समजायो नथी त्यां विद्वान पंडितवर्य श्रीयुत हिंमतलाल जे. शाहनी मददथी तेने योथायोग्य
स्पष्ट करवा अहीं प्रयत्न कर्यो छे. तेमनी सहाय माटे हुं तेमनो अत्यंत ऋणी छुं.
आ अनुवाद तेना योग्य काळे तेना कारणे प्रगट थाय छे, तेमां परम अध्यात्ममूर्ति
परमपूज्य श्री कानजीस्वामीनो धारावाही आध्यात्मिक प्रसाद शुभ निमित्तरुप छे. एम हुं
विनयभावे स्वीकारी तेओश्रीने साभार वंदन करुं छुं. भक्तामर-स्तोत्रमां कह्युं छे केः-
‘यत् कोकि लः कि ल मधो मधुरं विरौति,
तच्चाम्रचारुक लिकानिक रैक हेतुः। ’
भाव ए छे के वसंतऋतुमां कोयल जे मधुरपणे टहूके छे, तेमां आंबाना महोरनी
चारु मंजरी एक हेतु छे-निमित्तकारण छे, तेम आ इष्टोपदेश काव्यमंजरीना उद्घाटनमां
उपरोक्त महा आत्मज्ञ संतनो सदुपदेश पण निमित्त छे. आथी तेओश्री प्रत्ये बहुमान
दर्शाववा सहज प्रेरणा थाय ए स्वाभाविक छे.
धर्मवत्सल मुरब्बी मान्यवर श्रीयुत रामजीभाइ माणेकचंद दोशी वकीले तथा
सद्धर्मप्रेमी सौजन्यमूर्ति श्रीयुत खीमचंदभाइ जे. शेठे—बन्नेए पोताना अमूल्य समयनो
भोग आपी आ अनुवाद बराबर तपासी लइ जे मार्गदर्शन कर्युं छे ते माटे हुं तेओश्रीनो
अत्यंत आभारी छुं, तेओश्रीनी सहाय अने सहानुभूति विना आ अनुवादनुं कार्य प्रकाशमां
आववुं मुश्केल हतुं.
ब्र. गुलाबचंदभाइए ‘इष्टोपदेश’नो गुजराती अनुवाद तपासी जइ तेमां योग्य
सुधारो-वधारो करी जे सुंदरता आणी छे तथा छपाववाना कार्यमां सलाह-सूचन अने मदद
करी जे वात्सल्यभाव दर्शाव्यो छे ते भूली शकाय तेम नथी. तेमनो पण हुं आभार मानुं
छुं.
आ अनुवाद-कार्यना प्रकाशनमां जे सज्जनो तरफथी मने प्रत्यक्ष या परोक्ष
प्रोत्साहन अने सहाय मळी छे ते सर्वेनो हुं समग्रपणे आभार मानुं छुं.
अनुवादक
छोटालाल गु. गांधी (सोनासण)
बी.ए.(ओनर्स). एस.टी.सी.
( 9 )