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शुं छे? ते आ गाथामां कहेवामां आवे छे.
इउ जाणेविणु जोइयहो छंडहु मायाचारु ।। २१।।
एम जाणी योगीजनो, त्यागो मायाचार.
एम आव्युं के अमे जे छीए तेटलो ज तुं छो ने तुं छो ते अमे छीए-स्वरूपे
परमेश्वरना स्वरूपमां ने आत्माना स्वरूपमां कांई फेर नथी. वस्तु तरीके बे भिन्न छे
पण भाव तरीके फेर नथी.
चक्रवर्ती, वासुदेव, बळदेवनुं एमां वर्णन छे. ए बधां वर्णनमां शुं आव्युं? के ए बधा
सलाका पुरुषोए वीतराग जेवो ज हुं आत्मा छुं, एमने मोक्ष प्रगट थई गयो ने मारे
मोक्ष स्वभावमां पडेलो ज छे एम आत्मतत्त्वने वीतराग परमात्मा जेवो ते सलाका
पुरुषोए जाण्यो हतो ए ज प्रथमानुयोगमां कहेवानुं तात्पर्य-सार छे.
ए कहेवानो आशय छे. करणानुयोगमां कहेवानो आशय ए छे के कर्म एक चीज छे,
तेना लक्षे जीवनी अनेक अवस्थाओ थाय छे अने एना लक्षे केवा परिणाम होय छे ते
बतावीने ए बधां विकारी परिणाम ने कर्मथी रहित तुं छो एम बताव्युं छे. परंतु
कर्मना लईने तुं दुःखी थयो छो के तेनाथी सहित तुं छो एम त्यां नथी बताववुं.
वर्तमान पर्यायमां
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आत्मा वीतराग परमात्मा समान छे-ए करणानुयोगना कहेवानो सार छे.
आत्मा परमात्मा समान छे. भाई! विकार सहित कह्यो ते रहितपणे बताववा माटे कह्युं
छे, एनुं सहितपणुं वस्तुमां नथी ए बताववा माटे सहितपणुं बताव्युं छे. केम के चारे
अनुयोगनुं तात्पर्य तो वीतरागता छे, ए वीतरागता क्यारे आवे? ज्ञानावरणीए
ज्ञानने रोकयुं-एम बताव्युं एटले शुं?-के तुं ज्यारे ज्ञाननी अवस्था हीणी कर त्यारे
तेमां ज्ञानावरणी निमित्त छे; परंतु ए बताववानो हेतु शुं छे?-के हीनदशा ने
निमित्तनो आश्रय छोड, त्यां रोकवा माटे ए कह्युं नथी पण तेनो आश्रय छोडावीने
वीतरागता बताववा माटे कह्युं छे, परमात्मा थवा माटे कह्युं छे. अल्पज्ञपरिणामना
आदर माटे ए वात नथी करी. अल्पदर्शन थाय, अल्पवीर्य थाय, तारी अल्पदशा
ताराथी थाय ए बतावीने तुं पूर्णानंद अखंड आत्मा छो ने हुं परमात्मा थयो तेवो
परमात्मा तुं थई शके तेवो छो-एम बताववा माटेनुं ए कथन छे.
एना आश्रये शुद्धता प्रगट थई छे ते भूमिकाना प्रमाणमां ते जीवने-मुनिने ने
श्रावकने रागना आचरणनो भाव-व्रतादिनो केवो होय ए त्यां बताव्युं छे. परंतु
एकला रागना आचरण खातर त्यां ए आचरण बताव्युं नथी.
कर एटले के अमारा जेवो तुं छो एम नक्की कर. हुं पूरण परमात्मा वीतराग
परमेश्वर छुं-वस्तुस्वरूपे; अल्पज्ञता ने राग पर्यायमां छे ए आदरवा लायक नथी-एम
चरणानुयोगमां पण कह्युं छे.
एवी निश्चय शुद्धता क्यां होय?-के हुं वीतराग समान परमात्मा छुं, एकलो ज्ञाताद्रष्टा
परिपूर्ण परमात्मा छुं एवुं भान होय त्यां निश्चय शुद्धता होय अने एवा भाननी
भूमिकामां बाकी रहेलां आचरणनो राग केवो होय ए चरणानुयोगमां कह्युं छे, तेथी
चरणानुयोगनो सार तो आत्मा ज छे, रागनी क्रिया कांई सार नथी. भेदथी बताव्यो
छे तो अभेद, भेद कांई सार नथी. व्यवहारथी बताव्यो छे तो निश्चय, व्यवहार कांई
सार नथी. व्यवहारनुं आचरण बतावीने त्यां निश्चय केवो होय ते बताव्युं छे.
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कंद आत्मा छो. आत्मा तद्न वीतरागनो पिंड ज छे. परमात्मा पर्याये वीतराग पिंड
थई गया ने तुं वस्तुए वीतराग पिंड ज छो. जाणवा-देखवानी क्रिया सिवाय कोई
एनी क्रिया छे ज नहि.-एम तुं आत्माने जिन सरखो जाण.-एम चरणानुयोगनुं
कहेवुं छे.
नथी, बताव्यो छे तो एक अभेद. आ वस्तु पूरण परमात्मा छे, महा सत् स्वरूप
भगवान चिदानंद परमात्मा तुं छो. अनंता परमात्मा जेना गर्भमां पडया छे ने तेनो
प्रसव करवानी ताकात जेमां छे एवो तुं आत्मा छे रागने प्रगट करे ते आत्मा नहि,
ते आत्मामां छे नहि, अल्पज्ञता रहे ए आत्मामां छे नहि एम कहे छे आहाहा!
सार आ छे के संसारनो अभाव ने मोक्षनी उत्पत्ति. आत्मा परमात्मा समान छे एम
जाण्या विना एने स्वभावनो आश्रय नहि थाय ने अल्पज्ञ ने रागनो आश्रय नहि
टळे ने सर्वज्ञ वीतराग नहि थाय. आहाहा! आ कांई वातो नथी पण वस्तुनुं स्वरूप
ज आवुं छे.
परमात्मा ज छुं, मारे ने परमात्माने कांई फेर नथी एम फेर काढी नाखनारने फेर छूटी
जशे. आहाहा! दिगंबर संतोनी कोई पण गाथा ल्यो पण संतोनी कथन शैली
अलौकिक छे! परमात्मा परमेश्वरे जे धर्म कह्यो तेने दिगंबर संतोए धारीने ढंढेरो
पीटयो छे!
रागवाळो, अल्पज्ञतावाळो एम मनन नहि करो पण जे जिनेन्द्र छे ते ज हुं छुं एवुं
मनन करो! अरेरे, हुं अल्पज्ञ छुं, मारामां आवी कांई ताकात होती हशे? -ए वात
रहेवा दे भाई! हुं तो पूरण परमात्मा थवाने लायक छुं-एम नहि पण पूरण
परमात्मा अत्यारे हुं छुं-एम मनन कर! आहाहा!
वीतरागनी बधी वाणीना शास्त्रोनो, दिव्यध्वनिनो सार तो आ छे के परमात्मा समान
आत्मा जाणवो. सर्वज्ञ ने वीतरागस्वरूप हुं आत्मा छुं एम अंर्तद्रष्टि कर तो तुं
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रहे! भगवान आत्मा-हुं पोते द्रव्ये परमेश्वरस्वरूपे ज छुं-एम ज्यां परमेश्वरस्वरूपनो
विश्वास आव्यो तो तुं वीतराग थया विना रहीश ज नहि. द्रष्टिमां वीतराग थयो ते
स्थिरताए वीतराग थईने अल्पकाळमां केवळज्ञान लेशे.-एम अहीं वात करे छे. अरे!
अमे क्यारे वीतराग थईशुं? शुं थशे?-ए बधी लप मूक ने! तुं वीतराग परमात्मा
छो ज! आखो भगवान आत्मा जिनेश्वर जेवो पूर्णानंद परमात्मा छे ज, बधा एवा
भगवान छे हो!-एने तुं जो ने भाई! अल्पज्ञता ने राग ए कांई आत्मा छे? ए
तो व्यवहार-आत्मा छे. जे आत्मा छे ए तो अल्पज्ञता, राग ने निमित्त विनानो छे,
एनी सामुं जो ने!
क्रिया लोकोने बतावुं-ए बधी मायाचारी छोडी दे! रागनी क्रिया करीने हुं साधु छुं एम
लोकोने तारे बताववुं छे?
येही वचनसे समज ले जिन-वचनका मरम.
आहाहा! भगवान एने मोटो कहेवा जाय त्यां आ भाई सा’ब कहे ना...
मोटो कहीने पैसा लूंटी ले-फाळो उघरावी ले, तेम भगवाने तने मोटो ठरावीने शुं करवुं
हशे?-के तारी पामरता लूंटवी छे! कंई तारा पैसा लूंटवा नथी हो! !
फेर न देखतो, सिद्धांतना सारने मायाचार रहित थईने पामी जाय छे.
मळवाथी के वाणीना उपदेश द्वारा मोटप मानवी छोडी दे! ए तो मायाचार छे, एने
मूकने पडती! तारी मोटप तो अंदर प्रभु प्रभुताथी बिराजे छे तेमां छे, तेना शरणमां
जतां शांति ने वीतरागता प्रगट थशे.
परमात्मा समान छे एवुं अंतरमां जाणीने ठरे तेने मोटपनो लाभ मळे छे, बाकी बधुं
धूळधाणी छे! माटे विकल्पनी जाळ द्वारा ने शरीरनी स्थिति द्वारा मोटप न मानीश,
एनाथी मोटप
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प००-प०० साधुओना उपरी-मोटा करीने अमने पदवी आपी छे-एवाथी मोटप
मानवी रहेवा दे!-एम आ र१मी गाथामां कह्युं.
