो सीधो अनुभव कर्या विना आनाथी धर्म थशे ने तेनाथी धर्म थशे,
शुभभावथी थशे ने व्यवहारथी थशे एम मानीने आत्मानो अनुभव सम्यग्दर्शन न
कर्युं तेथी ८४ लाख योनिमां भ्रमण करी रह्यो छेः-
चउरासी–लक्खहिं फिरिउ कालु अणाइ अणंतु ।
पर सम्मत्तु ण लद्धु जिय एहउ जाणि णिभंतु ।। २५।।
लक्ष चोराशी योनिमां, भमियो काळ अनंत;
पण समकित तें नव लह्युं, ए जाणो निर्भ्रान्ति. रप.
अनादि काळथी ८४ लाख योनिमां शेकाणो! स्वर्गमां अनंतवार गयो, पण
भाई! तें आत्माना अनुभवना अभावमां, रागने छोडीने सीधुं स्वरूपनी द्रष्टिरूप
सम्यग्दर्शनना अभावमां ८४ लाख योनिमांथी एकेय योनि खाली नथी राखी. नरकनी
अंदर दस हजार वर्षनी स्थितिए अनंतवार उपज्यो छे, दस हजार ने एक समयनी
स्थितिए अनंतवार उपज्यो छे, एम एक एक समय अधिकनी स्थितिए अनंतवार
उपज्यो ने ३३ सागर सुधीनी स्थितिए अनंतवार उपज्यो. १० हजार वर्षथी मांडीने
३३ सागर सुधीना जेटला समय छे ते एक एक समयना अनंता भव नरकमां गाळ्‌या!
अभेद चिदानंदमूर्तिनी सीधी पकडरूप सम्यग्दर्शन विना नरकना भव अनंता कर्या

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परमात्मा] [६१
ने स्वर्गना पण अनंता भव कर्या. स्वर्गमां पण नरकनी जेम दस हजारनी स्थितिथी
मांडीने नवमी ग्रैवयेक सुधीना ३१ सागर सुधीनी स्थितिना एक एक समयनी
स्थितिमां अनंतवार जीव उपज्यो छे हो! आहाहा! अरे! कीडीना अनंता, कागडाना
अनंताने कषाईना अनंता भव कर्या! त्रास त्रास थई जाय एवा अनंता भव तें कर्या
बापु! घाणीमां अनंतवार पीलायो, वींछीना आकरां डंखथी अनंतवार मर्यो, अनंतवार
नागना करडवाथी मर्यो, पण भाई! तुं भूली गयो! एक सम्यग्दर्शन विना तें ८४
लाख योनिमां अनंता भव कर्या.
नवमी गै्रवयेक अनंतवार गयो, त्यां पाप करीने तो जाय नहि, महा पंच
महाव्रत ने शुक्ललेश्या एवी होय त्यारे एवा परिणामथी नवमी गै्रवयेक गयो होय.
परंतु एवा परिणामथी पण समकित न पाम्यो तो हवे बीजा परिणामथी तुं शुं
समकित पामीश? एम अभेद चिदानंदमूर्तिनी सीधी द्रष्टि करीने अनुभव करे तो ज
सम्यग्दर्शन पामे, ए सिवाय नवमी गै्रवयेक जेवा परिणाम करे तोपण तेनाथी समकित
पामतो नथी.
अनादिकाळथी आज सुधीना गया काळमां हजु सुधी सम्यग्दर्शन पाम्यो नथी.
एक भगवान आत्मानो आदर न कर्यो ने बीजुं बधुं ज कर्युं तेथी समकित न पाम्यो.
तारा मिथ्यात्वभावे तने अनंतवार ८४ लाख योनिना कूवामां तने नाख्यो छे. पुण्यथी
धर्म थशे, क्रियाथी धर्म थशे, रागथी लाभ थशे-एवा काळा नाग जेवा मिथ्यात्वभावने
लईने अनंता परिभ्रमण कर्या. भगवान विना समकित नहि थाय एम तें मान्युं नहि
ने राग विना ने व्यवहार विना धर्म नहि थाय एम मानीने तें अनंता भव कर्या.
आवा भव कर्या पण समकित न पाम्यो. भवना कारण सेव्या तेथी समकित न
पाम्यो. केमके जेना कारणे भव मळे तेना कारणे समकित न मळे. चामडी उतरडीने
खार छांटे तोपण क्रोध न करे एवा परिणामे नवमी गै्रवयेक गयो तोपण समकित न
पाम्यो तेनो अर्थ ए के समकित कोई बीजी चीज छे, ए भाव वडे समकित पमाय
एवी ए चीज नथी.
