Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८८ प्र. मतिज्ञानना बीजी रीते केटला भेद छे ?
उ. चार छेःअवग्रह, इहा, अवाय अने धारणा.
८९ प्र. अवग्रह कोने कहे छे ?
उ. इन्द्रिय अने पदार्थना योग्य स्थानमां (मौजूद
स्थानमां) रहेवाथी सामान्यप्रतिभासरूप दर्शननी पछी
अवान्तरसत्तासहित विशेष वस्तुना ज्ञानने अवग्रह कहे छे,
जेमके आ मनुष्य छे.
९० प्र. इहाज्ञान कोने कहे छे ?
उ. अवग्रह ज्ञानथी जाणेला पदार्थना विशेषमां
उत्पन्न थयेला संशयने दूर करता एवा अभिलाष स्वरूप
ज्ञानने इहा कहे छे. जेमके
ते ठाकुरदासजी छे. आ ज्ञान
एटलुं कमजोर छे के कोईपण पदार्थनी इहा थईने छूटी
जाय, तो तेना विषयमां काळांतरमां संशय अने विस्मरण
थई जाय छे.
९१ प्र. अवाय कोने कहे छे ?
उ. इहाथी जाणेला पदार्थमां आ ते ज छे, अन्य
नथी एवा द्रढ ज्ञानने अवाय कहे छे. जेमकेते
ठाकोरदासजी ज छे, बीजो कोई नथी. अवायथी जाणेला
पदार्थमां संशय तो थतो नथी, परंतु विस्मरण थई जाय
छे.
९२ प्र. धारणा कोने कहे छे ?
उ. जे ज्ञानथी जाणेला पदार्थमां काळांतरमां संशय
तथा विस्मरण न थाय, तेने धारणा कहे छे.
९३ प्र. मतिज्ञानना विषयभूत पदार्थोना केटला
भेद छे ?
उ. बे छेःव्यक्त अने अव्यक्त.
९४ प्र. अवग्रहादिक ज्ञान बन्नेय प्रकारना
पदार्थोमां थई शके छे अथवा केवी रीते ?
उ. व्यक्त (प्रगटरूप) पदार्थमां अवग्रहादिक चारे
ज्ञान होय छे. परंतु अव्यक्त (अप्रगटरूप) पदार्थनुं मात्र
अवग्रह ज्ञान ज होय छे.
९५ प्र. अर्थावग्रह कोने कहे छे ?
उ. व्यक्त (प्रगट) पदार्थना अवग्रहज्ञानने
अर्थावग्रह कहे छे.
२० ][ अध्यायः १श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ २१