अनुवादकनुं वक्तव्य
श्री पूज्यपादाचार्य रचित ‘इष्टोपदेश’ नामनो आ आध्यात्मिक ग्रन्थ भेदज्ञान माटे
अने आत्मानुभव माटे बहु उपयोगी होवाथी तेनो गुजराती अनुवाद आपनी आगळ रजू
करुं छुं.
ग्रन्थना नामनी सार्थकता
‘‘जे वडे सुख पजे वा दुःख विणसे ए कार्यनुं नाम प्रयोजन छे. ए प्रयोजननी
जेनाथी सिद्धि थाय ते ज आपणुं इष्ट छे. हवे आ अवसरमां अमने वीतराग विशेषज्ञाननुं
होवुं ए ज प्रयोजन छे, कारण एनाथी निराकुल सत्य सुखनी प्राप्ति थाय छे अने सर्व
आकुलतारुप दुःखनो नाश थाय छे.(मोक्षमार्ग प्रकाशक गु. आ. पृ. ७)
पंडित दौलतरामजीए ‘छहढाला’मां कह्युं छे केः—
‘‘आतमको हित है सुख, सो सुख आकुलता विन कहिए,
आकुलता शिवमांही न तात, शिवमग लाग्यो चहिए.’’ (३-१)
—आत्मानुं हित सुख छे अने ते आकुळता रहित छे. मोक्षमां आकुळता नथी, तेथी
मोक्षना मार्गमां-तेना उपायमां लाग्या रहेवुं जोइए.
मोक्ष अने तेनो उपाय-ए आपणुं इष्ट छे. तेनो उपदेश आचार्ये यथावत् आ
ग्रन्थमां कर्यो छे, तेथी आ ग्रन्थनुं नाम ‘इष्टोपदेश’—ए सर्वथा योग्य छे.
ग्रन्थनी उपयोगिता
आचार्ये आ ग्रन्थना श्लोक ५१मां कह्युं छे केः-
‘‘पूर्वोक्त प्रकारे ‘इष्टोपदेश’नुं सम्यक् प्रकारे अध्ययन करी, सारी रीते चिंतवन
करीने जे भव्य धीमान् पुरुष आत्मज्ञानना बळथी मान-अपमानमां समताभाव धारण करीने
तथा बाह्य पदार्थोमां विपरीत अभिनिवेशनो त्याग करीने नगर या वनमां विधिपूर्वक वसे
छे ते उपमारहित मुकित-लक्ष्मीने प्राप्त करे छे.’’
ग्रन्थनी विशेषता
आ नानकडो आध्यात्मिक ग्रन्थ छे, परंतु तेमां आचार्ये गागरमां सागर भरी दीधो
छे. तेमां भेदविज्ञानपूर्वक शुद्धात्मानी अनुभूति केवी रीते थाय तेनो मार्ग-उपाय चींध्यो छे.
ए तेनी विशेषता छे.
वळी आ ग्रन्थमां नीचेनी सारभूत बाबतोनो पण निर्देश करवामां आव्यो छेः-
१.उपादान वस्तुनी सहज निजशक्ति छे अने निमित्त तो संयोगरुप कारण छे. कार्य
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