आ तो योगसार छे ने! योगीन्द्रदेव मुनि जगत समक्ष आ वात मूके छे के
आत्माना स्वभावनो आश्रय करीने जे निर्मळ योग समकितनो प्रगट थाय ते तें कदी
प्रगट कर्यो नथी एक समकित विना बीजुं बधुं अनंतवार करी चूक्यो छे पण आ एक
समकित कर्युं नथी.
एम नक्की कर के अनंता भवमां अनंता भाव कर्या पण ए भाव वडे समकित
पाम्यो नथी. अंदर अखंड आनंद प्रभुनो आश्रय करवाथी ज समकित पमाय छे ए
सिवाय बीजा कोई आश्रये समकित पमातुं नथी. परंतु अनादिथी एने परनी किंमत
लागी छे ने स्वनी किंमत थई नथी. पोते अनुभव करवाने लायक पोताथी छे, परना
अवलंबनथी नहि, राग ने व्यवहारना अवलंबनथी अनुभव थाय एवी चीज आत्मा
नथी. एवा आत्मानी किंमत कर्या विना आवा ८४ लाख योनिना अवतारमां रखडवुं
मटयुं नथी, पछी भलेने १र-१र महिनाना अपवास कर्या होय!

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६२] [हुं
एकरूप भगवान आत्मा सीधो अनुभव करवाने लायक छे पण एनी एणे
कदी किंमत करी नथी. पैसानी किंमत! धूडनी किंमत! पण एक आत्मानी कि्ंमत नथी,
आहाहा! जगतना मोह तो जुओ! ज्यां सुधी जीव सम्यग्दर्शन पामतो नथी त्यां सुधी
हे जीव! निःसंदेह एम वात जाण के ८४ लाख योनिमां फरवुं मटतुं नथी.
भगवान आत्मा ‘स्वानुभूत्या चकासतेसीधो अनुभव थवाने लायक होवा
छतां भविष्यमां ज्यां सुधी सम्यग्दर्शनने पामशे नहि त्यां सुधी रखडशे. एम
निर्भ्रान्तपणे जाण. ‘समकित नव लह्युं’ एम कह्युं छे पण कांई चारित्र विना रखडी
रह्यो छे एम कह्युं नथी. केम के समकित होय त्यारे चारित्र होय. समकित विना
चारित्र होतुं नथी. क्रियाकांड कांई चारित्र नथी, एवा क्रियाकांड तो अनंतवार कर्या छे.
श्री समंतभद्राचार्ये श्रावक रत्नकरंडाचार बनाव्युं छे, तेमां एक श्लोक छे के त्रण
लोकमां ने त्रण काळमां सम्यग्दर्शन जेवुं जीवने हितकारी कोई नथी. सम्यग्दर्शन सिवाय
बीजा कोई पण परिणाम आत्माने हितकारी नथी. दया-दान-व्रत-भक्तिना परिणाम,
देव-शास्त्र-गुरुनी श्रद्धा, पंच महाव्रत आदिना परिणाम अनंतवार कर्या पण एनी
कांई किंमत नथी व्यवहार आचरणनो जे ग्रंथ श्रावकरत्नकरंडाचार तेमां पहेली भूमिका
एम बांधी छे के त्रण काळ त्रण लोकमां समकित जेवुं जीवने हितकर कांई नथी अने
मिथ्यादर्शन जेवुं जीवनुं बुरु करनार कांई नथी. भगवान आत्माना आश्रये जे
सम्यग्दर्शन थाय ए सम्यग्दर्शन विना जीवने जगतमां बीजुं कोई हितकारी नथी.
हिंसा-जूठुं-भोग-वासनाना अशुभ परिणाम एटलुं बूरु न करे जेटलुं बूरुं मिथ्याश्रद्धा
करे छे.
भगवान आत्माए पोताना स्वभावनो आश्रय लईने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति अनंत
काळमां जीवे कदी करी नथी; त्रण लोकमां एवा सम्यग्दर्शन जेवी किंमती बीजी कोई चीज
नथी. अने भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ प्रभु होवा छतां तेनाथी विरुद्धनी श्रद्धा,
शुभरागना एक कणथी पण मने लाभ थशे, देहनी क्रिया मने सहायक थाय तो मारुं
कल्याण थाय-एवी मिथ्यामान्यता जेवी जगतमां बीजी कोई बूरी चीज नथी.
आहाहा! समकित शुं चीज छे एनी जगतने खबर नथी! निरावलंबी निरपेक्ष
चीजने सापेक्ष मानवी ए वात ज खोटी छे, भले व्यवहार हो, पण होय तेथी शुं
थयुं? एने कोई राग के निमित्त के गुरु के कोई शास्त्र के कोई क्षेत्रना आधारनी
कोईनी जरूर नथी. एवो निरावलंबी भगवान बिराजी रह्यो छे. एनी श्रद्धा ने ज्ञान
जेवी किंमती चीज त्रण काळ त्रण लोकमां अन्य कोई नथी. भगवान ज्ञायकस्वरूप
आत्माने सीधो जाण्यो नथी ने रागना कणने लाभदायक माने, परना आश्रये कांईक
हळवे हळवे कल्याण थशे, राग करीशुं तो कल्याण पामीशुं-एवी जे मिथ्याश्रद्धा एना
जेवुं जगतमां कोई बूरुं करनार नथी. २प.