एम नक्की कर. भगवान! तमे परमात्मा छो एटलुं तो अमने नक्की करवा द्यो! -के
ए नक्की क्यारे थशे?-के ज्यारे तुं परमात्मा छो एवो अनुभव थशे त्यारे आ
परमात्मा छे एवो व्यवहार तने नक्की थशे. निश्चयनुं नक्की थया विना व्यवहार नक्की
थशे नहि. ते वात कहे छेः- -
इउ जाणेविणु जोइया अण्णु म करहु वियप्पु ।। २२।।
एम जाणी हे योगीजन! करो न कांई विकल्प. रर.
परमात्मा छुं एम द्रष्टिमां ले.
कहे छे. क्यां सुधी तारे शास्त्रनी चर्चाओ लखवी छे? शास्त्रमां आ कह्युं छे, आ
शास्त्रमां आ कह्युं छे ने आ शास्त्रमां कह्युं छे-ए तो बधी विकल्पनी जाळ छे.
भागमां अनंत गुणनो पिंडलो पूर्णानंद स्वरूप प्रभु परमात्मा भगवान ते ज हुं छुं-
एम अंतरमां अनुभवमां लाव अने एनो अनुभव कर ए ज तारा लाभमां छे,
बाकी बधां विकल्पो, शास्त्रनी चर्चा ने वादविवाद ए कांई तारा लाभमां नथी-एम
अहीं कहे छे.
नहि. भगवान चिदानंद प्रभु बिराजी रह्यो छे ने तुं व्यवहार-रांकाईथी परमेश्वर छो?
भिखारी परमेश्वर बनावे? व्यवहारनो राग भिखारी-रांक छे, नाश थवाने लायक छे,
ए परमेश्वरपदने
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सामे जोवुं रहेवा दे-एम भगवान कहे छे. रर.
ते आतम जाणो सदा, शीघ्र लहो निर्वाण. र३
प्रदेशी स्थळमां रहेलो छे, एवा असंख्य प्रदेशमां अनंत गुण पडया छे. क्षेत्र शुं काम
बतावे छे?-के कोई कहे के लोकव्यापक आत्मा छे, तो एम नथी. भगवान आत्मा
देह-प्रमाणे देहथी भिन्न लोकाकाशना प्रदेशनी संख्या जेटला पोताना असंख्य प्रदेशमां
बिराजी रह्यो छे, रागमां के क्यांय बिराजतो नथी.
सोथा नीकळी गया तो य तेने मूकवानो विचार नथी आवतो? घरे तो आव! तारा
घरे तो बापु तुं आव! परघर रखडी रखडीने मरी गयो! तारुं घर क्यां छे?-के जे
असंख्य प्रदेशनुं शुद्ध अरूपी दळ छे, जे असंख्य प्रदेश रत्न समान शुद्ध निर्मळ छे, जे
क्षेत्रमां अनंता अनंता गुणो बिराजे छे, ए तारुं घर छे भाई!
प्रदेशनुं क्षेत्र एवुं छे के अनंत केवळज्ञान ने अनंत आनंद पाके! सिद्धनी पर्याय पाके ए
आत्मा छे, संसार पाके ए आत्मा नहि, राग-द्वेष पाके ए आत्मक्षेत्र नहि! भगवान
आत्माना असंख्य प्रदेश शुद्ध छे, जेमां अनंत गुण बिराजमान छे, एवो असंख्य प्रदेशी
भगवान बिराजे छे त्यां नजर कर, ए क्षेत्रमां नजर कर, ध्यान कर, तो अल्पकाळमां
केवळज्ञानरूपी निर्वाणदशा प्राप्त थाय, बीजी रीते प्राप्त थाय एम नथी.
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सो अप्पा अणुदिणु मुणहु पावहु लहु णिव्वाणु ।। २३।।
ते आतम जाणो सदा, शीघ्र लहो निर्वाण. र३.
कहे छे, एवा शुद्ध असंख्य प्रदेशी आत्मा छे तेथी ते परिपूर्ण छे. देह-वाणी-मन-कर्म
ने विकारनुं क्षेत्र जुदुं छे. असंख्य प्रदेशी परिपूर्ण प्रभु असंख्य प्रदेशमां रहेलो छे.
असंख्य प्रदेशमां अनंत गुणोथी भरेलो परिपूर्ण छे, एवा आत्माने आत्मा जाण अने
एवा आत्मानुं दिन-रात मनन कर.
ज पूरुं छे, एनाथी वधारे लांबु बीजुं कोई क्षेत्र नथी. कोई लोकव्यापक कहे ने कोई
अनंतमां अनंत भळी जाय के बधा आत्मा एकना अंशरूप छे-एम नथी. भगवान
आत्मा असंख्य प्रदेशोमां परिपूर्ण भरेलो छे. एवा आत्मानुं दिन रात मनन करो
एटले के तेनो अनुभव करो.
