१५.जेम जेम आत्मानुभव थतो जाय छे, तेम तेम सुलभ विषयो पण रुचता नथी अने
जेम जेम विषयो प्रत्ये अरुचि थाय छे, तेम तेम आत्मानुभवनी परिणति वृद्धि पामती
जाय छे.(श्लोक-३७-३८)
१६.ध्यान-परायण योगीने पोताना देहनुं पण भान होतुं नथी.(श्लोक-४२)
१७.पर ते पर छे, तेनो आश्रय करवाथी दुःख छे अने आत्मा ते आत्मा छे तेनाथी
सुख छे. तेथी महात्माओ आत्मार्थे ज उद्यम करे छे.(श्लोक-४५)
१८.जे अज्ञानी पुद्गलने अभिनंदे छे तेनो केडो (पीछो) चार गतिमां पुद्गल कदी छोडतुं
नथी.(श्लोक-४६)
१९.अविद्याने दूर करवावाळी महान् उत्कृष्ट ज्ञानज्योति छे. मुमुक्षुओए तेना संबंधमां
पृ.छा करवी, तेनी ज वांछा करवी अने तेनो ज अनुभव करवो जोइए. (श्लोक-
४९)
२०.जीव अन्य छे अने पुद्गल अन्य छे-ए तत्त्वकथननो सार छे. बीजुं जे कांइ कहेवामां
आव्युं छे ते बधो ज तेनो विस्तार छे.(श्लोक-५०)
ग्रन्थकर्ता श्री पूज्यपादस्वामी
तेओ कर्णाटक प्रांतना रहीश ब्राह्मणकुलोत्पन्न प्रखर विद्वान् हता. तेओ विद्वान्
हता एटलुं ज नहि पण उ.च कोटिना संयमी हता. तेओ भारत-भूमिमां छठ्ठा सैकाना
पूर्वार्धमां थइ गया—एम विद्वान पंडितोनुं मानवुं छे.
तेमने व्याकरण, न्याय, छंद, ज्योतिष आदिनुं तथा वैद्यक, सैद्धांतिक, साहित्यिक
अने आध्यात्मिक विषयोनुं तलस्पर्शी ज्ञान हतुं. वळी तेमनी विवेचन-शक्ति पण प्रगाढ
हती.
तेमनी कृतिओमां खास करीने जैनेन्द्रव्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, समाधितंत्र, इष्टोपदेश
आदि ग्रन्थो, ते ते विषयोमां जैनसमाजमां बहु आधारभूत गणाय छे. आथी जैनसमाज
उपर तेमनो महान उपकार छे.
तेमनी भाषाशैली सरळ अने लालित्यपूर्ण छे तेम ज हृदयस्पर्शी छे. तेमना
जीवनसंबंधी ‘समाधितंत्र’नी प्रस्तावनामां सविस्तार उल्लेख करवामां आव्यो छे. त्यांथी
जाणी लेवा विनंती छे.
संस्कृत टीकाकार पंडितप्रवर श्री आशाधरजी
जन्म-जन्मस्थळ
मारवाडनो मुलक जे सपादलक्ष नामथी जाणीतो हतो तेना मंडळकर नगरमां विद्वान
ऋषितुल्य कवि आशाधरजीनो जन्म लगभग वि.सं. १२३० थी ३५ सुधीमां थयो हतो.
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