शुद्धात्मानुं मनन ज मोक्षमार्ग छे, भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ बिराजे छे
तेनो अनुभव करवो ते एक ज मोक्षमार्ग छे. शुद्ध पवित्र आत्मा अंदर बिराजे छे ते

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परमात्मा] [६३
शरीर-वाणी-मनथी, आठ कर्मोथी ने शुभाशुभभावथी भिन्न सच्चिदानंद आनंदकंद
सिद्ध समान भगवान आत्मा छे, तेनी एकाग्रतारूप मनन ते एक ज मोक्षनो मार्ग
छे, बीजो कोई मोक्षनो मार्ग छे नहि तेम हवेनी गाथामां कहे छेः-
सुद्धु सचेयणु बुद्धु जिणु केवल–णाण–सहाउ ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहहु सिव–लाहु ।। २६।।
शुद्ध, सचेतन, बुद्ध, जिन, केवळज्ञानस्वभाव;
ए आतम जाणो सदा, जो चाहो शिवलाभ. २६.
अरे भगवान आत्मा! जो परमानंदरूपी मोक्षनी दशा चाहतो हो तो रात-दिन
आ आत्मानुं मनन करो. आहाहा! गाथा बहु ऊंची छे. आत्मानी परमानंद दशा,
पूरण दशानुं नाम मोक्ष; एवी मोक्षनी दशा जो चाहता हो तो रात-दिन शुद्ध
निर्मळानंद परमात्मानुं ध्यान कर; अरे भगवान! तुं मोटो महा शुद्ध चैतन्यप्रभु छो,
तेनुं दिन-रात ध्यान कर ने!
जेने एक समयमां त्रण लोक ने त्रण काळ पूरण जणाया, तेनी वाणीमां आ
आव्युं के अरे आत्मा! तुं तो शुद्ध छो, पुण्य-पापना मेल ने कर्ममळ रहित तारी चीज
छे-एनुं मनन कर. रागनुं पुण्यनुं के व्यवहारनुं मनन छोडी दे-जो तारे मुक्तिनो लाभ
जोईतो होय तो. बाकी तो ८४ ना गोथा तो अनंत काळथी खाधा ज कर्या छे. परंतु
आत्मानी शांतिनी पूरण प्राप्तिरूप जे मुक्ति एनो लाभ जोईतो होय तो शुद्ध
निजात्मानुं मनन कर.
परमानंदनी मूर्ति प्रभु पुण्य-पापथी रहित छे, कर्मथी ने शरीरथी रहित छे ने
पोताना अनंत पवित्र गुणथी सहित छे-एवा भगवाननुं तुं मनन कर भाई! आ
राग ने पुण्यना मननथी प्रभु प्रगटे एवो नथी. दया दान ने व्रत-जपना परिणामे
प्रभु प्रगटे एवो नथी. निर्विकल्प नाथ सच्चिदानंद प्रभु पूर्णानंदनो नाथ पूरण अनंत
गुणथी भरेलुं जे तत्त्व छे तेनुं मनन कर तो तेनी प्राप्ति थशे. अनुकूळ निमित्त होय
तो ठीक-एवुं मनन रहेवा दे भाई, रहेवा दे! आवा निमित्त होय तो ठीक, आवा शुभ
भाव होय तो ठीक, आवा कषायनी मंदताना परिणाम होय तो ठीक-ए बधुं तो रागनुं
मनन तें कर्युं, एवुं मनन तो तें अनादि काळथी कर्युं छे ने एनाथी संसार अनादिनो
फळे छे पण हवे तारे मुक्ति करवी छे के पछी ८४ मां रखडवुं छे?
भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ शुद्ध, निरंजन, वीतराग छे तेनी उपर द्रष्टि
कर एक एनुं मनन ने एकाग्रता ज मुक्तिनो उपाय छे. भगवान आत्मा शुद्ध शुद्ध ने
शुद्ध प्रभु छे, तेनुं एकनुं ज मनन ने एकाग्रता कर तो तने केवळज्ञान ने मुक्तिनो
लाभ थशे.