असंख्य प्रदेशना पूरथी भरेलो पूरो छे, तेनो अनुभव करवाथी शीघ्र निर्वाणने प्राप्त
करो एटले के आ उपाय द्वारा शीघ्र निर्वाणने प्राप्त करो; ए सिवाय मन-वचननी
क्रिया आदि बीजा कोई उपाय वडे निर्वाण प्राप्त थाय तेम नथी.
गुणोथी
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करे तो ए परिभ्रमण करे; कर्मना लईने कांई परिभ्रमण करतो नथी.
छे, भाव अनंत भर्या छे. क्षेत्र नानुं माटे माल थोडो एवुं कांई नथी. जेम आंखनुं
क्षेत्र नानुं छतां डूंगर उपरथी केटला माईलनुं देखी शके छे? तेम असंख्य प्रदेशी
भगवान आत्मा पोतानी-सत्तामां रहीने अनंत क्षेत्रने जाणे एवी एना स्वभावनी
सामर्थ्यता छे. माटे ए भगवान आत्माने अंतरमां जो, तारुं घर असंख्य प्रदेशी छे,
शरीर-मन-वचन के कर्म ए तारुं घर नथी. अरे! परमात्मा जिनेश्वरदेवथी पण तारुं
घर जुदुं छे.
एहउ अप्प–सहाउ मुणि लहु पावहि भव–तीरु ।। २४।।
एवो आतम अनुभवो, शीघ्र लहो भवपार. र४.
चाली आवे छे. आत्मा पोताना स्वभावने प्राप्त करे ने भवनो अभाव करे ए नवी
वात छे, बाकी भव प्राप्त करे ने संसारमां रखडे ए तो अनादिनो संसारभाव छे, तेमां
नवुं शुं कर्युं? तेथी अहीं कहे छे के शीघ्र लहो भवपार.
छे एम वात नथी, पण लोकना जेटला असंख्य प्रदेश छे एटला असंख्य प्रदेशी
भगवान आत्मा निश्चयथी छे. ए असंख्य प्रदेशी भगवान आत्मा कर्ममां, शरीर-
परमाणुमां के रागमां पण आवतो नथी.
एनुं पहोळुं क्षेत्र छे. आ शरीरप्रमाणे असंख्य प्रदेशमां आत्मा छे. जेम पाणीनो कळश
होय तेमां अंदर पाणीनो आकार ने एनुं स्वरूप कळशना आकारे होवा छतां पाणीनुं
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तो वेरी छे, ए वेरी व्यवहारना विकल्पो न रहे तो अमारुं-संप्रदायनुं-शुं थशे? पण
भाई! वेरीने राखीने तारे शुं काम छे? भाई! तुं अनंत आनंदनो पिंड छो ने! ए
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स्वरूप नथी. त्रण लोकनो नाथ बादशाह पोते, पण अरेरे! आवा विकल्पो होय तो
कांई लाभ थाय! शुभ विकल्प होय तो अंदर जवाय!-आवी तो भ्रमणाओ!! अरे!
जेनो आदर करवो छे तेमां ए विकल्प तो छे नहि अने जेने-विकल्पोने छोडवा छे
एना लईने अंदर प्रवेश केम थई शकशे?! आत्मा तो आनंदरूप छे, ए आनंदस्वरूप
आत्मा दुःखस्वरूप विकल्पोथी शी रीते प्राप्त थाय? ए तो स्वानुभवथी ज जणाय तेवो
छे, रागथी के विकल्पथी जणाय एवो नथी.
पामर विकल्पोनी कोई जरूर नथी. भीखारी पामर रागनी तने जरूर नथी भाई!
एना टेकानी तने जरूर नथी भाई!
एनो प्रेम छोडतो नथी तेथी अंदरमां जई शकतो नथी ने धोयेल मूळानी जेवो राग ने
व्यवहार लईने ८४ लाख योनिना अवतारमां चाल्यो जाय छे. र४.
शुभभावथी थशे ने व्यवहारथी थशे एम मानीने आत्मानो अनुभव सम्यग्दर्शन न
कर्युं तेथी ८४ लाख योनिमां भ्रमण करी रह्यो छेः-
पर सम्मत्तु ण लद्धु जिय एहउ जाणि णिभंतु ।। २५।।
पण समकित तें नव लह्युं, ए जाणो निर्भ्रान्ति. रप.
सम्यग्दर्शनना अभावमां ८४ लाख योनिमांथी एकेय योनि खाली नथी राखी. नरकनी
अंदर दस हजार वर्षनी स्थितिए अनंतवार उपज्यो छे, दस हजार ने एक समयनी
स्थितिए अनंतवार उपज्यो छे, एम एक एक समय अधिकनी स्थितिए अनंतवार
उपज्यो ने ३३ सागर सुधीनी स्थितिए अनंतवार उपज्यो. १० हजार वर्षथी मांडीने
३३ सागर सुधीना जेटला समय छे ते एक एक समयना अनंता भव नरकमां गाळ्या!
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मांडीने नवमी ग्रैवयेक सुधीना ३१ सागर सुधीनी स्थितिना एक एक समयनी
स्थितिमां अनंतवार जीव उपज्यो छे हो! आहाहा! अरे! कीडीना अनंता, कागडाना
बापु! घाणीमां अनंतवार पीलायो, वींछीना आकरां डंखथी अनंतवार मर्यो, अनंतवार
नागना करडवाथी मर्यो, पण भाई! तुं भूली गयो! एक सम्यग्दर्शन विना तें ८४
लाख योनिमां अनंता भव कर्या.
परंतु एवा परिणामथी पण समकित न पाम्यो तो हवे बीजा परिणामथी तुं शुं
सम्यग्दर्शन पामे, ए सिवाय नवमी गै्रवयेक जेवा परिणाम करे तोपण तेनाथी समकित
पामतो नथी.
तारा मिथ्यात्वभावे तने अनंतवार ८४ लाख योनिना कूवामां तने नाख्यो छे. पुण्यथी
धर्म थशे, क्रियाथी धर्म थशे, रागथी लाभ थशे-एवा काळा नाग जेवा मिथ्यात्वभावने
ने राग विना ने व्यवहार विना धर्म नहि थाय एम मानीने तें अनंता भव कर्या.
पाम्यो तेनो अर्थ ए के समकित कोई बीजी चीज छे, ए भाव वडे समकित पमाय
एवी ए चीज नथी.
प्रगट कर्यो नथी एक समकित विना बीजुं बधुं अनंतवार करी चूक्यो छे पण आ एक
समकित कर्युं नथी.
सिवाय बीजा कोई आश्रये समकित पमातुं नथी. परंतु अनादिथी एने परनी किंमत
अवलंबनथी नहि, राग ने व्यवहारना अवलंबनथी अनुभव थाय एवी चीज आत्मा
नथी. एवा आत्मानी किंमत कर्या विना आवा ८४ लाख योनिना अवतारमां रखडवुं
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आहाहा! जगतना मोह तो जुओ! ज्यां सुधी जीव सम्यग्दर्शन पामतो नथी त्यां सुधी
हे जीव! निःसंदेह एम वात जाण के ८४ लाख योनिमां फरवुं मटतुं नथी.
निर्भ्रान्तपणे जाण. ‘समकित नव लह्युं’ एम कह्युं छे पण कांई चारित्र विना रखडी
रह्यो छे एम कह्युं नथी. केम के समकित होय त्यारे चारित्र होय. समकित विना
चारित्र होतुं नथी. क्रियाकांड कांई चारित्र नथी, एवा क्रियाकांड तो अनंतवार कर्या छे.
बीजा कोई पण परिणाम आत्माने हितकारी नथी. दया-दान-व्रत-भक्तिना परिणाम,
देव-शास्त्र-गुरुनी श्रद्धा, पंच महाव्रत आदिना परिणाम अनंतवार कर्या पण एनी
कांई किंमत नथी व्यवहार आचरणनो जे ग्रंथ श्रावकरत्नकरंडाचार तेमां पहेली भूमिका
एम बांधी छे के त्रण काळ त्रण लोकमां समकित जेवुं जीवने हितकर कांई नथी अने
मिथ्यादर्शन जेवुं जीवनुं बुरु करनार कांई नथी. भगवान आत्माना आश्रये जे
सम्यग्दर्शन थाय ए सम्यग्दर्शन विना जीवने जगतमां बीजुं कोई हितकारी नथी.
हिंसा-जूठुं-भोग-वासनाना अशुभ परिणाम एटलुं बूरु न करे जेटलुं बूरुं मिथ्याश्रद्धा
करे छे.
नथी. अने भगवान आत्मा पूर्णानंदनो नाथ प्रभु होवा छतां तेनाथी विरुद्धनी श्रद्धा,
शुभरागना एक कणथी पण मने लाभ थशे, देहनी क्रिया मने सहायक थाय तो मारुं
कल्याण थाय-एवी मिथ्यामान्यता जेवी जगतमां बीजी कोई बूरी चीज नथी.
थयुं? एने कोई राग के निमित्त के गुरु के कोई शास्त्र के कोई क्षेत्रना आधारनी
कोईनी जरूर नथी. एवो निरावलंबी भगवान बिराजी रह्यो छे. एनी श्रद्धा ने ज्ञान
जेवी किंमती चीज त्रण काळ त्रण लोकमां अन्य कोई नथी. भगवान ज्ञायकस्वरूप
आत्माने सीधो जाण्यो नथी ने रागना कणने लाभदायक माने, परना आश्रये कांईक
हळवे हळवे कल्याण थशे, राग करीशुं तो कल्याण पामीशुं-एवी जे मिथ्याश्रद्धा एना
जेवुं जगतमां कोई बूरुं करनार नथी. २प.
