Ishtopdesh-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८ ]
इष्टोपदेश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
इष्टानिष्टार्थानुभवानन्तरमुद्भूतः स्वसंवेद्य आभिमानिकः परिणामः वासनैव, न
स्वाभाविकमात्मस्वरूपमित्यन्ययोगव्यवच्छेदार्थो मात्र इति, स्वयोगव्यवस्थापकश्चैव शब्दः
केषामेतदेवंभूतमस्तीत्याहदेहिनांदेह एवात्मत्वेन गृह्यमाणो अस्ति येषां ते देहिनो
बहिरात्मानस्तेषाम् एतदेव समर्थयितुमाहतथा हीत्यादि उक्तार्थस्य दृष्टान्तेन समर्थनार्थस्तथा
हीति शब्द उद्वेजयन्ति उद्वेगं कुर्वन्ति, न सुखयन्ति, के ते ? एते सुखजनकत्वेन लोके प्रतीता
भोगा रमणीयरमणीप्रमुखाः इन्द्रियार्थाः क इव ? रोगा इव ज्वरादिव्याधयो यथा कस्यां
सत्यामापाददुर्निवारवैरिप्रभृतिसंपादितदौर्मनस्य लक्षणायां विपदि तथा चोक्तम्
ऐसे कमनीय कामिनी आदिक भोग भी आपत्ति (दुर्निवार, शत्रु आदिके द्वारा की गई
बेचेनी)के समयमें रोगों (ज्वरादिक व्याधियों)की तरह प्राणियोंको आकुलता पैदा करनेवाले
होते हैं
यही बात सांसारिक प्राणियोंके सुख-दुःखके सम्बन्धमें है
मने उपकारक होवाथी इष्ट छे अने अपकारक होवाथी अनिष्ट छे’ एवा विभ्रमथी उत्पन्न
थयेलो संस्कार ते वासना छे. ते (वासना) इष्ट
अनिष्ट पदार्थोना अनुभवना अनन्तरे
उत्पन्न थयेलो स्वसंवेद्य अभिमानयुक्त परिणाम छे. ते वासना ज छे, स्वाभाविक
आत्मस्वरूप नथी.
एम अन्यना योगनो व्यवच्छेद (अभाव) दर्शाववाना अर्थमां ‘मात्र’ शब्द छे अने
स्वनो योग (संबंध) जणाववाना अर्थमां ‘एव’ शब्द छे.
(शिष्ये) पूछ्युंआवुं (सुखदुःख) कोने होय छे? देहधारीओने अर्थात् देहने
ज जेओ आत्मा तरीके ग्रहण करे छे, ते देही बहिरात्माओतेमने (तेवी सुखदुःखनी
कल्पना होय छे).
आना ज समर्थनमां कहे छेतथाहित्यादि
उक्त अर्थना द्रष्टान्त द्वारा समर्थन माटे ‘तथाहि’ शब्द छे.
उद्वेलित करे छे, एटले उद्वेग करे छेसुखी करता नथी. कोण ते? ‘ते सुख उत्पन्न
करे छे’ एम लोकमां प्रतीत थयेला (मानवामां आवेला) भोगोअर्थात् रमणीय स्त्री आदि
इन्द्रियपदार्थो. कोनी माफक (उद्वेग करे छे)? रोगोनी माफकज्वरादि व्याधिओनी जेम.
शुं होतां? आपत्ति आवी पडतांअर्थात् दुर्निवार शत्रु आदि द्वारा करवामां आवेली
चित्तक्षोभ लक्षणवाळी विपत्ति आवी पडतां; तथा कह्युं छे के