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६४] [हुं
[प्रवचन नं. ११]
निःसंदेह जाणः
त्रिलोकपूज्य परमात्मा हुं पोते ज छुं
[श्री योगसार उपर परम पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन, ता. १७-६-६६]
आ योगसार चाले छे. शुद्ध चैतन्यमय अनंत गुणनो पिंड आत्मस्वभाव तेमां
एकाग्र थईने तेनुं ध्यान करवुं ते मोक्षना मार्गनो सार छे, ते योगसार छे. आत्मानुं
स्वरूप शुद्ध चैतन्यमय छे, तेनी सन्मुख थईने एकाग्रताथी आत्मस्वभावनो वेपार ते
ज सार अने मोक्षनुं कारण छे. तेम अहीं २६ मी गाथामां कहे छे केः-
सुद्धु सचेयणु बुद्धु जिणु केवल–णाण–सहाउ ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहहु–सिव–लाहु ।। २६।।
शुद्ध, सचेतन, बुद्ध, जिन, केवळज्ञानस्वभाव;
ए आतम जाणो सदा, जो चाहो शिवलाभ. २६.
आत्माना पूरण आनंदनी पूरण अतीन्द्रिय दशारूपी मुक्तिना लाभने एटले के
पूरण कल्याणमूर्ति आत्मानी शिव-कल्याणमय पूरण निर्मळ पर्यायनी प्राप्तिने जो कोई
चाहतुं होय तो शुद्ध वीतराग पूरण पवित्र परमात्मस्वरूप आत्माने दिन-रात
अनुभववो. आ आत्मा अत्यारे शुद्ध छे एम अनुभववो-ए मोक्षलाभना कामीनुं
कर्तव्य छे.
वीतराग, कल्याणमूर्ति आत्मानी शुद्ध परिपूर्ण प्रगट पर्यायरूप मुक्तिना लाभने
जो तुं ईच्छतो हो तो पूरण शुद्ध, पूरण शुद्ध, वीतराग निर्दोष स्वभाव भगवान
आत्माने तारे अनुभववो, शिवलाभनो हेतु आ छे. मोक्षार्थीने शुं करवा जेवुं छे? ने
शुं करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे?-के शुद्ध भगवान पूरण चैतन्य प्रभुनुं अंतर ध्यान
ने अनुभव करवो, एने अनुसरीने अंदर ठरवुं ए एक ज मुक्तिनो उपाय छे अने
ए ज मोक्षार्थीनुं कर्तव्य छे.
भगवान आत्मा ज्ञानमूर्ति छे, ज्ञानचेतनामय छे, पुण्य-पापने करुं एवी
कर्मचेतना के हरख-शोकने भोगवुं एवी कर्मफळचेतना एना स्वभावमां नथी. वस्तु तो
चेतनामय छे, ज्ञानचेतनाने वेदे एवुं एनुं स्वरूप छे. ज्ञानने वेदे, ज्ञानने अनुभवे,
ज्ञानना आनंदना स्वादने ले एवो ज आत्मा छे. पुण्य-पापना स्वादने ले के हरख-
शोकना स्वादने ले एवो आत्मा छे ज नहि. वस्तु चेतनामय छे एटले परने करे कांई
के परथी ले कांई एवुं एनुं स्वरूप नथी, तेम ज रागने करे के रागने वेदे एवुं पण
एनुं स्वरूप नथी.

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परमात्मा] [६प
भगवान आत्मा तो सचेतनस्वरूप, जागृत, जागृत, चेतनार, चेतनार स्वरूप
छे. ज्ञान ने आनंदने वेदवुं एवुं आत्मानुं स्वरूप छे. आहाहा! आ तो परमार्थ
मार्गनी वात छे. मार्ग एक ज छे, बीजो मार्ग होई शके ज नहि. ‘एक होय
त्रणकाळमां परमारथनो पंथ...’ भगवान आत्मा चेतनाने वेदे, चेतनाने करे एवुं ज
चैतन्यनुं स्वरूप छे. रागने करे के हरखने भोगवे ए वस्तुस्वरूप ज नथी. संसारना
भावने करे के संसारभावने हरखथी वेदे ए आत्मा ज नथी.
जेमां एकली चेतना भरेली छे तेने आत्मा कहीए. चेतनानुं जाणवानुं देखवानुं
अनुभववानुं काम करे एवो आत्मा छे. एवा आत्माने तुं आत्मा जाण. रागने करे ए
आत्मा नथी, ए तो अणात्मा छे. व्यवहार-रत्नत्रयना विकल्पो ऊठे तेने करे के वेदे ते
आत्मा नथी आत्मा ज्ञानमूर्ति प्रभु छे ते तो ज्ञानने जाणीने ज्ञानने अनुभवे, ज्ञानने
वेदे, ज्ञानमां ज्ञाननी एकाग्रतानो अनुभव करे एवो छे.
