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iShTopadesh
[ bhagavAnashrIkundakund-
संततापायतया कायस्य धनादिना यद्युपकारो न स्यात्तर्हि धनादिनापि न केवलमनशनादि-
तपश्चरणेनेत्यपि शब्दार्थः । आत्मनो जीवस्योपकारोऽनुग्रहो भविष्यतीत्यर्थः ।
गुरुराह तन्नेति । यत्त्वया धनादिना आत्मोपकारभवनं संभाज्यते तन्नास्ति । यतः —
यज्जीवस्योपकाराय तद्देहस्यापकारकम् ।
यद्देहस्योपकाराय तज्जीवस्यापकारकम् ।।१९।।
होनेसे यदि धनादिकके द्वारा कायका उपकार नहीं हो सकता, तो आत्माका
उपकार तो केवल उपवास आदि तपश्चर्यासे ही नहीं, बल्कि धनादि पदार्थोंसे भी हो
जायगा ।
आचार्य उत्तर देते हुए बोले, ऐसी बात नहीं है । कारण कि —
आतम हित जो करत है, सो तनको अपकार ।
जो तनका हित करत है, सो जियको अपकार ।।१९।।
अर्थ — जो जीव (आत्मा)का उपकार करनेवाले होते हैं, वे शरीरका अपकार (बुरा)
करनेवाले होते हैं । जो चीजें शरीरका हित या उपकार करनेवाली होती हैं, वही चीजें
आत्माका अहित करनेवाली होती हैं ।
sharIr satat bAdhAnun kAraN hovAthI tenA upar dhanAdithI upakAr na thAy, to AtmAno
upakAr kevaL upavAs Adi tapashcharyAthI ja nahi, kintu dhanAdithI paN thashe, AtmAno
eTale jIvano upakAr eTale anugrah thashe evo artha chhe.
guru kahe chhe — tem nathI arthAt dhanAdithI tun AtmAno upakAr thavo mAne chhe, paN
tem nathI, kAraN ke —
je AtmAne hit kare, te tanane apakAr,
kare hit je dehane, te jIvane apakAr. 19.
anvayArtha : — [यत् ] je [जीवस्य उपकाराय ] jIvane (AtmAne) upakArak chhe, [तद् ]
te [देहस्य अपकारक ] dehane apakArak [भवति ] chhe [तथा ] ane [यद् ] je [देहस्य उपकाराय ]
dehane upakArak chhe, [तद् ] te [जीवस्य अपकारकं ] jIvane apakArak [भवति ] chhe.