Ishtopdesh-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तेषामानर्थक्यं निष्फलत्वं स्यादभिप्रेतायाः स्वात्मोपलब्धेः सुद्रव्यादिसम्पत्त्यपेक्षत्वादित्यर्थः
अत्राचार्यो निषेधमाहतन्नेति वत्स ! यत्त्वया शंकितं व्रतादीनामानर्थक्यं तन्न भवति
तेषामपूर्वाशुभकर्मनिरोधेनोपार्जिताशुभकर्मैकदेशक्षपणेन च सफलत्वात्तद्विषयरागलक्षणशुभोपयोग-
जनितपुण्यस्य च स्वर्गादिपदप्राप्तिनिमित्तत्वादेव
एतदेव च व्यक्तीकर्त्तुं वक्ति
जशे, तो अहिंसादि व्रतोनुं तथा समिति आदिनुं अनुष्ठान निरर्थक थई जशे.)
अहीं, आचार्य तेनो निषेध करी कहे छे केः
‘‘हे वत्स! तेम नथी. तें जे व्रतादिनी निष्फळता विषे शंका करी छे ते ठीक नथी,
कारण के नवां अशुभ कर्मोना निरोधथी अने उपार्जित अशुभ कर्मोना एकदेश क्षपणथी
तेओ सफळ छे, एटलुं ज नहि पण ते विषय संबंधी (व्रत संबंधी) अनुरागरूप
शुभोपयोगथी उत्पन्न पुण्य, स्वर्गादि पदनी प्राप्तिमां निमित्त होवाथी तेमनी (व्रतादिनी)
सफळता छे. आने ज (आ वातने ज) स्पष्ट करवा आचार्य कहे छे
[सुद्रव्यादिना योगथी धर्मीने जेटला अंशे शुद्धि प्रगटे तेटला अंशे तो नवां कर्मोनो
निरोध थाय छे, पण अशुभभावथी बचवा माटे अस्थिरताने लीधे जेटला अंशे व्रतादिनो
शुभभाव आवे छे, तेटला अंशे तेना निमित्ते पुण्यकर्मनो बंध थाय छे अने पूर्वोपार्जित
अशुभ कर्मोमांथी केटलाक कर्मोनुं संक्रमण थई शुभकर्म
पुण्यकर्मरूपे परिणमे छे.
पुण्यकर्मना फलस्वरूप स्वर्गादिनी प्राप्ति थाय छे. तेथी व्रतादिनी, ए अपेक्षाए
सफळता छे, परंतु तेनाथी संवर-निर्जरा नहि थती होवाथी तेनी, ए अपेक्षाए असफळता
छे.]
आदिका पालन करना निष्फल (निरर्थक) हो जाएगा व्रतोंका परिपालन कर व्यर्थमें ही
शरीरको कष्ट देनेसे क्या लाभ ?
समाधानआचार्य उत्तर देते हुए बोलेहे वत्स ! जो तुमने यह शंका की
है कि व्रतादिकोंका परिपालन निरर्थक हो जाएगा, सो बात नहीं है, कारण कि वे व्रतादिक
नवीन शुभ कर्मोंके बंधके कारण होनेसे, तथा पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मोंके एकदेश क्षयके
कारण होनेसे सफल एवं सार्थक हैं
इतना ही नहीं, किन्तु व्रतसम्बन्धी अनुरागलक्षणरूप
शुभोपयोग होनेसे पुण्यकी उत्पत्ति होती है और वह पुण्य स्वर्गादिक पदोंकी प्राप्तिके लिए
निमित्त कारण होता है इसलिए भी व्रतादिकोंका आचरण सार्थक है इसी बातको प्रगट
करनेके लिए आचार्य आगेका श्लोक कहते हैं।।।।
कहान जैनशास्त्रमाळा ]
इष्टोपदेश
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