बोले ते आत्मा नहि, सांभळे ते आत्मा नहि, विकल्पथी सांभळे ते आत्मा
नहि! भगवान आत्मा चेतनस्वरूप छे, एनुं तो चेतवानुं, जाणवानुं काम छे. एने
आत्मा जाण, ए आत्मानो अनुभव कर, ए शिवना लाभनो हेतु छे. निरूपद्रव,
कल्याणमूर्ति मुक्तदशाना लाभनो एक ज उपाय छे, बीजो कोई उपाय नथी.
आ तो योगसार छे ने! एकलो सार सार भर्यो छे. भगवान आत्मा बुद्ध छे.
बुद्धदेव छे, सत्यबुद्ध छे. एवा बुद्धदेवने तुं जाणीने अनुभव. आवो आत्मा जाणीने
बीजाने कहेजे के समजावजे-तो एवो आत्मा छे ज नहि. सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान
त्रिलोकनाथ देव फरमावे छे के भाई ! तुं तो सत्यबुद्ध छो ने! साचुं बुद्धपणुं तुं छो
एने जाणीने तेनो अनुभव कर. ए ज मोक्षना लाभनो हेतु ने कारण छे, ए सिवाय
बीजुं कोई कारण नथी.
उपशमरस, अकषायरस ने वीतराग शांतरसथी जामेलुं तत्त्व भगवान आत्मा
छे. वीतरागना अकषाय शांतरसनुं ढीम तत्त्व छे; तेमां विकल्प ऊठाववो के हुं बीजेथी
समजुं के बीजाने समजावुं ए वस्तुना स्वरूपमां नथी. पोताथी पोताने जाणे एवो
भगवान आत्मा छे. जाणपणाना विशेष बोलथी बीजाने समजावे तो ते अधिक छे
एवुं आत्मानुं स्वरूप छे ज नहि.
भगवान आत्मा सत्य साहेब बुद्धदेव छे, तेमां विकल्पनो अवकाश छे ज क्यां?
जे जाणेलुं तत्त्व छे तेने कहुं एवो विकल्प ते वस्तुनुं स्वरूप क्यां छे? एवो आत्मा ज
नथी. केम के जो आत्मा एवो होय तो सिद्ध भगवान पण बोलवा जोईए!
भगवान आत्मा पोते जिनदेव छे. साचो जिन भगवान आत्मा छे.
समवसरणमां बिराजमान भगवान तारा माटे तो व्यवहारजिन छे. तारे माटे आत्मा
पोते वीतरागीबिंब परमेश्वरदेव जिन छे. अंदरमां परमात्मस्वरूप छे ते तारा माटे
जिन छे. समवसरणमां

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६६] [हुं
वाणी नीकळे ने इन्द्रो पण सांभळवा आवे, ए जिनदेवने ने आत्माने कांई संबंध छे
नहि. तुं पोते साचो जिन छे. वस्तुरूपे वीतरागबिंब भगवान छे. एने जाण ने
अनुभव-एटलुं बस! आवा आत्माने जिन तरीके स्वीकार! वीतरागीबिंब प्रभु
आत्मा हुं पोते छुं-एम तुं तने अनुभव. जो राग, वाणी, वांचन, लेवुं, देवुं, के
पुण्यप्रकृतिमां क्यांय अधिकाई मनाई गई तो तें जिनस्वरूप आत्मामां, अधिकाई
मानी नथी.
भगवान जिनस्वरूप पोते ज छे, तेमां जिनस्वरूप सिवाय जेटला बोल ऊठे
तेमां अधिकता थई जाय अथवा बीजाने आवुं होय तेने अधिक माने ते भूलमां पडयो
छे. भगवान आत्मा जिन एटले के संसारविजयी जिनेन्द्र छे. विकल्प अने एना
अभावस्वरूप जिनेन्द्र छे. अरे! शास्त्रना भणवाना भावथी पण मुक्त एवो जिनेन्द्र
छे. एवा जिनेन्द्र प्रभुनुं निर्विकल्प द्रष्टिथी ध्यान करवुं, निर्विकल्प ज्ञान द्वारा ज्ञेय
करवो ने एमां ठरवुं ते शिवलाभनो हेतु छे.
भगवान आत्मा केवळज्ञानस्वरूप छे, संपूर्णज्ञाननो धणी छे, पूरण निरावरण
ज्ञाननो पिंड छे. जे ज्ञान परथी आवतुं नथी एवा स्वतः ज्ञाननो पिंड छे. चैतन्यनो
पुंज भगवान निरावरण केवळज्ञानना स्वभाववाळो ज छे. शरीर तो नहि, राग तो
नहि पण अपूरण पण नहि, एकलो पूरण ज्ञानस्वभाव ते भगवान छे. चार ज्ञाननो
विकास ते खरेखर आत्मा नहि, पूरण ज्ञानस्वभाव ते आत्मा.
