kahAn jainashAstramALA ]
iShTopadesh
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न मे मृत्युः कुतो भीतिर्न मे व्याधि कुतो व्यथा ।
नाहं बालो न वृद्धोऽहं न युवैतानि पुद्गले ।।२९।।
टीका — न मे एकोऽहमित्यादिना निश्चितात्मस्वरूपस्य मृत्युः प्राणत्यागो नास्ति ।
चिच्छक्तिलक्षणभावप्राणानां कदाचिदपि त्यागाभावात् । यतश्च मे मरणं नास्ति । ततः कुतः
कस्मात्मरणकारणात्कृष्णसर्पादेर्भीतिर्भयं ममस्यान्न कुतश्चिदपि बिभेमीत्यर्थः । तथा
व्यार्धिर्वातादिदोषवैषम्यं मम नास्ति मूर्त्तसम्बन्धित्वाद्वातादीनां । यतश्चैवं ततः कस्मात्
kyAn bhIti jyAn amar hun, kyAn pIDA vaN rog?
bAl, yuvA, nahi vRuddha hun, e sahu pudgal jog. 29.
anvayArtha : — [मे मृत्युः न ] mArun maraN nathI, to [कुतः भीतिः ] Dar kono? [मे
व्याधिः न ] mane vyAdhi nathI to [व्यथा कुतः ] pIDA kevI? [अहं न बालः ] hun bAlak nathI,
[अहं न वृद्धः ] hun vRuddha nathI, [अहं न युवा ] hun yuvAn nathI [एतानि ] e (sarva avasthAo)
[पुद्गले सन्ति ] pudgalanI chhe.
TIkA : — ‘एकोऽहं’ ityAdithI jenun AtmasvarUp nishchit thayun chhe evA mane maraN
eTale prANatyAg nathI, kAraN ke chitshaktirUp bhAvaprANono kadI paN tyAg (nAsh) hoto
nathI, kAraN ke mArun maraN nathI. tethI maraNanA kAraNabhUt kALA nAg Adino bhay – bhIti
mane kyAthi hoy? arthAt hun koInAthI bIto nathI evo artha chhe; tathA vyAdhi arthAt
vAtAdi doShanI viShamatA mane nathI, kAraN ke vAtAdino mUrta padArtha sAthe sambandh chhe. tethI
मरण रोग मोमें नहीं, तातें सदा निशंक ।
बाल तरुण नहिं वृद्ध हूँ, ये सब पुद्गल अंक ।।२९।।
अर्थ — मेरी मृत्यु नहीं तब डर किसका ? मुझे व्याधि नहीं, तब पीड़ा कैसे ? न
मैं बालक हूँ, न बूढा हूँ, न जवान हूँ । ये सब बातें (दशाएं) पुद्गलमें ही पाई जाती हैं ।
विशदार्थ — ‘‘एकोहं निर्ममः शुद्धः’’ इत्यादिरूपसे जिसका स्वस्वरूप निश्चित हो
गया है, ऐसा जो मैं हूँ, उसका प्राणत्यागरूप मरण नहीं हो सकता, कारण कि
चित्शक्तिरूप भावप्राणोंका कभी भी विछोह नहीं हो सकता । जब कि मेरा मरण नहीं,
तब मरणके कारणभूत काले नाग आदिकोंसे मुझे भय क्यों ? अर्थात् मैं किसीसे भी नहीं
डरता हूँ । इसी प्रकार वात, पित्त, कफ आदिकी विषमताको व्याधि कहते हैं, और वह
मुझे है नहीं, कारण कि वात आदिक मूर्तपदार्थसे ही सम्बन्ध रखनेवाले हैं । जब ऐसा