Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जाय छे, ते माटे ते उपचारथी अस्तिकाय छे.
६७ प्र. अनुजीवी गुण कोने कहे छे ?
उ. भावस्वरूप गुणोने अनुजीवी गुण कहे छे.
जेमकेश्रद्धा, चारित्र, सुख, चेतना, स्पर्श, रस, गंध,
वर्णादिक.
६८ प्र. प्रतिजीवी गुण कोने कहे छे ?
उ. वस्तुना अभावस्वरूप धर्मने प्रतिजीवी गुण कहे
छे; जेमके नास्तित्व, अमूर्तत्व, अचेतनत्व वगेरे.
६९ प्र. अभाव कोने कहे छे ?
उ. एक पदार्थनुं बीजा पदार्थमां नहि होवापणुंतेने
अभाव कहे छे.
७० प्र. अभावना केटला भेद छे ?
उ. चार छेप्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव
अने अत्यन्ताभाव.
७१ प्र. प्रागभाव कोने कहे छे ?
उ. वर्तमान पर्यायनो पूर्व पर्यायमां जे अभाव तेने
प्रागभाव कहे छे.
७२ प्र. प्रध्वंसाभाव कोने कहे छे ?
उ. आगामी पर्यायमां वर्तमान पर्यायना अभावने
प्रध्वंसाभाव कहे छे.
७३ प्र. अन्योन्याभाव कोने कहे छे ?
उ. पुद्गलद्रव्यना एक वर्तमान पर्यायमां बीजा
पुद्गलनां वर्तमान पर्यायना अभावने अन्योन्याभाव
कहे छे.
७४ प्र. अत्यंताभाव कोने कहे छे ?
उ. एक द्रव्यमां बीजा द्रव्यना अभावने
अत्यन्ताभाव कहे छे.
अनुजीवी गुण
७५ प्र. जीवना अनुजीवी गुण क्या क्या छे ?
उ. चेतना, श्रद्धा, चारित्र, सुख, वीर्य, भव्यत्व,
अभव्यत्व, जीवत्व, वैभाविक, कर्तृत्व, भोक्तृत्व वगेरे
अनंतगुण छे.
१६ ][ अध्यायः १श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १७