Ishtopdesh-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सुवर्णाविर्भावयोग्यपाषाणस्य केन, योग्यानां सुवर्णपरिणामकरणोचितानां उपादानानां कारणानां
योगेन मेलापकेन संपत्त्या यथा एवमात्मनोऽपि पुरुषस्यापि न केवलं दृषदः इत्यपि शब्दार्थः
मता कथिता कासौ ? आत्मताआत्मनो जीवस्य भावो निर्मलनिश्चलचैतन्यम् कस्यां सत्यां ?
द्रव्यादिस्वादिसंपत्तौ द्रव्यमन्वयिभावः आदिर्येषां क्षेत्रकालभावानां ते च ते स्वादयश्च सुशब्दः
स्वशब्दो वा आदिर्येषां ते स्वादयो द्रव्यादयश्च स्वादयश्च इच्छातो विशेषणविशेष्यभावः इति
समासः सुद्रव्यं सुक्षेत्रं सुकालः सुभाव इत्यर्थः सुशब्दः प्रशंसार्थः प्राशस्त्यं चात्र प्रकृत-
पाषाणने. शा वडे? जेम योग्य एटले सुवर्णना परिणाम करवाने उचित उपादान कारणोना
योगथी एटले मेलापथी
सम्पत्तिथी (सुवर्णतानो आविर्भाव माने छे) तेम आत्माने पण
एटले पुरुषने पण [केवळ पाषाणने नहि, पुरुषने पणएम अपि शब्दनो अर्थ छे.]
मानवामां आवे छेकहेवामां आवे छे. शुं ते (मानवामां आवे छे)? आत्मताआत्मानो
जीवनो भावनिर्मळ निश्चल चैतन्यभाव. शुं होतां? द्रव्यादि स्वादिनी सम्पत्ति होतां; द्रव्य
अन्वयिभाव, आदिजे क्षेत्र-काल-भाव छे तेनी आदिमांद्रव्य छे ते (द्रव्यादि) तथा
स्वादि एटले सुशब्द अथवा स्वशब्द जेमनी आदिमां ते सुआदि द्रव्यादि वा स्वादि
द्रव्यादि
इच्छानुसार विशेषण-विशेष्यभावरूप समाससुभाव एवो अर्थ छे. सुशब्द
प्रशंसाना अर्थमां छे. प्रकृत (मुख्य) कार्यनुं उपयोगीपणुं ते प्रशस्यपणुं छे. द्रव्यादि-स्वादिनी
एटले स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावनी सम्पत्ति एटले संपूर्णता
ते होतां (आत्माने निर्मळ
चैतन्यस्वरूप आत्मानी प्राप्ति थाय छे.)
भावार्थ :अनादि काळथी सुवर्ण पाषाणमां शक्तिरूपे सुवर्ण विद्यमान छे. तेने जेम
स्वद्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप योग्य उपादान कारणनो (कार्योत्पादनना समर्थ कारणनो) योग
बनतां ते सुवर्ण व्यक्तिरूपे प्रगट थाय छे, तेम आ आत्मामां पण शुद्ध निश्चयनयथी
केवळज्ञान दर्शनादि स्वभाववाळो परमात्मा शक्तिरूपे रहेलो छे. तेने स्वद्रव्यादिरूप कारणनो
योग बनतां, ते व्यक्तिरूपे स्वयं परमात्मा बने छे
अर्थात् आ आत्मा निज
ही सुद्रव्य सुक्षेत्र आदि रूप सामग्रीके मिलने पर जीव भी चैतन्यस्वरूप आत्मा हो जाता है
विशदार्थयोग्य (कार्योत्पादनसमर्थ) उपादान कारणके मिलनेसे
पाषाणविशेषजिसमें सुवर्णरूप परिणमने (होने)की योग्यता पाई जाती है वह जैसे स्वर्ण
बन जाता है, वैसे ही अच्छे (प्रकृत कार्यके लिए उपयोगी) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावोंकी
सम्पूर्णता होने पर जीव (संसारी आत्मा) निश्चल चैतन्यस्वरूप हो जाता है
दूसरे शब्दोंमें,
संसारी प्राणी जीवात्मासे परमात्मा बन जाता है
कहान जैनशास्त्रमाळा ]
इष्टोपदेश
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