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iShTopadesh
[ bhagavAnashrIkundakund-
अपि च— ‘रम्यं हर्म्यं चन्दनं चन्द्रपादा, वेणुर्वीणा यौवनस्था युवत्यः ।
नैते रम्या क्षुत्पिपासार्दितानां, सर्वारंभास्तंदुलाः प्रस्थमूलाः ।।’
तथा — ‘आतपे धृतिमता सह वध्वा यामिनीविरहिणा विहगेन ।
सेहिरे न किरणाहिमरश्मेर्दुःखिते मनसि सर्वमसह्यम् ।।’’
‘‘मुञ्चाङ्गं........’’
‘‘रम्यं हर्म्यं’’
रमणीक महल, चन्दन, चन्द्रमाकी किरणें (चाँदनी), वेणु, वीणा तथा यौवनवती
युवतियाँ (स्त्रियाँ) आदि योग्य पदार्थ भूख-प्याससे सताये हुए व्यक्तियोंको अच्छे नहीं
लगते । ठीक भी है, अरे ! सारे ठाटबाट सेरभर चाँवलोंके रहने पर ही हो सकते हैं ।
अर्थात् पेटभर खानेके लिए यदि अन्न मौजूद है, तब तो सभी कुछ अच्छा ही अच्छा लगता
है । अन्यथा (यदि भरपेट खानेको न हुआ तो) सुन्दर एवं मनोहर गिने जानेवाले पदार्थ
भी बूरे लगते हैं । इसी तरह और भी कहा है : —
‘‘एक पक्षी (चिरबा) जो कि अपनी प्यारी चिरैयाके साथ रह रहा था, उसे धूपमें
रहते हुए भी संतोष और सुख मालूम होता था । रातके समय जब वह अपनी चिरैयासे
बिछुड़ गया, तब शीतल किरणवाले चन्द्रमाकी किरणोंको भी सहन (बरदाश्त) न कर
सका । उसे चिरैयाके वियोगमें चन्द्रमाकी ठंडी किरणें सन्ताप व दुःख देनेवाली ही प्रतीत
होने लगीं । ठीक ही है, मनके दुःखी होने पर सभी कुछ असह्य हो जाता है, कुछ भी
भला या अच्छा मालूम नहीं होता ।’’
vaLI. ‘‘रम्यं हर्म्ये.....’’
sundar mahel, chandan, chAndanI (chandranA kiraNo), veNu, vINA tathA yauvanavatI yuvatio
vagere, bhUkh tarasathI pIDAtI vyaktione ramya (majAnAn) lAgatAn nathI, kAraN ke (jIvonA)
sarva ArambhomAn tandulaprastha e mUL vAt chhe. (arthAt gharamAn bhojan mATe tandul hoy
to A badhA padArtho sundar lAge chhe, nahi to nahi.)
vaLI, ‘‘आतपे धृतिमता.......’’
ek pakShI potAnI priyA sAthe taDakAmAn rahevA chhatAn sukh mAnatun hatun, parantu rAtre
jyAre te potAnI priyAthI vikhUTun paDI gayun, tyAre tenA viyogamAn chandranAn kiraNo paN tene
santAp detAn lAgyAn; kAraN ke man dukhI thatAn badhun asahya thaI paDe chhe; sArun lAgatun nathI;
ityAdi.