kahAn jainashAstramALA ]
iShTopadesh
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इतश्चिन्तामणिर्दिव्य इतः पिण्याकखण्डकम् ।
ध्यानेन चेदुभे लभ्ये क्वाद्रियन्तां विवेकिनः ।।२०।।
टीका — अस्ति । कोऽसौ ? चिन्तामणि चिंतितार्थप्रदो रत्नविशेषः । किं विशिष्टो ?
दिव्यो देवेनाधिष्ठितः । क्व, इत अस्मिन्नेकस्मिन् पक्षे । इतश्चान्यस्मिन् पक्षे पिण्याकखण्डकं
कुत्सितमल्पं वा खलखण्डकमस्ति । एते च उभे द्वे अपि यदि ध्यानेन लभ्येते । अवश्यं लभ्येते
तर्हि कथय क्व द्वयोर्मध्ये कतरस्मिन्नेकस्मिन् विवेकिनो लोभच्छेदविचारचतुरा आद्रियन्तां आदरं
इत चिंतामणि है महत, उत खल टूक असार ।
ध्यान उभय यदि देत बुध, किसको मानत सार ।।२०।।
अर्थ — इसी ध्यानसे दिव्य चिंतामणि मिल सकता है, इसीसे खलीकें टुकड़े भी
मिल सकते हैं । जब कि ध्यानके द्वारा दोनों मिल सकते हैं, तब विवेकी लोक किस ओर
आदरबुद्धि करेंगे ?
विशदार्थ — एक तरफ तो देवाधिष्ठित चिन्तित अर्थको देनेवाला चिन्तामणि और
दूसरी ओर बुरा व छोटासा खलीका टुकड़ा, ये दोनों भी यदि ध्यानके द्वारा अवश्य मिल
जाते हैं, तो कहो, दोनोंमेंसे किसकी ओर विवेकी लोभके नाश करनेके विचार करनेमें
चतुर – पुरुष आदर करेंगे ? इसलिए इस लोक सम्बन्धी फल कायकी नीरोगता आदिकी
chhe chintAmaNi divya jyAn, tyAn chhe khoL asAr,
pAme beu dhyAnathI, budh mAne shun sAr? 20.
anvayArtha : — [इतः दिव्यः चिन्तामणिः ] ek bAju divya chintAmaNi chhe, [इतः च
पिण्याकखण्डकम् ] ane bIjI bAju khalIno (khoLano) TukaDo chhe; [चेत् ] jo [ध्यानेन ] dhyAn
dvArA [उभे ] banne [लभ्ये ] maLI shake tem chhe, to [विवेकिनः ] vivekI jano [क्व आद्रियन्ताम् ]
kono Adar karashe?
TIkA : — chhe. koN te? chintAmaNi arthAt chintit padArtha denAr ratnavisheSh. kevo
(chintAmaNi)? divya arthAt dev dvArA adhiShThit. kyAn? ek bAjue eTale ek pakShe
(chintAmaNi chhe) ane bIjI bAjue eTale bIjA pakShe kharAb vA halako khalIno (khoLano)
TukaDo chhe. te beu – banne paN jo dhyAnathI prApta thAy – avashya maLI jAy – to kaho –
bannemAnthI kayA ekamAn, vivekI jano arthAt lobhano nAsh karavAnA vichAramAn chatur puruSho,
Adar karashe? tethI A lok sambandhI phaLanI abhilAShA chhoDI paralok sambandhI (lokottar)