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सिद्ध समान भगवान आत्मा छे, तेनी एकाग्रतारूप मनन ते एक ज मोक्षनो मार्ग
छे, बीजो कोई मोक्षनो मार्ग छे नहि तेम हवेनी गाथामां कहे छेः-
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहहु सिव–लाहु ।। २६।।
ए आतम जाणो सदा, जो चाहो शिवलाभ. २६.
पूरण दशानुं नाम मोक्ष; एवी मोक्षनी दशा जो चाहता हो तो रात-दिन शुद्ध
निर्मळानंद परमात्मानुं ध्यान कर; अरे भगवान! तुं मोटो महा शुद्ध चैतन्यप्रभु छो,
तेनुं दिन-रात ध्यान कर ने!
छे-एनुं मनन कर. रागनुं पुण्यनुं के व्यवहारनुं मनन छोडी दे-जो तारे मुक्तिनो लाभ
जोईतो होय तो. बाकी तो ८४ ना गोथा तो अनंत काळथी खाधा ज कर्या छे. परंतु
आत्मानी शांतिनी पूरण प्राप्तिरूप जे मुक्ति एनो लाभ जोईतो होय तो शुद्ध
निजात्मानुं मनन कर.
राग ने पुण्यना मननथी प्रभु प्रगटे एवो नथी. दया दान ने व्रत-जपना परिणामे
प्रभु प्रगटे एवो नथी. निर्विकल्प नाथ सच्चिदानंद प्रभु पूर्णानंदनो नाथ पूरण अनंत
गुणथी भरेलुं जे तत्त्व छे तेनुं मनन कर तो तेनी प्राप्ति थशे. अनुकूळ निमित्त होय
तो ठीक-एवुं मनन रहेवा दे भाई, रहेवा दे! आवा निमित्त होय तो ठीक, आवा शुभ
भाव होय तो ठीक, आवा कषायनी मंदताना परिणाम होय तो ठीक-ए बधुं तो रागनुं
मनन तें कर्युं, एवुं मनन तो तें अनादि काळथी कर्युं छे ने एनाथी संसार अनादिनो
फळे छे पण हवे तारे मुक्ति करवी छे के पछी ८४ मां रखडवुं छे?
शुद्ध प्रभु छे, तेनुं एकनुं ज मनन ने एकाग्रता कर तो तने केवळज्ञान ने मुक्तिनो
लाभ थशे.
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स्वरूप शुद्ध चैतन्यमय छे, तेनी सन्मुख थईने एकाग्रताथी आत्मस्वभावनो वेपार ते
ज सार अने मोक्षनुं कारण छे. तेम अहीं २६ मी गाथामां कहे छे केः-
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहहु–सिव–लाहु ।। २६।।
ए आतम जाणो सदा, जो चाहो शिवलाभ. २६.
चाहतुं होय तो शुद्ध वीतराग पूरण पवित्र परमात्मस्वरूप आत्माने दिन-रात
अनुभववो. आ आत्मा अत्यारे शुद्ध छे एम अनुभववो-ए मोक्षलाभना कामीनुं
कर्तव्य छे.
आत्माने तारे अनुभववो, शिवलाभनो हेतु आ छे. मोक्षार्थीने शुं करवा जेवुं छे? ने
शुं करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे?-के शुद्ध भगवान पूरण चैतन्य प्रभुनुं अंतर ध्यान
ने अनुभव करवो, एने अनुसरीने अंदर ठरवुं ए एक ज मुक्तिनो उपाय छे अने
ए ज मोक्षार्थीनुं कर्तव्य छे.
चेतनामय छे, ज्ञानचेतनाने वेदे एवुं एनुं स्वरूप छे. ज्ञानने वेदे, ज्ञानने अनुभवे,
ज्ञानना आनंदना स्वादने ले एवो ज आत्मा छे. पुण्य-पापना स्वादने ले के हरख-
शोकना स्वादने ले एवो आत्मा छे ज नहि. वस्तु चेतनामय छे एटले परने करे कांई
के परथी ले कांई एवुं एनुं स्वरूप नथी, तेम ज रागने करे के रागने वेदे एवुं पण
एनुं स्वरूप नथी.
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मार्गनी वात छे. मार्ग एक ज छे, बीजो मार्ग होई शके ज नहि. ‘एक होय
त्रणकाळमां परमारथनो पंथ...’ भगवान आत्मा चेतनाने वेदे, चेतनाने करे एवुं ज
चैतन्यनुं स्वरूप छे. रागने करे के हरखने भोगवे ए वस्तुस्वरूप ज नथी. संसारना
भावने करे के संसारभावने हरखथी वेदे ए आत्मा ज नथी.
