Ishtopdesh-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२४ ]
इष्टोपदेश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
मलविद्घमणेर्व्यक्तिर्यथा नैकप्रकारतः
कर्मविद्धात्मविज्ञप्तिस्तथा नैकप्रकारतः ।।
नन्वमूर्तस्यात्मन कथं मूर्तेन कर्मणाभिभवो युक्तः ? इत्यत्राहमत्त इत्यादि यथा नैव
लभते कोऽसौ ? पुमान् व्यवहारी पुरुषः कं ? पदार्थानां घटपटादीनां स्वभावम् किंविशिष्टः
सन् ? मत्तः जनितमदः कैः ? मदनकोद्रवैः ।।
‘‘मल सहित मणिका प्रकाश (तेज) जैसे एक प्रकारसे न होकर अनेक प्रकारसे
होता है, वैसे ही कर्मसम्बद्ध आत्माका प्रतिभास भी एक रूपसे न होकर अनेक रूपसे
होता है
’’
यहाँ पर किसीका प्रश्न है कि
अमूर्त्त आत्माका मूर्तिमान् कर्मोंके द्वारा अभिभव (पैदा) कैसे हो सकता है ?
उत्तरस्वरूप आचार्य कहते हैं किः
‘‘नशेको पैदा करनेवाले कोद्रव-कोदों धान्यको खाकर जिसे नशा पैदा हो गया
है, ऐसा पुरुष घट-पट आदि पदार्थोंके स्वभावको नहीं जान सकता, उसी प्रकार कर्मबद्ध
आत्मा पदार्थोंके स्वभावको नहीं जान पाता है
अर्थात् आत्मा व उसका ज्ञान गुण यद्यपि
अमूर्त्त है, फि र भी मूर्तिमान् कोद्रवादि धान्योंसे मिलकर वह बिगड़ जाता है उसी प्रकार
अमूर्त्त आत्मा मूर्त्तिमान् कर्मोंके द्वारा अभिभूत हो जाता है और उसके गुण भी दबे जा
सकते हैं
।।।।
जेवी रीते मळवाळा मणिनो प्रकाश एक प्रकारनो नहि होतां (अनेक प्रकारे होय
छे,) तेवी रीते कर्मसंबद्ध आत्मानी विज्ञप्ति एक प्रकारे नहि होतां अनेक रूपे होय छे.
(कर्म
मळथी आवृत्त ज्ञान खंडखंडरूप होई अनेकरूप होय छे).
शिष्ये प्रश्न कर्यो‘अमूर्त आत्मानो, मूर्त कर्म द्वारा अभिभव (पराभव) थवो
केवी रीते योग्य छे?’
तेना उत्तरस्वरूप आचार्य कहे छे‘मत्त इत्यादि०’
जेम जाणतो ज नथी. कोण ते? पुरुष एटले व्यवहारी पुरुष. कोने (जाणतो
नथी)? घटपटादि पदार्थोना स्वभावने. केवो थयेलो (ते पुरुष)? उन्मत्त (पागल)
थयेलोघेनमां आवेलो. शा वडे? मद उत्पन्न करनार कोद्रवोथी (कोद्रवोना निमित्तथी).
भावार्थ :जेम मादक कोद्रव (कोदरा)ना निमित्ते माणस पोतानी योग्यताथी