पोताना उपादानथी ज थाय छे. ते वखते तेने अनुकूळ निमित्त होय ज. तेने
शोधवानी या मेळववानी व्यग्रतानी जरुर होय ज नहि.(श्लोक-२)
२.शुद्धात्मानी प्राप्ति-अनुभव न थाय त्यां सुधी पापभावथी बचवा माटे हेयबुद्धिए
पुण्यभाव आवे छे, परंतु ते पण बंधनुं कारण छे एम समजवुं.
(श्लोक-३ अने भावार्थ)
३.मोक्ष माटे प्रवृत्ति करनारने स्वर्गनुं सुख स्हेजे प्राप्त थाय छे. (श्लोक-४)
४.संसारी जीवोनां सुख-दुःख केवळ वासनामात्र ज होय छे. ते सुख-दुःखरुप भोगो
आपत्ति-काले रोग समान उद्वेग पमाडे छे.(श्लोक-६)
कोइ वस्तु सुख-दुःखरुप नथी, परंतु अज्ञानताने लीधे तेमां इष्ट-अनिष्टनी कल्पना
करी जीव राग-द्वेष करी सुख-दुःख अनुभवे छे.
५.मोहथी आ.छादित ज्ञान पोताना स्वभावने प्राप्त थतुं नथी.(श्लोक-७)
६.शरीर, घर, धन, स्त्री, पुत्र, मित्र, शत्रु आदि आत्माथी अन्य (भिन्न) स्वभाववाळां
छे अने आत्माथी प्रत्यक्ष भिन्न छे, छतां मूढ जीव (बहिरात्मा) तेमने पोतानां माने
छे, तेमां आत्मबुद्धि करे छे.(श्लोक-८)
७.मिथ्यात्वयुक्त राग-द्वेष-ए संसार-समुद्रमां बहु लांबा काळ सुधी भ्रमणनुं कारण छे.
(श्लोक-११)
८.दावानळथी बळता वननी मध्यमां वृक्ष उपर बेठेला मनुष्यनी जेम मूढ जीव अन्यनी
माफक पोते पण कोइ दिवस विपत्तिमां आवी पडशे ते विचारतो नथी. (श्लोक-१४)
९.जे ममतावाळो छे ते संसारमां बंधाय छे अने जे ममतारहित छे ते संसारथी छूटे
छे.(श्लोक-२६)
१०.ज्ञानीने मृत्युनो, रोगनो, बाल्यावस्थानो ने वृद्धावस्थानो भय होतो नथी, कारण
के ते समजे छे के ते सर्व पौद्गलिक छे.(श्लोक-२९)
११.ज्ञानी विचारे छे के सर्व पुद्गलोने में मोहवशात् अनेकवार भोगवी भोगवीने
छोड्या हवे ए ऊं.छष्ट पदार्थोमां मने कांइ स्पृहा नथी.(श्लोक-३०)
१२.वस्तुतः आत्मा ज आत्मानो गुरु छे.(श्लोक-३४)
१३.जे अज्ञानी छे ते कोइथी ज्ञानी थइ शकतो नथी अने जे ज्ञानी छे ते कोइथी अज्ञानी
थइ शकतो नथी गुरु आदि तो धर्मास्तिकायवत् निमित्तमात्र छे.(श्लोक-३५)
१४.कार्यनी उत्पत्ति स्वाभाविक गुणनी (पोताना उपादाननी) अपेक्षा राखे छे सेंकडो
उपायो करवा छतां बगलाने पोपटनी जेम शीखवाडी शकातुं नथी.
(श्लोक-३५नी टीका)
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