चौद पूर्वनी रचना करनार गणधरदेवनी केटली अधिकता!-के ना, एकलो
ज्ञानस्वभाव छे तेमां आ रचवुं ने आ विकल्प वस्तुमां छे ज क्यां? चार ज्ञाननी
उघडेली पर्याय छे ते पण खरेखर आत्मा नथी; खरेखरो आत्मा नथी पण व्यवहार
आत्मा छे. एवो केवळज्ञानस्वभावी आत्मा छे. आने आत्मा कहीये. आ सिवाय
ओछुं, अधिक विपरीत नाखे ते आत्माने जाणतो नथी.
रात-दिवस एटले के हंमेशा आवा आत्मानुं मनन करो. जगनुं कल्याण करवा
माटे-प्रभावना थती होय तो एकाद बे भव भलेने वधारे थाय?-एम कोईक कहे छे. पण
भाई! एकाद बे नहि पण चोकखा अनंता भव थशे. एक पण भवना भावनी भावना
करे छे तेने अनंता निगोदना भव एना कपाळमां पडया छे! जगतनुं कल्याण करे कोण?
विकल्प करे कोण? विकल्प वस्तुमां नथी ने ए विकल्प आव्यो ते तो अनात्मस्वरूप
नुकशानकारक छे अने एनाथी जे स्वने लाभ माने ते आत्माने जाणतो नथी.
माटे आवो भगवान आत्मा अंतरमां निर्विकल्प श्रद्धा-ज्ञान ने चारित्रथी
अनुभववो. बस, ए ज आत्मानुं स्वरूप ने मोक्षना लाभनो हेतु छे. बाकी वातो छे.
शुद्ध, सचेतन, बुद्ध, जिन, केवळज्ञानस्वभाव आत्माने हंमेशा एक धारावाही
अनुभववो-जो शिवलाभ चाहता हो तो. २६.
हवे २७ मी गाथामां कहे छे के निर्मळ आत्मानी भावना करवाथी मुक्ति थशे.

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परमात्मा] [६७
भगवान आत्मा असंख्य प्रदेशे जागृत स्वभावनो पिंड प्रभु तेनी भावना एटले के
निर्विकल्प एकाग्रता करवाथी मोक्ष थशे. आ तो भावनानो ग्रंथ छे, तेने पुनःरुक्तिदोष
न लागु पडे, एने तो पुनःभावना लागु पडे. भावना एटले निर्विकल्प एकाग्रता, ते
एक ज मोक्षनो मार्ग छे, व्यवहारना विकल्पो मोक्षनो मार्ग नथी. शास्त्रनी स्वाध्याय
करतां निर्जरा थाय. भगवान आत्मा शुद्ध चिदानंदनी मूर्ति प्रभु छे. तेनी एकाग्रता
करतां ज मोक्ष थशे, बीजी रीते मुक्ति थशे नहि. माटे तुं भ्रमना भूलावामां न पड.
भटकवा माटे भ्रमणाना स्थान घणा छे अने भ्रमणा मूकवानुं स्थान भगवान आत्मा
एक ज छे.
जाम ण भावहि जीव तुहुं णिम्मल अप्प–सहाउ
ताम ण लब्भइ सिव–गमणु जहिं भावइ तहि जाउ ।। २७।।
ज्यांलगी शुद्धस्वरूपनो, अनुभव करे न जीव;
त्यांलगी मोक्ष न पामतो, ज्यां रुचे त्यां जाव. २७.
हे जीव! ज्यां सुधी निर्मळ आत्माना स्वभावनी भावना नहि कर ने लाख
व्रत-नियम-पूजा-भक्ति तथा शास्त्र देवा-लेवाना विकल्पनी जाळमां ज्यां सुधी
अटक्यो छो त्यां सुधी आत्मानो मोक्षमार्ग नथी बधी विकल्पनी जाळोने छोडीने
भगवान पूर्णानंद अभेद चैतन्यस्वरूपनो अनुभव न कर त्यां सुधी मोक्षमां जई
शकतो नथी, पूर्णानंद तरफ तारुं गमन-परिणमन नहि थाय.
लोको तो बिचारा प्रभावना माटे जिंदगी खोई बेसे छे! आपणे प्रभावना
करीए तो घणाने लाभ थाय ने!-एम एना माटे जिंदगी खोई बेसे! पण ज्यां सुधी
भगवान आत्मानी श्रद्धा-ज्ञान ने चारित्रनी भावनानी एक्ता न कर त्यां सुधी मोक्ष
पामी शक्तो नथी, भलेने लाख प्रकारना बहारना व्यवहार-विकल्पो करतो हो! पण
मुक्ति पामीश नहि.
