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iṣhṭopadesh
[ bhagavānashrīkundakund-
भ्रमति भ्रमिष्यति । भ्रमतीत्यवतिष्ठन्ते पर्वता इत्यादिवत् नित्यप्रवृत्ते लटा विधानात् ।
उक्तं च — [पंचत्थिपाहुडे ] —
‘जो खलुं संसारत्थो, जीवो तत्तो दु होदि परिणामो ।
परिणामादो कम्मं कम्मादो हवदि गदिसु गदी ।।१२८।।
गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायंते ।
तेहिं दु विसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो वा ।।१२९।।
करना पड़ा । उसी तरह स्वपर विवेकज्ञान न होनेसे रागादि परिणामोंके द्वारा जीवात्मा
अथवा कारणमें कार्यका उपचार करनेसे, रागादि परिणामजनित कर्मबंधके द्वारा बँधा हुआ
संसारीजीव, अनादिकालसे संसारमें घूम रहा है, घूमा था और घूमता रहेगा । मतलब यह
है कि ‘रागादि परिणामरूप भावकर्मोंसे द्रव्यकर्मोंका बन्ध होता’ ऐसा हमेशासे चला आ
रहा है और हमेशा तक चलता रहेगा । सम्भव है कि किसी जीवके यह रुक भी जाय ।
जैसा कि कहा गया है : — ‘‘जो खलु संसारत्थो०’’
‘‘जो संसारमें रहनेवाला जीव है, उसका परिणाम (राग-द्वेष आदिरूप परिणमन)
होता है, उस परिणामसे कर्म बँधते हैं । बँधे हुए कर्मोंके उदय होनेसे मनुष्यादि गतियोंमें
गमन होता है, मनुष्यादि गति प्राप्त होनेवालेको (औदारिक आदि) शरीरका जन्म(संबंध)
होता है, शरीर होनेसे इन्द्रियोंकी रचना होती है, इन इन्द्रियोंसे विषयों (रूप रसादि)का
vivekagnānanā abhāve utpanna thayelā rāgādi pariṇāmothī arthāt kāraṇamān – rāgādimān
(kāryano) dravyakarmano upachār karavāthī – tenā nimitte utpanna thayelā karmabandhathī sansārī jīv
anādi kāḷathī sansāramān bhamato rahyo chhe, bhame chhe ane bhamashe.
[bhamato rahe chhe eṭale parvato ityādivat (bhramaṇ kriyāmān) te avasthā pāme chhe.]
vaḷī, ‘pañchāstikāy’mān kahyun chhe ke —
‘je kharekhar sansārasthit jīv chhe te tenāthī pariṇām pāme chhe (arthāt tene rāg –
dveṣharūp snigdha pariṇām thāy chhe), pariṇāmathī karma ane karmathī gatiomān gaman thāy
chhe.’........(128)
‘gati prāpta (jīv)ne deh thāy chhe, dehathī indriyo thāy chhe, indriyothī viṣhayagrahaṇ
ane viṣhayagrahaṇathī rāg athavā dveṣh thāy chhe.’.......(129)