आत्मा नथी, ए तो अणात्मा छे. व्यवहार-रत्नत्रयना विकल्पो ऊठे तेने करे के वेदे ते
आत्मा नथी आत्मा ज्ञानमूर्ति प्रभु छे ते तो ज्ञानने जाणीने ज्ञानने अनुभवे, ज्ञानने
वेदे, ज्ञानमां ज्ञाननी एकाग्रतानो अनुभव करे एवो छे.
आत्मा जाण, ए आत्मानो अनुभव कर, ए शिवना लाभनो हेतु छे. निरूपद्रव,
कल्याणमूर्ति मुक्तदशाना लाभनो एक ज उपाय छे, बीजो कोई उपाय नथी.
बीजाने कहेजे के समजावजे-तो एवो आत्मा छे ज नहि. सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान
त्रिलोकनाथ देव फरमावे छे के भाई ! तुं तो सत्यबुद्ध छो ने! साचुं बुद्धपणुं तुं छो
एने जाणीने तेनो अनुभव कर. ए ज मोक्षना लाभनो हेतु ने कारण छे, ए सिवाय
बीजुं कोई कारण नथी.
समजुं के बीजाने समजावुं ए वस्तुना स्वरूपमां नथी. पोताथी पोताने जाणे एवो
भगवान आत्मा छे. जाणपणाना विशेष बोलथी बीजाने समजावे तो ते अधिक छे
एवुं आत्मानुं स्वरूप छे ज नहि.
नथी. केम के जो आत्मा एवो होय तो सिद्ध भगवान पण बोलवा जोईए!
पोते वीतरागीबिंब परमेश्वरदेव जिन छे. अंदरमां परमात्मस्वरूप छे ते तारा माटे
जिन छे. समवसरणमां
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नहि. तुं पोते साचो जिन छे. वस्तुरूपे वीतरागबिंब भगवान छे. एने जाण ने
अनुभव-एटलुं बस! आवा आत्माने जिन तरीके स्वीकार! वीतरागीबिंब प्रभु
आत्मा हुं पोते छुं-एम तुं तने अनुभव. जो राग, वाणी, वांचन, लेवुं, देवुं, के
पुण्यप्रकृतिमां क्यांय अधिकाई मनाई गई तो तें जिनस्वरूप आत्मामां, अधिकाई
मानी नथी.
छे. भगवान आत्मा जिन एटले के संसारविजयी जिनेन्द्र छे. विकल्प अने एना
अभावस्वरूप जिनेन्द्र छे. अरे! शास्त्रना भणवाना भावथी पण मुक्त एवो जिनेन्द्र
छे. एवा जिनेन्द्र प्रभुनुं निर्विकल्प द्रष्टिथी ध्यान करवुं, निर्विकल्प ज्ञान द्वारा ज्ञेय
करवो ने एमां ठरवुं ते शिवलाभनो हेतु छे.
पुंज भगवान निरावरण केवळज्ञानना स्वभाववाळो ज छे. शरीर तो नहि, राग तो
नहि पण अपूरण पण नहि, एकलो पूरण ज्ञानस्वभाव ते भगवान छे. चार ज्ञाननो
विकास ते खरेखर आत्मा नहि, पूरण ज्ञानस्वभाव ते आत्मा.
उघडेली पर्याय छे ते पण खरेखर आत्मा नथी; खरेखरो आत्मा नथी पण व्यवहार
आत्मा छे. एवो केवळज्ञानस्वभावी आत्मा छे. आने आत्मा कहीये. आ सिवाय
ओछुं, अधिक विपरीत नाखे ते आत्माने जाणतो नथी.
भाई! एकाद बे नहि पण चोकखा अनंता भव थशे. एक पण भवना भावनी भावना
करे छे तेने अनंता निगोदना भव एना कपाळमां पडया छे! जगतनुं कल्याण करे कोण?
विकल्प करे कोण? विकल्प वस्तुमां नथी ने ए विकल्प आव्यो ते तो अनात्मस्वरूप
नुकशानकारक छे अने एनाथी जे स्वने लाभ माने ते आत्माने जाणतो नथी.
शुद्ध, सचेतन, बुद्ध, जिन, केवळज्ञानस्वभाव आत्माने हंमेशा एक धारावाही
अनुभववो-जो शिवलाभ चाहता हो तो. २६.
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निर्विकल्प एकाग्रता करवाथी मोक्ष थशे. आ तो भावनानो ग्रंथ छे, तेने पुनःरुक्तिदोष
एक ज मोक्षनो मार्ग छे, व्यवहारना विकल्पो मोक्षनो मार्ग नथी. शास्त्रनी स्वाध्याय
करतां निर्जरा थाय. भगवान आत्मा शुद्ध चिदानंदनी मूर्ति प्रभु छे. तेनी एकाग्रता
भटकवा माटे भ्रमणाना स्थान घणा छे अने भ्रमणा मूकवानुं स्थान भगवान आत्मा
एक ज छे.