आहाहा! आवो मार्ग छे. दिव्यध्वनि ते जैनशासन नहि, विकल्प ऊठे ते
जैनशासन नहि, पंचमहाव्रतना परिणाम ऊठे ते जैनशासन नहि, बीजाने
समजाववाना विकल्पमां रोकावुं ते जैनशासन नहि. ठरेलुं शांतरसनुं बिंब आत्मतत्त्व,
तेमां आवा विकल्पोने अवकाश ज क्यां छे? अने ते विकल्प होय तोपण ते शिवपंथना
कारणमां केम भळे? भगवान आत्मानी अनुभवनी द्रष्टि, अनुभवनुं ज्ञान ने
अनुभवनी स्थिरता ते एक ज शिवपंथनुं-मोक्षना पंथनुं गमन ने परिणमन छे.
ज्यां सुधी स्वभावमां एकाग्रता न करे ने बहार विकल्पनी जाळमां ठर्या करे
त्यां सुधी शिवमार्गने पामीश नहि माटे ज्यां तने गोठे त्यां जा, मुक्ती जोईती होय
तो स्वभाव तरफनी एकता कर, बाकी विकल्पमां तो छो ने तेनाथी लाभ थशे-ए तो
अनादिनुं चाल्युं ज आवे छे. एमां अमारे तने शुं कहेवुं?
ज्यां रुचे त्यां जा, मोक्षनो लाभ चाहतो हो तो स्वभाव तरफ एकाग्र था. बधां
प्रपंचनी

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६८] [हुं
विकल्पनी जाळ छोडी दे. भगवान आत्मानुं निर्विकल्प स्वरूपे ध्यान कर ए एक ज
मोक्षनो उपाय छे. २७.
त्रण लोकमां पूज्य होय तो भगवान पोते ज छे, पोताने माटे पोतानो आत्मा
ज पूज्य छे. एम २८ मी गाथामां कहे छेः-
जो तइलोयह झेउ जिणु सो अप्पा णिरु वुत्तु ।
णिच्छय–णइं एमइ भणिउ जाणि णिभतु ।। २८।।
ध्यानयोग त्रिलोकना, जिन ते आतम जाण;
निश्चयथी एम ज कह्युं, तेमां भ्रांति न आण २८.
त्रणलोकना प्राणीओ द्वारा ध्यान करवा योग्य जिन छे एटले के भक्तोने ध्यान
करवा लायक कोई होय तो ते भगवान आत्मा छे. भगवाननी भक्ति-पूजानो व्यवहार
विकल्प वच्चे आवे ने?-तो भले आवे, पण कांई परमार्थे पूज्य नथी. जो परमार्थे
पूज्य होय तो त्यांथी लक्ष फेरवीने अंदरमां लक्ष करवानी जरूर पडे नहि!
भगवाननी मूर्तिना दर्शनथी निधत-निकाचित कर्मने तोडे ने? भाई! बापु
त्रणलोकनो नाथ पूज्य भगवान आत्मा छे, तेना दर्शनथी निधत ने निकाचित कर्मना
भूक्का ऊडी जाय छे! एवो भगवान आत्मा छे. व्यवहारना लखाण आवे के परमेश्वर
अने मूर्ति देखवाथी सम्यग्दर्शन थाय; परंतु निज भगवान आत्माना दर्शनथी
सम्यग्दर्शन थाय त्यारे बहारमां नजीकमां शुं होय तेनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे.
त्रणलोकना प्राणीओने ध्यान करवा लायक जे जिन छे ते भगवान आत्मा छे.
परिपूर्ण स्वभावथी भरेलो जिनस्वरूप परमात्मा पोते ज ध्यान करवा लायक छे.
भक्तजनोए एटले के आत्मानी भक्ति करनार जीवोए भक्ति करवा लायक पोतानो
भगवान आत्मा छे. तीर्थंकर भगवान व्यवहारे पूज्य छे ने निश्चयथी तो एनो
पोतानो त्रणलोकनो नाथ आत्मा पूज्य छे.
एकलो शुद्ध बुद्ध ज्ञानघन आनंदकंद ध्रुव तेने निश्चयथी आत्मा कह्या छे. देहनी
क्रिया तो जड, पुण्य-पापना भाव आस्रव, वर्तमान पर्यायनी अल्पता ए व्यवहार-
आत्मा ने खरेखरो आत्मा तो त्रिकाळी शुद्ध बुद्ध ध्रुव, एकलो चैतन्य पिंड ध्रुव ते
खरेखर आत्मा छे. सत्य वात कहेनार वाणी अने ज्ञान आम कहे छे.
त्रण लोकनो नाथ प्रभु तुं पूज्य छो, आहाहाहा! भगवान सर्वज्ञदेव ने प्रतिमा
ए व्यवहारे पूज्य छे ने मोक्षनो मार्ग पूज्य ते पण व्यवहारे; पूरण शुद्ध चैतन्यनो
पिंडलो भगवान के ज्यां नमवा जेवुं छे, ज्यां अंतर सन्मुख थवा जेवुं छे एवो त्रण
लोकनो नाथ पूज्य प्रभु पोतानो आत्मा पोताने पूज्य छे.
निश्चयनय आम कहे छे माटे तेमां संदेह न कर. अमे आवा आत्मा? भक्तो
पोताना भगवान आत्माने पूजे? आवडुं मोटुं आ तत्त्व?-एम भ्रांति न कर. सो

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परमात्मा] [६९
इन्द्रोमां ए वात प्रसिद्ध छे के आत्मा ज पूज्य छे. व्यवहार तरीके व्यवहार छे, व्यवहार
नथी एम नथी. परंतु व्यवहारने निश्चयथी पूज्यपणे स्वीकारी ले तो ए वात खोटी
छे. भगवानने वंदन, नाम-स्मरण, पूजा-भक्तिनो शुभ राग होय छे, व्यवहार होय
छे पण ए जाणवालायक छे, पूजवालायक तो खरेखर आत्मा छे.
भक्तिवंत प्राणीना शुभभाव ए काळे एवा होय छे पण ए जाणवालायक छे.
व्यवहारे ते आदरवालायक कहेवाय, निश्चयथी ते आदरवालायक नथी. त्रण लोकना नाथ
सर्वज्ञदेव व्यवहारे पूज्य छे, जाणवालायक छे, तेने काढी नाखे तो मिथ्याद्रष्टि थई जाय!
त्रण लोकना नाथ पोताने पूज्य छे. समवसरणमां इन्द्रो पण सर्वज्ञदेवने पूजे
छे ने? भाई! व्यवहारना लखण ज एवा छे! व्यवहारमां पर पदार्थनुं लक्ष होय.
परंतु ए कांई खरेखर आत्मा नथी ने ए कांई खरेखर पूज्य नथी. भाई! एवा
विकल्पो होय छे ए बंधनुं कारण छे, तोपण ए आव्या विना रहेता नथी. केम?-के
अबंधस्वभावी आत्मा पूरण अबंधपरिणामने न पामे त्यां सुधी एवा भाव होय.
तेथी व्यवहार छे खरो, व्यवहार न माने तो मिथ्याद्रष्टि थई जाय छे अने जो व्यवहारे
पूज्य मानी ल्ये तोपण मिथ्याद्रष्टि छे.
त्रण लोकना प्राणी जेमने ध्यावे छे, पूजे छे, वंदे छे, ते ज परमात्मा परमार्थे
आत्मा छे. हुं ज त्रिलोक पूज्य परमात्मा जिनेन्द्र छुं एम भ्रांति रहितपणे जाणवुं
जोईए. अरे भाई सा’ब! हुं कांई भगवान होउं! पण बापु! एवुं ज वस्तुस्वरूप
छे. आवो शुद्ध भगवान आत्मा त्रणलोकमां पूज्यपुरुषोने पण पूज्य छे. गणधरो
आदि पूज्य संतो छे तेने पण पूज्य आत्मा छे. नमन करवालायक जे मुनिओ तेमने
पण नमन करवालायक आत्मा छे.
त्रण लोकमां जेनी साथे कोई जोड-सरखामणी करी शकाय नहि एवुं
आदरवालायक अद्वैततत्त्व पोतानो भगवान ज पूज्य छे, वंदनीय छे, मानवालायक छे,
आदरवालायक छे. आवा आत्माना बहुमान ने श्रद्धा-ज्ञान विना जेटला व्रत-नियम-
तपस्या-पूजा-भक्ति-दान करे, जात्राओ करे ए बधुंय धर्म माटे नथी, मोक्षमार्ग माटे
नथी. सम्मेदशिखरनी एकवार यात्रा करे एटले बस! अहीं तो कहे छे के लाख वार
सम्मेदशिखरनी वंदना करे तोपण एकेय भव घटे नहि अरे! साक्षात् त्रणलोकना नाथ
अरिहंत परमात्माने करोडवार वंदन करे तोपण एकेय भव घटे नहि! केम के ते
परद्रव्य छे ने परद्रव्यना लक्षे तो राग ज उत्पन्न थाय. समजाणुं कांई?
जेने आत्मद्रष्टि नथी ने जेणे शुभ विकल्पमां लाभ मान्यो छे, जेने क्रियाओमां
लाभ मान्यो छे, बीजाने उपदेश देवाथी लाभ मान्यो छे, अरे! भगवान अखंडानंदनो
नाथ प्रभु पोते तेना आश्रय विना जे कोई पण विकल्प ऊठे ते मोक्षना मार्गनी
कळामां प्रवेश पामी शकतो नथी.