त्यांलगी मोक्ष न पामतो, ज्यां रुचे त्यां जाव. २७.
अटक्यो छो त्यां सुधी आत्मानो मोक्षमार्ग नथी बधी विकल्पनी जाळोने छोडीने
शकतो नथी, पूर्णानंद तरफ तारुं गमन-परिणमन नहि थाय.
भगवान आत्मानी श्रद्धा-ज्ञान ने चारित्रनी भावनानी एक्ता न कर त्यां सुधी मोक्ष
पामी शक्तो नथी, भलेने लाख प्रकारना बहारना व्यवहार-विकल्पो करतो हो! पण
तेमां आवा विकल्पोने अवकाश ज क्यां छे? अने ते विकल्प होय तोपण ते शिवपंथना
कारणमां केम भळे? भगवान आत्मानी अनुभवनी द्रष्टि, अनुभवनुं ज्ञान ने
अनुभवनी स्थिरता ते एक ज शिवपंथनुं-मोक्षना पंथनुं गमन ने परिणमन छे.
तो स्वभाव तरफनी एकता कर, बाकी विकल्पमां तो छो ने तेनाथी लाभ थशे-ए तो
अनादिनुं चाल्युं ज आवे छे. एमां अमारे तने शुं कहेवुं?
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मोक्षनो उपाय छे. २७.
णिच्छय–णइं एमइ भणिउ जाणि णिभतु ।। २८।।
निश्चयथी एम ज कह्युं, तेमां भ्रांति न आण २८.
विकल्प वच्चे आवे ने?-तो भले आवे, पण कांई परमार्थे पूज्य नथी. जो परमार्थे
पूज्य होय तो त्यांथी लक्ष फेरवीने अंदरमां लक्ष करवानी जरूर पडे नहि!
भूक्का ऊडी जाय छे! एवो भगवान आत्मा छे. व्यवहारना लखाण आवे के परमेश्वर
अने मूर्ति देखवाथी सम्यग्दर्शन थाय; परंतु निज भगवान आत्माना दर्शनथी
सम्यग्दर्शन थाय त्यारे बहारमां नजीकमां शुं होय तेनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे.
भक्तजनोए एटले के आत्मानी भक्ति करनार जीवोए भक्ति करवा लायक पोतानो
भगवान आत्मा छे. तीर्थंकर भगवान व्यवहारे पूज्य छे ने निश्चयथी तो एनो
पोतानो त्रणलोकनो नाथ आत्मा पूज्य छे.
आत्मा ने खरेखरो आत्मा तो त्रिकाळी शुद्ध बुद्ध ध्रुव, एकलो चैतन्य पिंड ध्रुव ते
खरेखर आत्मा छे. सत्य वात कहेनार वाणी अने ज्ञान आम कहे छे.
पिंडलो भगवान के ज्यां नमवा जेवुं छे, ज्यां अंतर सन्मुख थवा जेवुं छे एवो त्रण
लोकनो नाथ पूज्य प्रभु पोतानो आत्मा पोताने पूज्य छे.
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छे. भगवानने वंदन, नाम-स्मरण, पूजा-भक्तिनो शुभ राग होय छे, व्यवहार होय
छे पण ए जाणवालायक छे, पूजवालायक तो खरेखर आत्मा छे.
सर्वज्ञदेव व्यवहारे पूज्य छे, जाणवालायक छे, तेने काढी नाखे तो मिथ्याद्रष्टि थई जाय!
परंतु ए कांई खरेखर आत्मा नथी ने ए कांई खरेखर पूज्य नथी. भाई! एवा
अबंधस्वभावी आत्मा पूरण अबंधपरिणामने न पामे त्यां सुधी एवा भाव होय.
तेथी व्यवहार छे खरो, व्यवहार न माने तो मिथ्याद्रष्टि थई जाय छे अने जो व्यवहारे
छे. आवो शुद्ध भगवान आत्मा त्रणलोकमां पूज्यपुरुषोने पण पूज्य छे. गणधरो
आदि पूज्य संतो छे तेने पण पूज्य आत्मा छे. नमन करवालायक जे मुनिओ तेमने
तपस्या-पूजा-भक्ति-दान करे, जात्राओ करे ए बधुंय धर्म माटे नथी, मोक्षमार्ग माटे
नथी. सम्मेदशिखरनी एकवार यात्रा करे एटले बस! अहीं तो कहे छे के लाख वार
अरिहंत परमात्माने करोडवार वंदन करे तोपण एकेय भव घटे नहि! केम के ते
परद्रव्य छे ने परद्रव्यना लक्षे तो राग ज उत्पन्न थाय. समजाणुं कांई?
कळामां प्रवेश पामी शकतो नथी.